वक्फ कानून को चुनौती देने वाली कितनी याचिकाएं हैं लंबित? दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र को दिया ये जवाब

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय को केन्द्र सरकार ने बुधवार को बताया कि वक्फ कानून के एक या एक से ज्यादा प्रावधानों को चुनौती देने वाली करीब 120 रिट याचिकाएं देश की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली उच्च न्यायालय (फाइल फोटो)
दिल्ली उच्च न्यायालय (फाइल फोटो)


नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय को केन्द्र सरकार ने बुधवार को बताया कि वक्फ कानून के एक या एक से ज्यादा प्रावधानों को चुनौती देने वाली करीब 120 रिट याचिकाएं देश की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा वक्फ कानून के ही कुछ प्रावधानों के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के वकील से से कहा कि वह सभी मामलों को एक साथ जोड़ने का कदम उठाने के संबंध में निर्देश प्राप्त करें।

पीठ ने कहा, ‘‘केन्द्र सरकार के वकील ने उचित कदम उठाने और ऐसे सभी मामलों को एक साथ जोड़ने के लिए समय मांगा।’’

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मौजूदा याचिका के संबंध में दायर आवेदन में केन्द्र ने जवाब देने के लिए तीन महीने का समय मांगा और कहा कि ‘‘मौजूदा मुकदमे के अलावा विभिन्न अदालतों के समक्ष करीब 120 ऐसी रिट याचिकाएं लंबित हैं जिनमें वक्फ कानून के एक या एक से ज्यादा प्रावधानों को चुनौती दी गई है।’’

केन्द्र सरकार ने अपने आवेदन के जरिए अदालत को बताया कि ज्यादा मुकदमों में जवाबी हलफनामा दायर नहीं हुआ है और मौजूदा मुकदमे में याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष ‘स्थानांतरण याचिका’ दायर कर दी है और सभी मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है।

सुनवाई के दौरान उपाध्याय ने कहा कि मामलों की संख्या के मद्देनजर सभी याचिकाओं को एक अदालत में स्थानांतरित करने के लिए स्थानांतरण याचिका केन्द्र द्वारा दायर की जानी चाहिए।

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याचिकाकर्ता ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है और केन्द्र को ‘‘न्यास और न्यासियों, परमार्थ संस्थाओं और धार्मिक संस्थानों के लिए समान कानून’’ लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वक्फ संपत्तियों को वे ‘‘विशेष अधिकार’’ नहीं दिये जा सकते जो गैर इस्लामी धार्मिक समूहों द्वारा चलाये जा रहे न्यास, परमार्थ एवं धार्मिक संगठनों को प्राप्त नहीं हैं।

मामले में अगली सुनवाई अब जुलाई में होनी है।










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