36 साल पुराने केस में कोर्ट ने सुनाया फैसला, मेरठ के मलियाना नरसंहार मामले में 40 आरोपी बरी
मेरठ की एक अदालत ने मलियाना में हुए नरसंहार के 36 साल पुराने मामले के 40 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। एक अधिवक्ता ने रविवार को यह जानकारी दी।
मेरठ: मेरठ की एक अदालत ने मलियाना में हुए नरसंहार के 36 साल पुराने मामले के 40 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। एक अधिवक्ता ने रविवार को यह जानकारी दी।
मेरठ में वर्ष 1987 में टीपी नगर थाना क्षेत्र के मलियाना में दंगे के दौरान हुए नरसंहार मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद शनिवार को अपर जिला व सत्र न्यायाधीश लखविंदर सूद ने फैसला सुनाते हुए 40 आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
हालांकि, पीड़ित परिवारों के सदस्यों ने फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही है।
आरोपितों के अधिवक्ता सी.एल. बंसल ने बताया कि अदालत ने साक्ष्य के अभाव में आरोपितों को बरी कर दिया।
अपर जिला शासकीय अधिवक्ता (एडीजीसी) सचिन मोहन ने पत्रकारों को बताया कि 23 मई 1987 को मेरठ के मलियाना होली चौक पर यह घटना हुई थी, जिनमें वादी याकूब अली निवासी मलियाना ने 93 लोगों के खिलाफ 24 मई 1987 को नामजद मुकदमा दर्ज कराया था।
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उन्होंने बताया कि 23 मई की घटना में करीब 63 लोग मारे गए थे और 100 से भी ज्यादा घायल हुए थे।
सचिन मोहन ने बताया कि इस मामले में वादी सहित 10 गवाहों ने अदालत में अपनी गवाही दी, लेकिन अभियोजन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर केस साबित करने में सफल नहीं रहा।
उन्होंने कहा कि अदालत ने गवाहों की गवाही और पत्रावली पर उपस्थित साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए 40 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के आदेश दिए। उन्होंने बताया कि मामले के 40 अन्य आरोपितों की मौत हो चुकी है और कई का पता नहीं चल पाया।
पीड़ित परिवारों में शामिल महताब (40) ने पत्रकारों को बताया कि ''दंगे के दौरान मेरे पिता अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस वक्त मैं बहुत छोटा था। पिता की लाश मेरे सामने पड़ी थी। जबकि उनका दंगे से कोई लेना देना नहीं था।''
महताब ने कहा, ''इस फैसले को जल्द उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।''
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अफजाल सैफी (45) ने भी न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही। अफजाल ने बताया कि घटना के दिन उनके पिता यासीन घर की ओर लौट रहे थे, तभी रास्ते में दंगाइयों ने गोली मारकर शव चीनी मिल के पास फेंक दिया था।
वर्ष 1987 में मेरठ में सांप्रदायिक दंगे की सिलसिलेवार शुरुआत हुई थी और तब 14 अप्रैल को शब-ए-बारात के दिन सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई। पुलिस प्रशासन ने कर्फ्यू लगाकर स्थिति को नियंत्रित कर लिया, लेकिन तनाव बना रहा और मेरठ में दो-तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे।
मेरठ में सांप्रदायिक दंगे के बाद 22 मई 1987 को हाशिमपुरा नरसंहार हुआ, जिसमें 42 लोगों की हत्या की गई थी और इस मामले में 2018 में 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। वहीं, इसके बाद 23 मई को मलियाना में हुए नरसंहार में अब आए फैसले में आरोपियों को बरी किया गया है।