भीलवाड़ा: 411साल पुरानी नाहर नृत्य परंपरा बनी मिसाल, धूमधाम से मना समारोह
राजस्थान के भीलवाड़ा के मांडल कस्बे में 411वां नाहर नृत्य समारोह धूमधाम से मनाया गया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
भीलवाड़ा: राजस्थान के भीलवाड़ा में सदियों से चली आ रही नाहर नृत्य कला आज भी जीवित है। राजस्थान की यह लोक कला 411 साल पहले शुरू हुई थी। मांडल वासियों ने आज भी सदियों पुरानी परंपरा को संजोये रखा है, जो कि पूरे देश के लिए एक अनूठी मिसाल है।
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डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार भीलवाड़ा ज़िले में एक ऐसा नृत्य जो मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए 411 साल पहले शुरू किया गया था, वह अब परंपरा बन आज भी अनवरत रूप से जारी है। इस नृत्य की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह साल में केवल एक बार राम और राज के सामने ही प्रस्तुत होता है।
भीलवाडा जिले के मांडल कस्बे में मुगल बादशाह शाहजहां के समक्ष उस समय मांडल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहां को मंत्रमुग्ध कर दिया था। नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन शाम को आयोजित होता है। यह नाहर नृत्य मांडल कस्बे का प्रमुख त्यौहार बन गया है। केवल राम और राज के सम्मुख ही पेश किया जानेवाला यह नाहर नृत्य देश में एक तरह का अनूठा नृत्य है।
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इस नृत्य में नर्तक पारम्परिक वाद्य यत्रो की धुनों के बीच अपने शरीर पर रुई लपेट शेर का स्वांग रचकर नृत्य करते है। 411 साल पहले वर्ष 1614 मे मांडल गांव में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने मुग़ल बादशाह शाहजहा उदयपुर जा रहे थे। इसी दौरान शाहजहां के मांडल में पड़ाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए नृत्य शुरू किया गया था। मांडलवासियों आज भी विरासत को संभाले हुए है।
राजस्थान लोक कला मंडल (माण्डल) अध्यक्ष रमेश बूलियां ने कहा कि यह नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार का रूप है। 1614 ईस्वी में बादशाह शाहजहां के समय से चला आ रहा है। शाहजहां जब यहां से निकल रहे थे तब उनके मनोरंजन के लिए नरसिंह अवतार के रूप में यह नाहर नृत्य किया गया था।
रमेश बूलियां ने नाहर नृत्य के बारे में बताया कि हम इस बार 411वां नाहर नृत्य मना रहे हैं। आज के दिन हमारी बहन, बेटियां, दामाद सभी गांव आते हैं। और भाईचारे की बहुत बड़ी मिसाल देते है। सुबह रंग खेलते हैं। बेगम और बादशाह की सवारी निकलती है ।शाम को शरीर पर रूई लपेटकर नाहर यानी सिंह का रूप कर नृत्य किया जाता है।
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यह नृत्य केवल राम और राज के सामने ही होता है। रंग तेरस के दिन लोग रंग खेलते हैं ओर अपने इष्ट राधा कृष्ण को भी होली खिलाते हैं। इस दौरान राधा कृष्ण के समक्ष रंग लगाते हुए भजन भी गाते हैं जहां दुर्गेश शर्मा ने भगवान राधा कृष्ण का भजन सुनाते हुऐ कहा की " नैणा नीचा करले श्याम रिझावे कोनी' गौरा -गौरा हाथों में रच रही मेहंदी।
नाहर नृत्य करने वाले कलाकार भैरू लाल माली का कहना है कि नाहर बनने के लिए रूई और धागा उपयोग किया जाता है। जिसे शरीर से लपेट कर नाहर का रूप धारण किया जाता है। यह नृत्य पूरे देश में केवल मांडल में ही किया जाता है। इस दिन सुबह विभिन्न पकवान बनाए जाते है और लोग एक -दूसरे के घर जाकर इनका आनंद उठाते है। और रात में इस नृत्य का आयोजन होता है।