Bihar Politics: क्या वाकई दिनों-दिन कठिन होती जा रही है बिहार में जेडीयू की राह?
वक्फ कानून का लेकर नीतीश कुमार ने समर्थन दिया, जिसके बाद नीतीश के कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। अब देखना है कि आगामी बिहार चुनाव में मुस्लिम वोटरों पर क्या असर पड़ेगा। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

पटना: जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के लिए राजनीतिक स्थिति कठिन होती जा रही है। पार्टी के तीन और मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, जिससे पार्टी की चुनावी स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। इन नेताओं ने इस्तीफे का कारण संसद में वक्फ बिल के प्रति जदयू के समर्थन को बताया है। अब तक कुल पांच नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दिया है।
इस्तीफा देने वाले नेता
हाल ही में इस्तीफा देने वालों में शाह नवाज मलिक, नदीम अख्तर और राजू नैय्यर शामिल हैं। मलिक जदयू के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राज्य सचिव थे, जबकि अख्तर जिला उपाध्यक्ष और नैय्यर राज्य सचिव के पद पर थे। इसके अलावा तबरेज सिद्दीकी और कासिम अंसारी ने भी इस्तीफा दिया था, जो जिला स्तर के कार्यकर्ता थे।
वक्फ बिल पर विवाद
जदयू ने भाजपा के साथ गठबंधन में वक्फ बिल का समर्थन किया। जिससे मुस्लिम समुदाय में नाराजगी देखी जा रही है। इससे पहले भी पार्टी ने नागरिकता संशोधन बिल (CAB) का समर्थन किया था और तीन तलाक बिल पर भी स्पष्ट विरोध नहीं किया था। इन फैसलों ने मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से को नाराज किया है।
बिहार में मुस्लिम मतदाता का प्रभाव
बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 18% है। जो चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनावों में यह देखा गया कि मुस्लिम समुदाय ने पूरी तरह से जदयू का समर्थन नहीं किया था। वर्तमान में नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में एकमात्र मुस्लिम प्रतिनिधि जमा खान हैं। जो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री हैं। वे पहले बीएसपी के टिकट पर चुने गए थे, लेकिन बाद में जदयू में शामिल हुए।
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बिहार की राजनीति पर क्या होगा असर?
बिहार में वक्फ बिल के समर्थन के कारण जदयू के मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे ने राज्य की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। इस घटना ने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में मुस्लिम समुदाय के वोटर के महत्व को उजागर किया है, क्योंकि यह समुदाय राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 18% है। जदयू द्वारा वक्फ बिल का समर्थन करने से मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से में नाराजगी पैदा हुई है। जिससे उनके राजनीतिक विश्वास पर असर पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप मुस्लिम मतदाता अब आरजेडी और कांग्रेस जैसे सेक्युलर दलों की ओर रुख कर सकते हैं, जो इस बिल का विरोध कर रहे हैं।
क्या होगा फायदा?
दूसरी ओर आरजेडी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए मुस्लिम समुदाय के बीच अपने सेक्युलर रुख को मजबूत कर सकता है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू को इस चुनौती का सामना करने के लिए स्पष्ट रणनीति बनानी होगी। वे मुस्लिम नेताओं और समुदाय के साथ संवाद कर सकते हैं। उनकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास कर सकते हैं। पार्टी के पिछले कल्याणकारी कार्यक्रमों को उजागर कर सकते हैं ताकि वोटर्स के बीच विश्वास बहाल किया जा सके।
जेडीयू ने क्यों दिया वक्फ पर भाजपा का साथ?
जदयू ने वक्फ बिल पर भाजपा का साथ इसलिए दिया क्योंकि यह निर्णय राजनीतिक, रणनीतिक और गठबंधन संबंधों के कई पहलुओं पर आधारित था। जदयू और भाजपा के बीच बिहार में लंबे समय से गठबंधन रहा है और यह निर्णय दोनों पार्टियों के बीच समन्वय के तहत लिया गया हो सकता है।
गठबंधन का दबाव और राजनीतिक रणनीति
जदयू ने भाजपा के साथ अपने गठबंधन को बनाए रखने के लिए वक्फ बिल का समर्थन किया हो सकता है। बिहार में भाजपा के साथ सत्ता साझा करने के चलते, जदयू को गठबंधन की स्थिरता बनाए रखने के लिए कुछ फैसलों में सहमति देनी पड़ी होगी।
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चुनावी गणित और सत्ता संतुलन
बिहार में आगामी चुनावों को देखते हुए जदयू ने सोचा होगा कि वक्फ बिल का समर्थन करने से मुस्लिम समुदाय के वोटों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा और वे अपने वोट बैंक को बनाए रख पाएंगे। इसके अलावा जदयू ने यह भी सोचा होगा कि उनके कल्याणकारी कार्य और विकास योजनाएं मुस्लिम समुदाय के बीच उनके समर्थन को बनाए रखने में मदद करेंगी।
क्या अब जेडीयू को नहीं मिलेगा मुस्लिमों का वोट?
वक्फ बिल के समर्थन के बाद जदयू को मुस्लिम समुदाय के वोट मिलने पर सवाल उठना स्वाभाविक है, खासकर जब पार्टी के कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, यह कहना अभी जल्दी होगा कि जदयू को पूरी तरह से मुस्लिम वोट नहीं मिलेगा। चुनावी परिणाम कई कारकों पर निर्भर करते हैं और वोटर के फैसले भी समय के साथ बदल सकते हैं। वक्फ बिल पर जदयू के रुख ने मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से में नाराजगी पैदा की है।
गठबंधन का प्रभाव
जदयू के गठबंधन के साथी भाजपा के रुख और रणनीति का भी असर पड़ेगा। यदि भाजपा के साथ संबंध तनावपूर्ण होते हैं तो यह जदयू के चुनावी प्रदर्शन को नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं, अगर गठबंधन मजबूत रहता है तो यह वोटरों को यह संदेश दे सकता है कि जदयू एक स्थिर और विकासशील विकल्प है।