भाजपा के नये जिला प्रभारी का पहला दौरा, फीके स्वागत से दो-चार, कार्यकर्ताओं से जोश गायब

शिवेन्द्र चतुर्वेदी/आशीष सोनी

भाजपा नेतृत्व की नयी व्यवस्था के तहत वरिष्ठ नेता दयाशंकर सिंह पहली बार सोमवार को जनपद मुख्यालय पहुंचे। इस दौरान सांसद और सिसवा विधायक कार्यक्रम में नही दिखे। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..

मीटिंग लेते हुए दयाशंकर सिंह
मीटिंग लेते हुए दयाशंकर सिंह


महराजगंज: भाजपा के जिला प्रभारी दयाशंकर सिंह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने जनपद मुख्यालय स्थित एक गेस्ट हाउस में सोमवार को पहुंचे। हाईकमान ने नयी व्यवस्था के तहत उन्हें जिले के संगठन का प्रभारी नियुक्त किया है। 

 

 

जिला संगठन के लिहाज से दयाशंकर की यह नियुक्ति काफी अहम है। वे प्रदेश स्तर के नेता हैं और संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष भी। बतौर जिला प्रभारी वे पहली बार जिले में पधारे। ये राज्य की कद्दावर मंत्री स्वाति सिंह के पति भी हैं और मायावती पर टिप्पणी करके ऐन विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा को राज्य में लीड दिलाने में इनकी अहम भूमिका रही थी। प्रदेश स्तर के बड़े नेता का इन सबके बावजूद जिस फीके अंदाज में स्वागत सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं ने किया वह कई सवालों को खड़ा कर रहा है।

 

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वह तो भला हो शहर विधायक जयमंगल कन्नौजिया का और शहर के नगर पालिका के बॉस कृष्ण गोपाल जायसवाल का.. कि दयाशंकर सिंह के गले में दो-चार मालाएं पड़ गयी नही तो सत्तारुढ़ पार्टी के सिस्टम का तो भगवान ही मालिक है। 

डाइनामाइट न्यूज़ की टीम जब मीटिंग स्थल पर पहुंची तो दबे स्वर में कार्यकर्ताओं में काना-फूसी जारी थी। गुटबाजी से बुरी तरह जूझ रही पार्टी की इस बेहद अहम बैठक में जिला पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और मंडल अध्यक्षों को बुलाया गया था। 

भाजपाइयों के चेहरे से गायब उत्साह को देख जिला प्रभारी असहज नजर आये। शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि पहली मीटिंग में यह हाल होगा। 

कार्यकर्ताओं के बीच सिर्फ इस बात की चर्चा रही कि सांसद पंकज चौधरी और सिसवा विधायक प्रेम सागर पटेल आखिर बैठक में क्यों नही आये।

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इस बारे में जब डाइनामाइट न्यूज़ ने जिलाध्यक्ष अरुण शुक्ला से पूछा तो उन्होंने कहा कि संसद सत्र के चलते सांसद नही आये और सिसवा विधायक के बारे में मुझसे कुछ मत पूछिये मैं उनके बारे में कुछ नही बता सकता।

इस बारे में सिसवा विधायक ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि आश्वासन समिति की एक बैठक के चलते वे इस मीटिंग में नही पहुंच सके। 

कार्यकर्ता इस बातकी कानाफूसी कर रहे थे कि क्या इतनी अहम.. पहली और परिचयात्मक मीटिंग को 7 अगस्त के बाद नही रखा जा सकता था जब संसद सत्र समाप्त हो जाता?

बड़ा सवाल यह है कि गुटबाजी से बुरी तरह झुलस रही भाजपा कैसे 2019 का चुनाव जीतेगी.. जिले संगठन में मची रार कैसे थमेगी..










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