नवरात्रि के प्रथम दिन शांति स्‍वरूपा मां शैलपुत्री की पूजा, जानिए मंत्र और पावन कथा

डीएन ब्यूरो

मां शैलपुत्री का स्‍वरूप शांत और सौम्‍य रहने की प्रेरणा देता है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है।

फाइल फोटो
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नई दिल्‍ली: नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसके पीछे धार्मिक और तात्‍व‍िक ज्ञान है। नवरात्रि को नौ शक्तियों का अनुष्‍ठान माना जाता है। जिसमें 9 शक्तियों के अलग-अलग रूपों की प्रतिदिन पूजा की जाती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार इन नौ शक्तियों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं।

पूर्णता का प्रतीक है नौ अंक
शाष्‍त्रों में बताया गया है कि अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है। नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है। ग्रहों में नौ ग्रहों को महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर साधना भी नौ दिन की ही उपयुक्त मानी गई है। किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो चक्रों को जागृत करने की साधना की जाती है। 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है। नौंवा दिन शक्ति की सिद्धि का होता है। शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति जागृत होती है। अगर सप्तचक्रों के अनुसार देखा जाए तो यह दिन कुंडलिनी जागरण का माना जाता है।

मां शैलपुत्री की पावन कथा
नवदुर्गाओं में पहला नाम शैलपुत्री का है जो गिरिराज हिमालय की पुत्री हैं। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष के यहां कन्या के रूप में अवतरित हुई थीं। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। कालांतर में मां जगदंबा इसी स्वरूप में पार्वती के नाम से देवाधिदेव भगवान शंकर की अर्धांगिनी हुईं।

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एक बार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ करवाया। उसमें शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया। सती ने पिता जी के यहां यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। शंकर जी के काफी समझाने पर भी सती नहीं मानीं। उन्होंने पिता के यहां पहुंचकर देखा कि परिवारजनों का उनके प्रति व्यवहार ठीक नहीं। यह देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। तब उन्हें भगवान शंकर की याद आई और उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया और सती हो गईं। उसके बाद से इन्हें सती नाम से जाना गया। समस्त वृत्तांत का पता चलने पर शंकर जी यह सहन न कर सके। सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस प्रकार वे शैलपुत्री कहलाती हैं। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है।

मां शैलपुत्री का मंत्र

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शास्त्रों के अनुसार माता दुर्गा के  नौ देवी रूप में हर स्वरूप के लिए एक पृथक बीज मंत्र होता है। नवरात्रि में इन मंत्रों का जाप करने से मां अत्यंत प्रसन्न होती हैं, और सुख समृद्धि का आर्शीवाद देती हैं। प्रथम दिन इस श्लोक का पाठ किया जाता है-
वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम‍्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम‍्।।

नवरात्रि में हर दिन कुमारी पूजन आवश्यक है। प्रथम दिन दो वर्षीय कन्या पूजन किया जाता है।










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