क्या वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों को अभियोजन से छूट प्राप्त है, न्यायालय करेगा विचार

डीएन ब्यूरो

अगर कोई व्यक्ति अपनी बालिग पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिये मजबूर करता है तो क्या ऐसे में पति को बलात्कार के अपराध के लिए अभियोजन से छूट प्राप्त है?

न्यायालय (फाइल)
न्यायालय (फाइल)


नई दिल्ली: अगर कोई व्यक्ति अपनी बालिग पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिये मजबूर करता है तो क्या ऐसे में पति को बलात्कार के अपराध के लिए अभियोजन से छूट प्राप्त है?

जब वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया तो प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद न्यायालय की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ इस पर गौर करेगी।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (दुष्कर्म) के एक अपवाद खंड की संवैधानिक वैधता चुनौती के अधीन है क्योंकि यह पति को अपनी बालिग पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए दुष्कर्म के तहत मुकदमा चलाने से छूट देता है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें वैवाहिक बलात्कार संबंधी मामलों को निपटाना होगा।’’ पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति मनोज सिन्हा भी शामिल हैं।

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि संवैधानिक पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई किए जाने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

जयसिंह ने कहा ‘‘मेरा मामला बाल यौन उत्पीड़न को लेकर है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इन मामलों की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई पूरी किए जाने के बाद इन्हें सूचीबद्ध किया जाएगा।

इस समय प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मोटर वाहन अधिनियम के तहत विभिन्न प्रकार के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के नियमों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

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पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से संबंधित याचिकाएं भी सुनवाई के लिए निर्धारित हैं।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने का अनुरोध करने वाली और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जो पति को बालिग पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने की सूरत में अभियोग से सुरक्षा प्रदान करता है।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी तथा ‘सामाजिक निहितार्थ’’ हैं और सरकार इन याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करेगी।

इन याचिकाओं में से एक याचिका वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के 11 मई, 2022 के खंडित फैसले के संबंध में दायर की गई है।

यह अपील दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक महिला द्वारा दायर की गई है।

दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ में शामिल दो न्यायाधीशों-न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने मामले में उच्चतम न्यायालय में अपील करने की अनुमति दी थी, क्योंकि इसमें कानून से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल शामिल हैं, जिन पर न्यायालय द्वारा गौर किए जाने की आवश्यकता है।

खंडपीठ का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति शकधर ने वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद को ‘असंवैधानिक” बताते हुए रद्द करने का समर्थन किया और कहा कि यह “दुखद होगा अगर आईपीसी के लागू होने के 162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय के लिए गुहार नहीं सुनी गई”।

न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि दुष्कर्म कानून के तहत अपवाद “असंवैधानिक नहीं है और एक बोधगम्य अंतर पर आधारित है”।

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बोधगम्य अंतर की अवधारणा उन लोगों या चीजों के समूह से विभेद करती है जो बाकियों से अलग हैं।

एक अन्य याचिका, एक व्यक्ति द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। इस फैसले के चलते उस पर अपनी पत्नी से कथित तौर पर बलात्कार करने का मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया था।

दरअसल, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 23 मार्च को पारित आदेश में कहा था कि अपनी पत्नी के साथ बलात्कार तथा अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से पति को छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है।

उच्चतम न्यायालय में इस मामले में कुछ अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं।

कुछ याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को मिली छूट की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव है, जिनका उनके पति द्वारा यौन शोषण किया जाता है।

 










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