देहरादून: रतनेश्वर जन कल्याण समिति ने सुझाये उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन के उपाय

सुभाष रतूड़ी

दुनिया में देवभूमि के रूप में पहचान बनाने वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड देश के लिये प्रकृति का एक शानदार तोहफा है, लेकिन पलायन के कारण खाली हो रहे गांव अब इसकी पहचान को धूमिल कर रहे है। राज्य की प्रमुख सामाजिक संस्था रतनेश्वर जन कल्याण समिति अब रिवर्स माइग्रेशन के जरिये राज्य को इसकी वास्तविक रौनक लौटाने में जुटी है।

बैठक को संबोधित करते मैती आंदोलन के प्रणेता के एस रावत
बैठक को संबोधित करते मैती आंदोलन के प्रणेता के एस रावत


नई दिल्ली: उत्तराखंड संबंधी जन-सरोकारों और गांवों के विकास के लिये कार्यरत सामाजिक संस्था रतनेश्वर जन कल्याण समिति (रजकस) की देहरादून में आयोजित बैठक में पलायन के कारण खाली हो रहे गांवों को दोबारा उनकी ‘रौनक’ लौटाने और शहरों में रहने वाले पहाड़ के लोगों को रिवर्स माइग्रेशन (प्रति-पलायन) के लिये प्रेरित करने के लिये कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये और सुझाव दिये गये।

शहर में रहने वालों के प्रति न बदलें नजरिया

समिति के अध्यक्ष शंभु प्रसाद रतूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड के जो लोग किन्हीं कारणों से भौतिक तौर पर भले ही शहरों में रह रहे हों, लेकिन सच यह है कि उनका मानसिक पलायन नहीं हुआ है। शहरों में रहने वाले लोग भी आज मानसिक तौर पर उत्तराखंड और यहां के गांवों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रवासी और शहरी उत्तराखंडियों के मन में भी अपनी माटी के प्रति पूरा लगाव और दर्द है। इसलिये ऐसे लोगों के प्रति कोई अन्य नजरिया नहीं रखा जाना चाहिये। उन्होंने उत्तराखंड मूल के सभी लोगों से भी समिति से जुड़कर रिवर्स माइग्रेशन और गांवों के विकास की दिशा में महत्पूर्ण भूमिका निभाने का भी आव्हान किया।  

टूरिज्म कॉरिडोर विकसित किये जाएं

रजकस की इस बैठक में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड के जल, जंगल और जमीन यहां की असली ताकत है, जो पर्यटन की असीम संभावनाओं को समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि रिवर्स माइग्रेशन के लिये रोजगार की दिशा में हम सभी को मिलकर काम करना चाहिये। उन्होंने कहा कि पर्यटन को बढ़ावा देकर उत्तराखंड में रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर पैदा किये जा सकते है। इसके लिये सरकार को भी अपनी सोच चार धाम से भी आगे लेकर जानी चाहिये। राज्य में मौजूद आदिबदरी जैसे कई आध्यात्मिक व पौराणिक महत्व के मंदिरों तक की यात्रा को चार धाम में शामिल किया जाना चाहिये। राज्य में बड़ी संख्या में कई छोटे-बड़े मंदिर और नैसर्सिगक सौंदर्य से भरे पर्यटक स्थल है, इसलिये हर जिले में तहसील स्तर पर छोटे-छोटे टूरिज्म कॉरिडोर विकसित किये जाने चाहिये। ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके और क्षेत्र का विकास संभव हो सके। श्री रावत ने कहा कि इसके अलावा उत्तराखंड की माटी और जलवायु में कई ऐसे फल-फूल और सब्जियों को उगाया जा सकता है, जिन्हें जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते है। इस तरह की उपज से अच्छे दाम प्राप्त किये जा सकते है। 

वक्ताओं ने कहा- पर्यटन को दिया जाये बढ़ावा

 

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गांवों में शुरू हो ग्राम गंगा अभियान

श्री रावत ने इस मौके पर प्रत्येक गांव में ग्राम गंगा अभियान चलाने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत गांव का प्रत्येक व्यक्ति एक गुल्लख (दान पात्र) बनाये और उस पर गांव, ईष्टों और पित्रों (पूर्वजों) का नाम लिखकर अपने दैनिक पूजा स्थल पर रख दें। इसमें दैनिक आधार पर रेजगारी जमा की जाये और साल भर में जमा रेजगारी से पर्यावरण दिवस 5 जून पर कोई फलदार पौधा खरीदा जाये। इस पौधे का रोपण कर गांव के किसी व्यक्ति को इसके देख-रेख का जिम्मा सौंपा जाये और इसके ऐवज में उसे कुछ प्रोत्साहन राशि दी जाये। इससे पौधा भी संरक्षित होगा और एक विद्यार्थी या व्यक्ति को कुछ राशि भी अर्जित हो सकेगी।  

सड़क मार्ग के जरिये यात्रा करें नेता

समिति की बैठक में दूसरे प्रमुख वक्ता सेवानिवृत्त आयकर आयुक्त देवी प्रसाद सेमवाल ने कहा कि रिवर्स माइग्रेशन के लिये हमें सरकार पर निर्भर न रहकर इसकी स्वयं पहल करनी चाहिये। गांवों में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार समेत तमाम बुनियादी सुविधाओं की स्थापना कर लोगों को वापस गांव की तरफ आकर्षित किया जाना चाहिये। उन्होंने राज्य में रोजगार सृजन और पलायन को रोकने के लिये सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के अलावा अन्य किसी भी मंत्री को आपादा कि स्थिति के अलावा अन्य मौकों पर हेलीकॉप्टर से अपने क्षेत्र या चार धाम यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। नेताओं को सड़क मार्ग के जरिये ही भ्रमण करना चाहिये ताकि वो वास्तविकता से रुबरू हो सकें। उत्तराखंड पलायन आयोग के गठन को लेकर भी उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जो अधिकारी गांव में न रहता हो, उसको पलायन आयोग का काम सौंपने या सदस्य बनाने का कोई औचित्य नहीं है। श्री सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड के कई लोग शहरों में बसकर आज अपराधबोध से ग्रस्त हो रहे हैं।

बैठक को संबोधित करते देवी प्रसाद सेमवाल

नियमित तौर जायें गांव, बनायें मकान 

ऑफिसर ट्रांजिट हॉस्टल रेसकोर्स में रविवार को आयोजित रत्नेश्वर जनकल्याण समिति की इस बैठक में ‘पलायन एक चिंतन’ टीम के अखिलेश डिमरी ने रिवर्स माइग्रेशन की पहल को लेकर अपने अनुभव साझा किये और उत्तराखंड के शहरी लोगों से नियमित तौर पर अपने गांव जाने, वहां पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ाने और एक छोटा व अच्छा घर बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि शॉर्ट होमस्टे के जरिये राज्य के सुदूरवर्ती गांवों में रोजगार के साथ-साथ पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है, इससे वहां की आर्थिकी अधिक सेहतमंद होगी और जन सुविधाएं भी स्थापित की जा सकेंगी। 

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भौगोलिक स्थिति के अनुकूल करें बागवानी

खाद्य प्रसंस्करण और बागवानी विशेषज्ञ गजेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि हिमाचल की बहुत सारी स्थितियां उत्तराखंड से मिलती है। प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद भी हिमाचल में कई तरह की फल-सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मजबूत इच्छाशक्ति के बूते पर उत्तराखंड में भी बंजर पड़े खेतों को आबाद किया जा सकता है और उनमें फल-सब्जियों के उत्पादन से बेहतर कमाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि बंदरों व जंगली जानवरों से बचाव के लिये करौंदा, नींबू, आंवले जैसे फलों की खेती उत्तराखंड में की जा सकती है। उन्होंने कहा कि वह समिति के सुझाव पर उत्तराखंड के दूर-दराज के क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे ताकि वह वहां की भौगोलिक स्थिति जान सकें कि कौन सा क्षेत्र किस फसल, फल या सब्जी आदि के लिये उपयोगी है। उन्होंने समिति को इस बारे में हर संभव सहयोग का आश्वासन भी दिया।  

ग्रामीणों से चकबंदी अपनाने की अपील

बैठक में रजकस के सचिव अरूण रतूड़ी ने समिति द्वारा अब तक अर्जित उपलब्धियों, भावी योजनाओं और दूरगामी उद्देश्यों से भी उपस्थित लोगों को अवगत कराया। उन्होंने गांवों के विकास और आय के साधन के लिये ग्रामीणों से चकबंदी को अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि यदि गांव के 70 फीसदी लोग चकबंदी पर लिखित सहमति देते हैं तो इस दिशा में सरकार के साथ काम करके आगे बढ़ा जा सकता है, जिसके कई सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।

विचार और सुझाव  

बैठक में मुकेश सेमवाल, डॉ. एसपी कण्डवाल, उद्धव कण्ड़वाल, डॉ. सुनील डिमरी जैसे कई चिंतकों ने अपने विचार और सुझाव रखे। बैठक में उत्तराखंड के कई गांवों के लोगों के अलावा दिल्ली से आये लोग भी शामिल रहे, जिनमें दिनेश  मलगुड़ी, उमेश  रावत, सतीश  रतूड़ी, प्रेम ड्यूंडी, द्वारिका प्रसाद चमोली, प्रेम बल्लभ, शंभु प्रसाद मलगुड़ी, अजय रतूड़ी, कैलाश  रतूड़ी शंकर पथिक आदि उपस्थित रहे।










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