अमृता देवी के बलिदान पर मनाया पर्यावरण दिवस
भारतीय मजदूर संघ और वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया ने भारतीय पर्यावरण दिवस मनाने की अनूठी परंपरा शुरू की है। जानिये इस पर्यावरण दिवस को शुरु करने के पीछे की प्रेरक कहानी और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के बारे में..
नई दिल्ली: भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के बैनर तले वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया (डब्ल्यूजेआई) द्वारा अमृता देवी के बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में एनडीएमसी सेंटर में पर्यावरण दिवस का आयोजन किया। इस अवसर पर दिल्ली के सुदूर इलाकों से आए मजदूरों को 300 वृक्ष और तुलसी के पौधे वितरित किए गए। बीएमएस और डब्ल्यूजेआई द्वारा भारतीय पर्यावरण दिवस मनाने की एक नई परंपरा शुरू की गई है। संस्था का कहना है कि जुलाई और अगस्त माह वृक्षारोपण के लिए सबसे बेहतर रहता है। संस्था चाहती हैं कि वृक्षों को बचाने में बलिदान देने वालों को भी याद रखा जाए।
वृक्षों की पूजा करने की अपील
पर्यावरण कार्यक्रम का शुभारंभ बीएमएस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बैजनाथ, रा.उपाध्यक्ष जयंती लाल, प्रदेशाध्यक्ष बी एस भाटी, महामंत्री नागेंद्र पाल तथा डब्ल्यू जे आई के अध्यक्ष संजीव शेखर झा, महासचिव नरेंद्र भंडारी, उपाध्यक्ष अनूप चौधरी, कोषाध्यक्ष अंजलि भाटिया, विपिन चौहान और अर्जुन जैन ने दीप प्रज्वलित कर किया। बीएमएस के सभी वक्ताओं ने अमृता देवी को याद कर वृक्षारोपण पर बल दिया। वक्ताओं ने कहा कि वृक्ष हमें जीवन देते हैं इसलिए हमें इनकी रक्षा करनी चाहिए और पूजा करनी चाहिए।
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छात्रों ने किया मंत्रमुग्ध
इस अवसर पर मुनि इंटरनेशनल स्कूल, मोहन गार्डन, उत्तम नगर के विद्यार्थियों ने शिक्षक प्रीति चंदेल के नेतृत्व में प्रस्तुत सरस्वती वंदना, वन्दे मातरम्, पर्यावरण गीत-संगीत और स्वच्छ भारत पर नाटक उपस्थित कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गायिका रितु कपिल ने गांधी जी का प्रिय भजन और ‘स्वच्छ भारत का है इरादा’ गीत प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन उदय कुमार मन्ना ने किया।
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अमृता देवी की शहादत की कहानी
राजस्थान के नागौर स्थित खेजड़ली गांव में 286 साल पहले हरे-भरे पेडों को बचाने के लिए एक मुहिम चली थी, जिसमें 363 लोगों ने अपनी जान दे दी थी। 1760 की इस घटना में नागौर जिले के खेजड़ली गांव में महाराजा अभय सिंह द्वारा महराणगढ़ किले में फूल महल नाम का राजभवन बनाया जा रहा था और इसके लिए लकड़ी की आवश्यकता पड़ी, तो सिपहसालार खेजड़ली गांव में पहुंचे।
रामू खोड नामक व्यक्ति के घर के बाहर उन्होंनें पेड़ काटना शुरू किया। रामू खोड की धर्मपत्नी अमृता देवी बिश्नोई ने सिपाहियों को पेड़ काटने से रोका। सिपाही नहीं माने तो अमृता देवी अपनी जान की परवाह न करते हुए पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई। सिपाहियों ने अमृता देवी का अंग अंग काटकर फेंक दिया। इसके बाद एक-एक कर 363 ग्रामवासी शहीद हो गए। संस्था का कहना है कि पेडों को बचाने के लिए बलिदान की इस सच्ची व्यथा-कथा को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया गया।