विदेशों बाजारों में मजबूती के रुख से खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में सुधार
विदेशों में कमजोरी के रुख के बीच दिल्ली तेल- तिलहन बाजार में बुधवार को सभी तेल-तिलहन कीमतों में हानि दर्ज हुई तथा सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल कीमतों में गिरावट आई।
नई दिल्ली: विदेशों में कमजोरी के रुख के बीच दिल्ली तेल- तिलहन बाजार में बुधवार को सभी तेल-तिलहन कीमतों में हानि दर्ज हुई तथा सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल कीमतों में गिरावट आई।
बाजार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 2.5 प्रतिशत की गिरावट रही, जबकि शिकॉगो एक्सचेंज कल रात 4.5 प्रतिशत नीचे था और फिलहाल यहां आधा प्रतिशत की गिरावट है।
सूत्रों ने कहा कि जब किसान सस्ते दाम पर फसल बिक्री नहीं कर उसे रोके हुए हैं तो कुछ तेल संगठन वायदा कारोबार खोलने की मांग करते दिख रहे हैं, ताकि वायदा कारोबार खुलते ही दाम तोड़कर फसल खरीदी जा सके। लेकिन पिछले दो साल में अच्छी कीमत प्राप्त कर चुके किसान सस्ते में बेचने को राजी नहीं दिख रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि तेल-तिलहन उद्योग में कीमतों की स्थिरता को बनाये रखने के लिए वायदा कारोबार पर रोक जारी रहनी चाहिये। इसी रोक के कारण भले ही किसान कम बिकवाली कर रहे हों पर सोयाबीन तेल के दामों में स्थिरता है। वायदा कारोबार खुला होता तो कीमतों में उठापटक मची होती।
सूत्रों ने कहा कि मलेशिया में तेल रखने की जगह नहीं है और देश का बाजार इनकी (पामोलीन) पनाहगाह बनता जा रहा है। यही हाल सूरजमुखी तेल का भी है। आयातित तेलों के दाम इतने सस्ते हैं कि कारोबारियों ने नवंबर तक की जरूरत का खाद्य तेल आयात कर लिया है। पिछले महीने सब मिलाकर पाइपलाइन में खाद्य तेलों का स्टॉक रिकॉर्ड 34 लाख टन का था। मजेदार बात यह है कि खाद्य तेलों के शुल्कमुक्त आयात की छूट के बाद भी इन्हीं सूरजमुखी तेल को थोक एवं खुदरा बाजार में महंगे भाव पर बेचा जा रहा है। जबकि शुल्कमुक्त आयात का मकसद उपभोक्ताओं को खाद्य तेल सस्ते में उपलब्ध कराना था। ऐसे में सरकार को 31 मार्च तक विदेशों से चली खाद्यतेल की खेप पर शुल्क लगाने के बारे में सोचना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि देशी सरसों और सोयाबीन खप नहीं रही और पूरा बाजार नवंबर तक के लिए आयातित तेलों से पटा होने की स्थिति में है। मौजूदा समय में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 5-10 प्रतिशत नीचे है जबकि देश का सूरजमुखी बीज एमएसपी से 30-35 प्रतिशत नीचे बिक रहा है। कुछ तेल संगठनों की राय है कि संभवत: मुद्रास्फीति बढ़ने की चिंता के कारण सरकार आयात शुल्क बढ़ाने जैसा कोई कदम उठाने से हिचक रही है। जबकि सूत्रों का मानना है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए अन्य उपाय भी किये जा सकते हैं।
सूत्रों ने कहा कि पिछले वर्ष देश की तेल मिलें पूरी क्षमता से काम कर रही थीं और इस बार 75 प्रतिशत मिलें बंद हो चुकी हैं। सस्ते आयातित तेलों की मार से तेल- तिलहन उद्योग की हालत खराब है और यह अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है।
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की अगले नवंबर महीने तक की जरूरत को पूरा करने लायक आयात हुआ है लेकिन देशी तिलहन से जो खल प्राप्त होता है उसके आगे जाकर कमी बढ़ेगी। खल का जो दाम कुछ महीने पहले लगभग 2,200 रुपये क्विंटल हुआ करता था वह मौजूदा समय में बढ़कर 2,800 रुपये क्विंटल हो गया है। यह सब आने वाले समय के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मौजूदा स्थिति देश के तेल-तिलहन उद्योग को बर्बादी की ओर ले जायेगी इसे तत्काल नियंत्रित करने के चौतरफा प्रयास किया जाना चाहिये।
बुधवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
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सरसों तिलहन - 5,515-5,610 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,840-6,900 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 16,700 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,545-2,810 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 10,800 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,700-1,770 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,700-1,820 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 11,500 रुपये प्रति क्विंटल।
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सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 11,340 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 9,100 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,050 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,550 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,700 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 5,450-5,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 5,200-5,300 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।