Happy Mother’s Day: पढिये चंबल घाटी में कुख्यात महिला डकैतों के मां बनने की दर्द भरी दास्तान और जीवटता की कहानी

डीएन ब्यूरो

खूंखार डाकुओ की शरणस्थली के तौर पर कुख्यात रही चंबल घाटी मे महिला डकैतों के मां बनने की दर्द भरी दास्तान उनके जीवटपूर्ण जीवन का अहसास हर किसी को कराती है। डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में पढ़िये महिला मां के रूप में महिला की डकैतों की जीवटता की कहानी

कई महिला डकैत बीहड़ों में बनी मां
कई महिला डकैत बीहड़ों में बनी मां


इटावा: खूंखार डाकुओं की शरणस्थली के तौर पर कुख्यात रही चंबल घाटी में महिला डकैतों के मां बनने की दर्द भरी दास्तान उनके जीवटपूर्ण जीवन का अहसास हर किसी को कराती है ।

मदर्स डे की शुरूआत अगर सही मायने मे किसी से की जा सकती है तो वो है सीमा परिहार,जो एक जमाने मे चंबल मे आंतक का पर्याय रही है। चंबल के बीहड़ों में रहते हुए सबसे पहले सीमा परिहार ने अपने बच्चे को जन्म दिया। एक समय था जब चंबल में सीमा के नाम की तूती बोला करती थी। सीमा बीहड़ में आने से पहले अपने माता-पिता के साथ मासूमियत के साथ जिंदगी बसर कर रही थी।

दस्यु सरगना लालाराम सीमा को उठा कर बीहड़ में लाया था। बाद में लालाराम ने गिरोह के एक सदस्य निर्भय गुर्जर से सीमा की शादी करवा दी, लेकिन दोनों जल्दी ही अलग हो गए। सीमा चंबल में गुजारे अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि निर्भय गुर्जर से अलग होने के बाद लालाराम के साथ रहने लगी । लालाराम से उसे एक बेटा है। जिसका उसने सागर नाम रखा है । आज उसका बेटा सागर अपने बेहतर भविष्य के लिए पढ़ाई करने में लगा हुआ है ।

18 मई, 2000 को पुलिस मुठभेड़ में लालाराम के मारे जाने के बाद 30 नवंबर, 2000 को सीमा ने आत्मसमर्पण कर दिया था। फिलहाल, जमानत पर चल रही सीमा औरैया में रहते हुए राजनीति में सक्रिय हुई है । फूलनदेवी के चुनाव क्षेत्र मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी सीमा परिहार टेलीविजन शो बिग बॉस में हिस्सा रह चुकी है।

यह भी पढ़ें | लोगों ने धूम-धाम से दुर्गा प्रतिमाओं का किया विसर्जन, सुरक्षा व्यवस्था रही कड़ी

सीमा परिहार ने कहा कि आज की तारीख में उसकी जिंदगी ठीक-ठाक तरीके से चल रही है, लेकिन चंबल के बीहड़ों में अपनी जिंदगी का जो समय गुजारा है, बीहड़ों में जो दर्द और तकलीफ झेली है, उसे भूल पाना नामुमकिन है। सात नवंबर, 2005 को निर्भय गुर्जर की मौत के बाद जब सीमा ने अपने पति का पुलिस प्रशासन से शव मांगा तो उसके अनुरोध को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया, बावजूद इसके सीमा ने वाराणसी में मोक्षदायिनी गंगा में निर्भय की अस्थियां विसर्जित कर जबरन पत्नी का दर्जा हासिल करने की कोशिश की।

सीमा परिहार के बाद डकैत चंदन की पत्नी रेनू यादव का नाम समाने आता है जिसने चंदन यादव से रिश्ते रखते हुए एक बेटी को जन्म दिया । रेनू यादव औरैया जिले के जमालीपुर गांव की रहने वाली है । रेनू से रिश्तो को लेकर चंदन यादव ने जमालीपुर गांव मे भीषण अग्निकांड को अंजाम दे दिया था जिसकी गूंज हर ओर सुनाई दी थी । 5 जनवरी 2005 को चंदन यादव को इटावा पुलिस ने तत्कालीन एसएसपी दलजीत सिंह की अगुवाई मे पुलिस ने औरैया जिले मे मई गांव के बीहडो मे एक मुठभेड मे मार गिराया था।

चंबल के खूंखार डाकू सलीम गुर्जर के साथ करीब पांच साल बीहड़ में रहीं उनकी पत्नी सुरेखा दिवाकर 14 वर्ष जेल काटने के बाद गांव की बेटियों को सिलाई-कढाई सिखाकर अपनी जिंदगी ना केवल बिता रही है बल्कि अपने बेटे के भविष्य को भी सवार रही है। सहसो इलाके के बदनपुरा निवासी सुरेखा दिवाकर के पिता देवीचरण सहसों थाने में चौकीदार थे। पुलिस की मुखबिरी करने के शक में 12 मार्च सन 1999 को डाकू पहलवान उर्फ सलीम गुर्जर 13 वर्षीय सुरेखा को उठा ले गया था। तब वह कक्षा पांच में पढ़ती थीं।

यह भी पढ़ें | Crime in UP: मां ने किया PUBG खेलने से मना तो, गुस्साए बेटे ने उतारा मौत के घाट

सुरेखा को जंगल में ले जाकर सलीम ने उनसे शादी की। वर्ष 2004 में प्रसव के लिए भिंड के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुईं थीं। 11 जून को गिरफ्तार कर लिया। सुरेखा ने 12 जून को पुलिस अभिरक्षा में बेटे सूरज को जन्म दिया। उरई में 11, भिंड में तीन और इटावा में 50 से अधिक वारदात के मुकदमे चलाए गए। 14 वर्ष तक वह तीनों जिलों की जेल में रहीं। वर्ष 2018 में साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने सुरेखा को दोष मुक्त कर रिहा कर दिया। गांव आकर सुरेखा मजदूरी करने के साथ गांव की बेटियों को कढ़ाई बुनाई और सिलाई सिखाने लगी।

सुरेखा की गिनती संभ्रांत ग्रामीणों में होने लगी। वह अपने बेटे सूरज को पढ़ा लिखा कर सरकारी अधिकारी बनाना चाहती हैं। बेटा इस समय कक्षा पांच का छात्र है। राजस्थान के कुख्यात डकैत जगत गुर्जर के गैंग की महिला डकैत कोमेश गुर्जर ने भी बीहड़ में रह कर मां बनने मे गुरेज नहीं किया। बीहड़ मे जहां हर पल मौत से सामना होता है, वहीं पर कोमेश ने दुर्गम हालात में मां बनने का फैसला किया। धौलपुर जिले के पूर्व सरपंच छीतरिया गुर्जर की बेटी कोमेश अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बंदूक उठा कर बीहड़ों में कूद गई थी। गिरोह में साथ-साथ रहने के दौरान जगन गुर्जर और कोमेश एक दूसरे के करीब आ गए।

शादीशुदा और दो बच्चों के पिता जगन से उसकी नजदीकी इस कदर बढ़ गई कि साढ़े चार फुट लंबी 28 वर्षीय कोमेश गिरोह में जगन की ढ़ाल मानी जाने लगी। मुरैना में मध्य प्रदेश के साथ हुई एक मुठभेड़ में गोली लगने से कोमेश घायल हो गई थी। जगन उसे पुलिस की नजरों से बचाकर अपने साथ ले गया लेकिन धौलपुर के समरपुरा के एक नर्सिंग होम में 5 नवंबर, 2008 को इलाज करा रही कोमेश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

कोमेश की जुदाई जगन से बर्दाश्त नहीं हुई और उससे मिलने को बेचैन जगन ने 31 जनवरी, 2009 को राजस्थान के करौली जिले के कैमरी गांव के जगदीश मंदिर के परिसर में दौसा से कांग्रेस सांसद सचिन पायलट के सामने इस शर्त पर आत्मसमर्पण कर दिया कि उसे और कोमेश को एक ही जेल में रखा जाए। आत्मसमर्पण के समय जगन ने भावुक हो कर कहा कि वह अब आम आदमी की तरह सामाजिक जीवन जीना चाहता है।

अरविन्द गुर्जर और रामवीर गुर्जर दोनों ने साल 2005 में बबली और शीला से डाकू जीवन में ही बीहड़ में शादी रचाई दोनों पर कई मुक़दमे भी दर्ज रहे, रामवीर की बीबी शीला ने नर्मदा नाम की एक बेटी को जन्म दिया। आज नर्मदा अपनी मां के साथ मध्य प्रदेश के इंदौर में पढ़ाई करके जीवन उत्थान में जुटी हुई है। चंबल घाटी के कुख्यात डकैत छविराम की पत्नी ने तमाम संघर्षों के बाद अपने बेटे को समाज में जो सम्मान दिलाया है, उसकी तो दूसरी मिसाल मिलना ही मुश्किल है । डकैत छविराम की पत्नी संघर्षों से कभी नहीं घबराई। उन्होंने अपने बेटे अजय पाल यादव को पढ़ाया-लिखाया। (वार्ता)










संबंधित समाचार