BLOG: शैक्षिक समुदाय एवं अभिभावकों की बजट से अपेक्षा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपना तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करने जा रही है। प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास के इस ब्लॉग में पढ़िये शैक्षिक समुदाय एवं अभिभावकों की बजट से क्या है अपेक्षा
नई दिल्ली: वर्ष 2020, में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के केन्द्र में दूसरे कार्यकाल का प्रथम बजट पेश किया तथा 01 फरवरी 2024 को वित्त वर्ष 2024-25 का अंतरिम बजट पेश किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, शैक्षिक संस्थानों के मालिकों, शिक्षाविदों और विद्यार्थियों को उत्सुकता रही कि इस वित्त वर्ष में शिक्षा हेतु केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय को कितनी धन राशि का आवंटन किया जायेगा?
बजट में उच्च शिक्षा को लेकर क्या-क्या घोषणाएं हो सकती है ? इस संबंध में विस्तृत चर्चा से पूर्व हमें कम से कम मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में शिक्षा पर आवंटित बजट को इस सारणी के मध्य से समझने की आवश्यकता है।
शिक्षा मंत्रालय को आवंटित बजट सारणी
वर्ष 2021 के बजट में, विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को शिक्षा के समस्त स्तरों पर लागू किया जाने और शिक्षा पर जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत खर्च करने का प्रस्ताव भी इसके साथ रखा गया।
वर्ष 2021 के बजट में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अंतर्गत नये विद्यालय और लेह में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना और उच्च शिक्षा में अधिकाधिक नामांकन की दृष्टि से बजट आवंटित किया |
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वर्ष 2022 के शिक्षा बजट में मॉडल विद्यालयों, शिक्षकों के प्रशिक्षण और कुछ विशिष्ट संस्थानों को छात्रवृति के आवंटन पर जोर दिया गया था | वर्ष 2923 के बजट में समग्र शिक्षा अभियान के लिए बड़ी राशि 37,453 करोड़ रुपये आवंटित की गई । बजट में एकलव्य विद्यालयों के लिए 38,000 से भी ज्यादा शिक्षकों को भर्ती करने की घोषणा भी की गयी।
23 जुलाई 2024 को अंतरिम बजट पेश होगा यदपि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है 2024 के अंतरिम बजट में लोगों को बड़ी घोषणाओं की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए तथापि देश की जनता और विशेषकर युवाओं की नजर शिक्षा मंत्रालय को की जाने वाली आवंटन राशि पर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का यह लगातार 11वां बजट होगा, सीमित विकल्प के साथ प्रत्येक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना होगा | लेकिन इस बार सरकार के पास चुनौती बड़ी है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी सहयोगी दलों के सलाह-मशवरा और सुझावों को अनदेखा नहीं कर सकती।
सरकार का दृष्टिकोण
सुश्री सीतारमण के अनुसार 10 वर्षों में उच्च शिक्षा में महिलाओं के नामांकन में 28% की वृद्धि हुई है। "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 परिवर्तनकारी सुधारों की शुरुआत कर रही है, और समग्र और सर्वांगीण व्यक्तियों का पोषण हो रहा हैं।" केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जी का कहना है कि इस वर्ष का बजट विकसित भारत की दिशा में एक कदम साबित होगा।
नये आई आई टी और आई आई एम की स्थापना पर भी चर्चा की गई। स्किल इंडिया (कुशल भारत) के अंतर्गत देश के 1.4 करोड़ युवाओं को कौशल और कौशल उन्नयन दिया जाएगा। इसका अभिप्राय है कि कुशल जनशक्ति को अधिक रोजगार मिलेगा और लोगों की जीवनशैली में सुधार होगा।" विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने कहा कि “बजट में समावेश, अवसर और नवाचार का शक्तिशाली संदेश परिलक्षित होता है।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों, मानित विश्वविद्यालयों, शोध और नवाचार, पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक और शिक्षण मिशन के लिए आवंटन में वृद्धि देखकर हमें खुशी हो रही है, जो इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।"
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शिक्षाविदों की अपेक्षा
वित्त मंत्री, शिक्षा मंत्री और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के वक्तव्य उनके दृष्टिकोण से प्रसन्नतता देने वाले है। क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 को भारत में 2030 तक पूरी तरह से लागू करने का लक्ष्य रखा जा चुका है तथा 2023 -24 सत्र से, सभी नव प्रशिक्षित शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप प्रशिक्षित किया जाएगा यह निर्णय भी लिया जा चुका है। इन सबके अतिरिक्त सही अर्थों में सरकार को साधारण आम भारतीय की अपेक्षाओं पर खरा उतारने की नितांत आवश्यकता क्योंकि अपने वेतन, आय तथा आमदनी का बड़ा हिस्सा टेक्स के माध्यम से देश के विकास के लिए उनके द्वारा दिया जाता हैं | आम नागरिक क्या चाहता है ? मेरे दृष्टिकोण से आवश्यक है कि इस पर चर्चा की जाये।
शिक्षा मंत्रालय को शिक्षा के लिए बजट में आवंटित राशि को संख्यात्मक वृद्धि की अपेक्षा गुणात्मक सुधार के लिए सुनिश्चित करना चाहिए | स्वतंत्रता के बाद से अनेकों शिक्षा नीतियाँ बनी, लेकिन वह पूरी तरह से लागू नहीं हुई | इसलिए भारत में साक्षरता तो तीव्रता से बढ़ रही है, लेकिन जनमानस शिक्षित नहीं हो रहा हैं।
कारण:
नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने की मंशा में कमी।
शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था और सुविधाओं में कमी।
स्व पोषित संस्थानों की मनमानी तथा उन पर नजर रखे जाने के ठोस प्रावधान का नहीं होना।
नीतियों के अनुरूप शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए प्रशिक्षण की अनदेखी।
प्रवेश परीक्षाओं का पाठयक्रम की वास्तविक मांग से सरोकार ना होना।
मूल्यांकन परीक्षाओं का व्यवसाय और कौशल से तारतम्य ना होना।
ऐसे में शिक्षा मंत्रालय को आवंटित राशि का कुछ प्रतिशत विद्यालयी शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ शिक्षकों के प्रशिक्षण और कौशल आधारित पाठयक्रम के निर्माण हेतु होना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्य की प्राप्ति तथा विकसित भारत के स्वपन को साकार करने के लिए बजट में सबसे अधिक आवंटन गुणवत्ता आधारित शिक्षा के लिए किया जाना चाहिए एवं धन के सही सदुपयोग हेतु कड़े नियमों चाहिए।
(लेखिका प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास, फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। डॉ. व्यास संपादक, शिक्षिका, कवियत्री और लेखिका होने के साथ-साथ समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है। ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं)