Success Story: किसान ने छोड़ी गेहूं-धान की पारंपरिक खेती, नया तरीका अपनाकर लिखी नई इबारत, आज कमाई लाखों में, पढिये एक्सक्लूसिव स्टोरी

डीएन ब्यूरो

खेती-किसानी को यदि व्यवसायिक और नये नजरिये से देखा जाए तो इससे कोई भी नई इबारत लिख सकता है। ऐसी ही कहानी महराजगंज से सामने आयी है, जहां एक किसान ने गेहूं-धान की पारंपरिक खेती को छोड़कर स्ट्रॉबेरी की खेती करनी शुरू की और नया इतिहास लिख दिया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट



धानी (महराजगंज): ज्यादा मुनाफे के लिये किसान अब धान-गेहूं की पारंपरिक फसलों के अलावा नये तरीके से फलों और सब्जियों की खेती का रुख कर रहे हैं। खेती-किसानी को व्यवसायिक और नया रूप देकर जनपद के एक किसान ने भी नई इबारत लिखी है। धानी ब्लॉक के बैसार टोला कचुरहा के रहने वाले प्रगतिशील किसान हरिप्रसाद अग्रहरी व रामनिवास पाल ने खेती-बाड़ी के नये प्रयोगों से जो सफलता हासिल की है, वह सभी के लिये किसी प्रेरणा से कम नहीं है।  

किसान ने अपनाई स्ट्रॉबेरी की खेती

हरिप्रसाद अग्रहरी व रामनिवास पाल ने पारंपरिक खेती और लीक से हटकर स्ट्रॉबेरी की खेती चुनी।  हरिप्रसाद किसान परिवार से ही आते हैं। वह स्ट्राबेरी के साथ साथ खेत में ब्रोकली, गोभी, टमाटर, मटर, आलू, खीरा के साथ-साथ केले की भी खेती बड़े पैमाने पर करते है। आज वो अपनी 15 डिसमिल में स्ट्रॉबेरी की खेती करते हैं।

स्ट्रॉबेरी की स्थानीय मंडियों में अच्छी डिमांड
हरिप्रसाद व रामनिवास पाल कहते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती मेहनत मांगती है। दिन में कम से कम 12 घंटे आपको देने होते हैं। हरिप्रसाद बताते हैं कि जो किसान स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं उन्हें इसमें अपने आपको समर्पित करना होगा। 

यह भी पढ़ें | DN Exclusive: मिलिये इस ग्रामीण कलाकार से, जिसका हुनर आपको भी कर देगा तरोताजा, देगा नया जोश

युवाओं को संदेश
हरिप्रसाद कहते हैं कि आज के युवाओं में बाहर जाकर पढ़ने और नौकरी करने की ललक है। युवा खेती को व्यवसाय के नज़रिये से नहीं देखते। वो इस सोच को बदलना चाहते हैं। इस सोच को रखते हुए ही उन्होंने पारंपरिक फसलों की तुलना में स्ट्रॉबेरी की खेती को चुना। यह खेती एक बार जम जाए तो अच्छा मुनाफ़ा देती है। आज की तारीख में उनकी उगाई स्ट्रॉबेरी कई स्थानीय मंडियों में जाती है।

उन्होंने बताया कि वो जैविक तरीके से ही स्ट्रॉबेरी उगाते हैं। उन्होंने 15 डिसमिल में स्ट्रॉबेरी के करीबन एक हज़ार से अधिक पौधे लगाए हुए हैं। 15 डिसमिल की खेती में कुल 20-25 हजार रुपये की कुल लागत आती है और करीब डेढ़ लाख रुपये में ये उपज बिकती है इस तरह इसमें मुनाफ़ा 1 लाख रुपये से अधिक तक का होता है। हरिप्रसाद स्ट्रॉबेरी के पैकेट को 400 रुपये के आसपास बेचते हैं।

किसानों के प्रेरणा स्रोत 
हरिप्रसाद की उन्नति की गाथा गांव के अन्य किसानों तक फैल चुकी है। जिसको लेकर अन्य गांव के किसान तकनीकी मदद के लिए हरिप्रसाद से मिलते हैं आज हरिप्रसाद अपने हिम्मत और जज्बे से दूसरों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गये हैं. उनकी उन्नति की गाथा अन्य किसानों तक फैल चुकी है। इतना ही नहीं गाँव में स्टॉबेरी की खेती से कई किसानों की किस्मत बदल रही हैं।

यह भी पढ़ें | लकड़ी माफियाओं के हौसले बुलंद, बड़े पैमाने पर तस्करी, छुट-पुट पकड़ को बड़ी जीत बताने में जुटा वन विभाग

तैयारी बहुत ज़रूरी

हरिप्रसाद कहते हैं कि स्ट्रॉबेरी की बुवाई से पहले की तैयारी बहुत ज़रूरी है। खेत की अच्छे से जुताई कर लें। पौधे से पौधे की दूरी एक फ़ीट से सवा फ़ीट  के बीच होनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 6 से 8 फ़ीट के बीच होनी चाहिए। बेड की चौड़ाई एक से दो फ़ीट रखें। वही किसान रामनिवास पाल ने बताया कि तापमान 29 डिग्री होने पर पैदावार कम होने लगता है।










संबंधित समाचार