देश के पहले राष्ट्रपति नहीं चाहते थे कि 26 जनवरी को मनाया जाए गणतंत्र दिवस..जानिए इस दिन से जुड़ी ऐसी ही कुछ खास बातें..
हम सभी को पता है कि 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू किया गया था। लेकिन क्या आपको पता है कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद नहीं चाहते थे कि देश का गणतंत्र दिवस आज मनाया जाए या आज के दिन संविधान को लागू किया जाए। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में जानिए इस दिन से जुड़ीं ऐसी ही कुछ खास बातें..
नई दिल्ली: आज देश अपना 70वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, वह दिन जब भारत का संविधान लागू किया गया था। इसी दिन 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया। इस रिपोर्ट में डाइनामाइट न्यूज़ आपको 26 जनवरी के ऐतिहासिक महत्व और देश के संविधान से जुड़ी ऐसी ही खास बातें बता रहा है..
इस दिन को क्यों चुना गया गणतंत्र दिवस के रूप में
26 जनवरी का दिन भारत के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। साल 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिसंबर में लाहौर अधिवेशन का आयोजन हुआ। इस अधिवेशन में प्रस्ताव पारित करते हुए यह घोषणा की गई थी कि यदि 26 जनवरी 1930 तक अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत को डोमिनियन राज्य का दर्जा नहीं दिया गया तो भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र देश घोषित कर दिया जाएगा। जब अंग्रेज सरकार ने ऐसा नहीं किया तो उन्होंने 26 जनवरी 1930 को भारत को पूर्ण स्वराज की घोषित कर दिया।
भारत की आज़ादी के बाद संविधान सभा बनी जिसने 9 दिसंबर 1947 को संविधान निर्माण का काम शुरु किया। संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण का काम पूरा कर लिया। संविधान सभा ने संविधान बनाने के लिए 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लिया।
देश के पहले राष्ट्रपति नहीं चाहते थे इस दिन लागू हो संविधान
24 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा के अन्य सदस्यों समेत भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन वे नहीं चाहते थे कि 26 जनवरी को देश का पहला गणतंत्र दिवस मनाया जाए, यानि वे नहीं चाहते थे कि संविधान को इस दिन लागू किया जाए।
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दरअसल सरदार पटेल की तरह ही उनकी सोच भी कुछ हद तक रूढ़िवादी थी। उदाहरण के लिए पटेल समेत उन्होंने नेहरू के हिंदू कोड बिल का समर्थन किया था। यह वही हिंदू कोड बिल है जिसके माध्यम से औरतों को कुछ हद तक स्वतंत्रता मिली है। पटेल की मृत्यु के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण में भी उन्होंने मदद की थी।
वे गणतंत्र दिवस की तारीख को आगे बढ़ाना चाहते थे। उनका मानना था कि ग्रहों के अनुसार देश को स्वतंत्र गणराज्य घोषित करने के लिए 26 जनवरी शुभ दिन नहीं है। लेकिन इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए 26 जनवरी को ही संविधान को लागू कर भारत को एक स्वतंत्र गणराज्य घोषित किया गया।
हाथ से लिखा गया था भारत का संविधान
भारत का संविधान दुनिया के किसी भी संप्रभु देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसके 22 भागों में 444 लेख, 12 अनुसूचियां और 118 संशोधन हैं। इसके अंग्रेजी-भाषा संस्करण में 146,385 शब्द हैं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा संविधान अंग्रेजी और हिंदी में हाथ से लिखा गया है। इसकी मूल प्रति को ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में पार्लियामेंट की लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है।
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21 तोपों की सलामी
इस दिन गणतंत्र दिवस परेड से पूर्व भारत के राष्ट्रपति देश का झंडा तिरंगा फहराते हैं। उसके बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती है और गणतंत्र दिवस परेड का आगाज़ किया जाता है। तोपों की सलामी की यह परंपरा अंग्रेजों और भारतीय रियासतों के शासन के जमाने से कायम रही है और आज भी यह परंपरा बदस्तूर कायम है।
तीन दिन तक चलता है गणतंत्र दिवस का जश्न
गणतंत्र दिवस का जश्न 26 जनवरी से शुरु होकर 29 जनवरी तक तीन दिन तक चलता है। जश्न की शुरुआत राष्ट्रपति के ध्वज फहराने के साथ होती है। उसके बाद राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड निकाली जाती है।
पहली परेड की यह परंपरा अब भी है कायम
देश की पहली परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने भाग लिया था। इस परेड में नौसेना, इन्फेंट्री, कैवेलेरी रेजीमेंट, सर्विसेज रेजीमेंट के अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे। आज भी यह ऐतिहासिक परंपरा बनी हुई है।