आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा: आम बजट में नौकरियों पर 'पर्याप्त जोर' नहीं दिया गया

डीएन ब्यूरो

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने बृहस्पतिवार को कहा कि 2023-24 के आम बजट में नौकरियों पर 'पर्याप्त जोर' नहीं दिया गया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव
आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव


नयी दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने बृहस्पतिवार को कहा कि 2023-24 के आम बजट में नौकरियों पर 'पर्याप्त जोर' नहीं दिया गया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार उन्होंने कहा कि बजट बेरोजगारी की समस्या से सीधे निपटने में विफल रहा और माना गया कि वृद्धि से अपने आप रोजगार पैदा हो जाएंगे।

सुब्बाराव ने कहा कि कोविड महामारी से पहले भी बेरोजगारी की स्थिति काफी खराब थी और महामारी के कारण यह खतरनाक हो गई है।

उन्होंने कहा, ''मैं निराश था कि (बजट 2023-24 में) नौकरियों पर पर्याप्त जोर नहीं दिया गया... केवल वृद्धि से काम नहीं चलेगा, हमें रोजगार आधारित वृद्धि की जरूरत है।''

आरबीआई के पूर्व गवर्नर से पूछा गया था कि बजट से उनकी सबसे बड़ी निराशा क्या है?

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सुब्बाराव के अनुसार लगभग दस लाख लोग हर महीने श्रम बल में शामिल होते हैं और भारत इसकी आधी नौकरियां भी पैदा नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा, ''इसके चलते बेरोजगारी की समस्या न केवल बढ़ रही है, बल्कि एक संकट बन रही है।''

उन्होंने कहा कि बेरोजगारी जैसी बड़ी और जटिल समस्या का कोई एक या सरल समाधान नहीं है। उन्होंने , ''लेकिन मुझे निराशा हुई कि बजट समस्या से निपटने में विफल रहा। सिर्फ यह भरोसा किया गया कि वृद्धि से रोजगार पैदा होंगे।''

सुब्बाराव ने कहा कि भारत केवल तभी जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठा सकेगा, जब ''हम बढ़ती श्रम शक्ति के लिए उत्पादक रोजगार खोजने में सक्षम होंगे।''

उन्होंने कहा कि बजट की सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने वृद्धि पर जोर दिया है और राजकोषीय़ उत्तरदायित्व को लेकर प्रतिबद्धता जताई है, जबकि बजट से पहले आम धारणा यह थी कि वित्त मंत्री चुनावी साल में लोकलुभावन बजट पेश करेंगी।

यह पूछे जाने पर कि क्या बजट दस्तावेज में दिए गए अनुमानों के लिए कोई जोखिम है, उन्होंने कहा, ''राजस्व और व्यय, दोनों पक्षों पर जोखिम हैं।''

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उन्होंने कहा कि राजस्व पक्ष के अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि चालू कीमतों पर जीडीपी 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और इस साल कर संग्रह में हुई वृद्धि अगले साल भी जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि दोनों धारणाएं आशावादी लगती हैं, क्योंकि वृद्धि और मुद्रास्फीति अगले साल नरम हो सकती हैं।

सुब्बाराव ने व्यय पक्ष पर कहा कि यदि वैश्विक स्थिति प्रतिकूल हो जाती है और वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं तो खाद्य तथा उर्वरक सब्सिडी में अपेक्षित बचत नहीं हो पाएगी।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा अगर ग्रामीण वृद्धि तेजी से नहीं हुई तो मनरेगा की मांग बजट अनुमानों के मुताबिक घटेगी नहीं।










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