जयपुर में सिलसिलेवार बम धमाके के मामले में चार आरोपी बरी
राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2008 में जयपुर के विभिन्न इलाकों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में निचली अदालत का फैसला पलटते हुए चार आरोपियों को बुधवार को बरी कर दिया। विशेष अदालत ने इन चार आरोपियों को 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी।
जयपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2008 में जयपुर के विभिन्न इलाकों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में निचली अदालत का फैसला पलटते हुए चार आरोपियों को बुधवार को बरी कर दिया। विशेष अदालत ने इन चार आरोपियों को 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी।
इसके साथ ही अदालत ने साक्ष्यों की कड़ियां जोड़ने में 'खराब' जांच के लिए भी जांच एजेंसी को फटकार लगाई। बचाव पक्ष के वकील एसएस अली ने बताया कि अदालत ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को ऐसी जांच के लिए आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 मई, 2008 को हुए सिलसिलेवार आठ बम धमाकों में कम से कम 71 लोगों की मौत हुई थी और 180 से अधिक घायल हुए थे।
राजस्थान की विशेष अदालत ने 18 दिसंबर, 2019 को इस मामले में आरोपी मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सलमान और सैफुर्रहमान को दोषी माना जबकि शाहबाज हुसैन को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करार दिया।
राज्य सरकार ने शाहबाज हुसैन को बरी किए जाने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। वहीं, चारों ने सजा के खिलाफ अपील दायर की थी।
न्यायमूर्ति पंकज भंडारी और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बुधवार को चारों को बरी करने का फैसला सुनाया। अदालत ने अपने आदेश में निचली अदालत द्वारा पांचवें व्यक्ति- शाहबाज हुसैन को बरी करने की भी पुष्टि की।
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बचाव पक्ष के वकील एसएस अली ने कहा कि अदालत ने साक्ष्यों की कडियां जोड़ने में खराब जांच करने के लिए जांच एजेंसियों को फटकार लगाई। अदालत ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक को जांच में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया। मुख्य सचिव को मामले पर नजर रखने के निर्देश भी दिए गए हैं।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम मानते हैं कि इस मामले में जांच एजेंसी को उसकी लापरवाही, सतही और अक्षम कार्यों के लिए जिम्मेदार/जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।'
अदालत ने कहा, ‘‘इस मामले में, ऊपर बताए गए कारणों से, मामला जघन्य प्रकृति का होने के बावजूद जिसमें 71 लोगों की जान चली गई और 185 लोगों को चोटें आईं, जिससे जयपुर शहर ही नहीं, बल्कि हर नागरिक के जीवन में अशांति फैल गई, लेकिन पूरे देश में, हम जांच दल के दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित जांच/अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए राजस्थान पुलिस के महानिदेशक को निर्देश देना उचित समझते हैं।'
अदालत ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि अभियोजन पक्ष ने ठोस और पुख्ता सबूत जोड़कर आरोपियों को दोषी साबित करवाया है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के पूर्ण होने की जरूरत बताते हुए अदालत ने कहा, ‘‘वर्तमान मामले में, अभियोजन पक्ष ऐसा करने में विफल रहा है, नतीजतन, अदालत के पास अभियुक्तों को बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।’’
अदालत ने यह भी कहा कि यह सच हो सकता है कि अगर एक जघन्य अपराध में अभियुक्तों को सजा नहीं मिलती है या उन्हें बरी कर दिया जाता है, तो सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से पीड़ितों के परिवार के लिए एक प्रकार की पीड़ा और निराशा पैदा हो सकती है, हालांकि कानून न्यायालयों को नैतिक विश्वास या केवल संदेह के आधार पर अभियुक्तों को दंडित करने की अनुमति नहीं देता है।
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बचाव पक्ष के वकील एसएस अली ने कहा कि अदालत ने मामले की जांच करने वाले आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा पेश पूरी ‘थ्योरी’ को गलत पाया।
उन्होंने कहा, ‘‘एटीएस आरोपियों की यात्रा योजना को साबित करने में विफल रही कि उन्होंने 13 मई को एक बस में दिल्ली से जयपुर की यात्रा की थी, एक ढाबे में खाना खाया, साइकिल खरीदीं, बम रखे और उसी दिन शताब्दी एक्सप्रेस में दिल्ली लौट आए। एटीएस बस के टिकट नहीं दिखा सकी।’’
अली ने कहा कि एटीएस द्वारा पेश किए गए बिलों में उल्लिखित साइकिलों के फ्रेम नंबर धमाकों के बाद जब्त की गई साइकिलों से मेल नहीं खाते और साइकिल खरीद के बिलों से छेड़छाड़ की गई। वकील के अनुसार, ‘‘जांच एजेंसी ने कहा था कि आरोपियों ने बम लगाने के लिए दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर एक दुकान से छर्रे (पैलेट) खरीदे थे, लेकिन विस्फोट के बाद शवों में पाए गए छर्रों से उनका मेल नहीं हुआ। एफएसएल रिपोर्ट में छर्रों का मिलान नहीं हुआ।’’
वकील के अनुसार, “अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए हैं। एटीएस अपनी थ्योरी को स्थापित करने में विफल रही है। अदालत ने यह भी कहा कि एटीएस ने असली दोषियों तक पहुंचने की कोशिश नहीं की।’’
वहीं भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि इतने बड़े अपराध में आरोपियों का बरी होना प्रदेश की अभियोजन पक्ष पर संदेह पैदा करता है। पूनियां ने ट्वीट किया, ‘‘जयपुर बम ब्लास्ट मामले पर में आरोपियों का बरी होना गहलोत सरकार की पैरवी पर शंका पैदा करता है। राज्य सरकार की न्यायिक पैरवी की लापरवाही संदेह पैदा करती है, यह कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है।’’
राजस्थान की राजधानी जयपुर में 13 मई, 2008 को शाम लगभग सवा सात बजे 15 मिनट में सिलसिलेवार आठ बम धमाके हुए थे। लगभग 11 साल पहले हुए बम धमाकों ने जयपुर के परकोटे शहर को हिला दिया था। इन धमाकों में कम से कम 71 लोगों की मौत हुई थी और 185 घायल हुए थे।