राम जन्मभूमि आतंकी हमले में आरोपी और दोषी चार लोगों को जमानत मिली

डीएन ब्यूरो

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2005 में राम जन्मभूमि आतंकी हमले में आरोपी एवं दोषी करार दिए गए शकील अहमद, मोहम्मद नसीम, आसिफ इकबाल उर्फ फारुक और डाक्टर इरफान को जमानत दे दी है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

राम जन्मभूमि आतंकी हमले में आरोपी और दोषी चार लोगों को जमानत मिली
राम जन्मभूमि आतंकी हमले में आरोपी और दोषी चार लोगों को जमानत मिली


प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2005 में राम जन्मभूमि आतंकी हमले में आरोपी एवं दोषी करार दिए गए शकील अहमद, मोहम्मद नसीम, आसिफ इकबाल उर्फ फारुक और डाक्टर इरफान को जमानत दे दी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक न्यायमूर्ति अश्वनी मिश्रा और न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी की पीठ ने दोष सिद्धि के खिलाफ इस अदालत में लंबित अपील पर यह जमानत मंजूर की।

इन लोगों के खिलाफ तत्कालीन फैजाबाद जिले के राम जन्मभूमि पुलिस थाने में अपराध संख्या 157 के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120 बी, 307, 153, 153बी, 295, 353, गैर कानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम की धारा 18, 19 और 20 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था और निचली अदालत ने इन्हें दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

अतथ्यों के मुताबिक, पांच जुलाई, 2005 को सुबह करीब 9:15 बजे यूपी42-टी0618 नंबर की एक मार्शल जीप अयोध्या में जैन मंदिर के पास खड़ी हुई, जिसके बाद उस जीप में धमाका हुआ।

इसके बाद एके 47 राइफल, कारतूस और राकेट लांचर जैसे हथियारों से लैस पांच आतंकियों ने राम जन्मभूमि स्थल परिसर पर हमला किया और सुरक्षा बलों के जवाबी हमले में पांचों आतंकी मारे गए।

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इस घटना में रमेश कुमार पांडेय नाम के एक व्यक्ति की भी जान चली गई थी।

अदालत ने कहा, ‘‘हमने रिकॉर्ड पर गौर किया और पाया कि यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल पर आतंकी हमला था जिसमें पांच आतंकियों को मार गिराया गया और इस घटना में एक निर्दोष व्यक्ति की भी जान चली गई। यह एक गंभीर घटना है और इसे सभ्य समाज पर हमले के तौर पर माना जाना चाहिए।’’

अदालत ने कहा, “सभी चार आरोपी अपीलकर्ताओं को साजिशकर्ता के तौर पर इस अपराध में फंसाया गया है। साजिश का पहलू, इस घटना में मारे गए एक आतंकी से बरामद मोबाइल हैंडसेट पर विश्वास करते हुए अभियोजन पक्ष द्वारा दर्शाया गया। अभियोग का मामला यह है कि घटनास्थल से बरामद उस मोबाइल हैंडसेट का उपयोग विभिन्न सिम कार्डों को लगाकर किया गया और कॉल विवरण की प्रक्रिया के जरिए इन सभी चार आरोपियों को बरामद मोबाइल हैंडसेट से जोड़ा गया है और इस मामले में फंसाया गया है।”

अदालत ने कहा, “उच्चतम न्यायालय के आदेश के आने के बाद से एक साल से अधिक की अवधि बीत चुकी है, इसलिए हमारा विचार है कि इन आरोपियों की प्रथम जमानत अर्जियों की प्रार्थना विचार किए जाने योग्य है क्योंकि अपील पर सुनवाई में कुछ और समय लग सकता है।”

अदालत ने कहा कि हैंडसेट की गैर बरामदगी और अन्य साक्ष्यों से जुड़ी दलील अंतिम सुनवाई के दौरान बहस करने योग्य है।

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अदालत ने कहा, “इस मामले के गुण दोष पर टिप्पणी किए बगैर इन सभी आरोपियों को सख्त शर्तों के साथ जमानत देना उचित होगा। ये सभी आरोपी सप्ताह के एक बार अपने निवास स्थान पर स्थित पुलिस थाना को रिपोर्ट करेंगे।’’

अदालत ने कहा, ‘‘इनके पास यदि पासपोर्ट है तो वे इन्हें संबंधित अदालत में जमा करेंगे। इन पर लगाए गए जुर्माने रिहाई के छह सप्ताह के भीतर जमा किए जाएंगे। जमानत के बांड स्वीकार होने पर निचली अदालत इनकी प्रतियां रिकार्ड के लिए इस अदालत के पास भेजेगी।”

 










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