DN Exclusive: यूपी पुलिस के IPS अफसर का देखिये हाल, सादी वर्दी में पहुंचे क्राइम मीटिंग लेने IG साहब, खुद उड़ायी अनुशासन की धज्जियां, विभागीय नियम ताक पर
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहां के अफसर जैसा काम करते हैं उसका गहरा संदेश देश के अन्य हिस्सों पर पड़ता है लेकिन कुर्सी पर बैठने के बाद साहब लोग कितने आरामतलब हो जाते हैं और अनुशासित माने जाने वाले महकमे में खुद विभागीय नियम-कायदे तोड़ सादी वर्दी में पूर्व से तयशुदा बैठकों में मातहतों के साथ अपराध की समीक्षा मीटिंग करते हैं। इससे कई तरह के सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:
लखनऊ/गोरखपुर: मामला गुरुवार का है और अफसर हैं 2005 बैच के आईपीएस और गोरखपुर के पुलिस महानिरीक्षक (IG) जे. रविन्द्र गौड़ (J. Ravinder Goud)। साहब पहुंचे थे महराजगंज जनपद मुख्यालय पर जनपद के समस्त क्षेत्राधिकारी/थाना प्रभारियों के साथ अपराध की समीक्षा व कानून व्यवस्था के संबंध में मीटिंग लेने। साहब के पहले से तय शुदा कार्यक्रम में हर तरह का ताम-झाम दिखा। बाकायदे चूना तो गिराया ही गया, साहब के स्वागत सत्कार के लिए लाल कालीन बिछवा और बड़े-बड़े पुलिसिया झंडे लगवा पूरे सरकारी ताम-झाम के मातहतों द्वारा सलामी ठोंकी गयी।
लेकिन ये क्या? साहब जैसे ही अपनी सरकारी गाड़ी से उतरे, तो वहां मौजूद पत्रकारों समेत अन्य लोग चौंक उठे। साहब ने क्राइम मीटिंग के नाम पर पुलिस विभाग के अनुशासन, नियम-कानून व कायदों की धज्जियां उड़ा डालीं। रविन्द्र ने इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग में भी सरकारी वर्दी पहनना उचित नहीं समझा और सादे लिबास में सरकारी बैठक लेनी शुरु कर दी। मीटिंग के बाद पुलिस कार्यालय, थाना कोतवाली व महिला थाना का निरीक्षण भी IG द्वारा किया गया।
यहां बड़ा सवाल खड़ा होता है जब रविन्द्र जैसे सीनियर अफसर भी सरकारी मीटिंगों को पिकनिक समझ सादे कपड़ों में पहुंचेंगे तो फिर मातहतों पर क्या असर पड़ेगा? इस बात की चारो ओर जमकर चर्चा हो रही है।
साहब ने कैसे मीटिंग ली और निरीक्षण किया, इस बारे में स्थानीय पुलिस विभाग द्वारा बाकायदे पत्रकारों को प्रेस रिलीज जारी की गयी, तस्वीरें व वीडियो भेजे गये। यही नही प्रेस विज्ञप्ति में यह भी बताया गया कि "निरीक्षण के दौरान महोदय द्वारा हिन्दी आदेश पुस्तिका कार्यालय में हिन्दी आदेश पुस्तिका का निरीक्षण किया गया तथा कार्यप्रणाली के संबंध में प्रसन्नता व्यक्त की गयी"
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लोग सवाल पूछ रहे हैं कि साहब थाने और कार्यालय का निरीक्षण तो बिना पुलिसिया गणवेश के कर रहे हैं और चंद समय के दौरे में मातहतों की जमकर पीठ तो थपथपा रहे हैं लेकिन दो साल से अधिक के कार्यकाल में साहब ने कितनी बार महराजगंज जनपद मुख्यालय पर आम जनता से औचक मुलाकात की? कोई गोपनीय फीडबैक लेने की कोशिश की? क्या कभी उनका हाल-चाल जाना कि आम फरियादियों की कैसी सुनवाई मातहत कर रहे हैं?
मीटिंग और IG साहब का मोबाइल
साहब बैठक को लेकर वाकई कितना सीरियस थे इसकी पोल खुल गयी भरी मीटिंग में रविन्द्र के मोबाइल से। एसपी बैठक में मातहतों को संबोधित कर रहे थे और साहब का समय मोबाइल पर बीत रहा था। ऐसा कौन सा संदेश किससे साहब आदान-प्रदान कर रहे थे यह तो वे ही जानें लेकिन मातहतों के बीच रविन्द्र की यह भयानक लापरवाही जबरदस्त चर्चा का विषय बनी रही। (देखिये मुख्य फोटो)
हैरानी की बात यह है कि महराजगंज जिले का सोनौली बार्डर सीमावर्ती नेपाल से लगा है और इन दिनों बेहद संवेदनशील बना हुआ है। तस्करी जोरों पर है। ऐसे में क्या ये मीटिंग वर्दी की तरह केवल दिखावटी रही या फिर इसमें कुछ गंभीर बातें निकल कर सामने आयीं, इसका जवाब मिलना बाकी है।
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जानिये जे. रविन्द्र गौड़ की कुंडली
1 दिसंबर 1973 को आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में जन्मे गोरखपुर के पुलिस महानिरीक्षक (IG) जे. रविन्द्र गौड़ (J. Ravinder Goud) 2005 बैच के आईपीएस (IPS) हैं और ये पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में परास्नातक हैं।
पुलिस और कुलपति पिटाई कांड में उठी अंगुली
बात इसी 21 जुलाई की है। जब पूरे देश में गोरखपुर यूनिवर्सिटी कांड में कुलपति और पुलिस वालों की बुरी तरह से हुई पिटाई के मामले में गोरखपुर के आईजी जे. रविन्द्र गौड़ की भूमिका पर सवाल खड़े हुए थे। बवाल के मामले में वीडियो वायरल होने से देश भर में गोरखपुर पुलिस की जमकर थू-थू हुई थी। मामला कई दिनों से सुलग रहा था। IG का स्पष्ट कार्य है अपने मातहत आने वाले जिलों के पुलिस की कारगुजारियों का बारीकी से पर्यवेक्षण करना लेकिन ये इस काम में बुरी तरह नाकाम साबित हुए। साहब के सरकारी बंगले से चंद कदम की दूरी पर इतना बड़ा बवाल हो गया और साहब इसे रोक तक नहीं पाये? आखिर क्यों? क्या साहब की कोई रुचि गंभीर पुलिसिंग में नहीं है या फिर साहब की गोरखपुर जिला पुलिस कुछ सुनती ही नहीं। क्या खुफिया तंत्र से साहब ने कोई वन-टू-वन कोआर्डिनेशन किया?
फेक एनकाउंटर की CBI जांच भी झेल चुके हैं साहब
18 साल की पुलिसिया सर्विस में साहब जहां तैनात रहे वहां खूब चर्चा में रहे। डाइनामाइट न्यूज़ ने जब रविन्द्र की पुरानी कुंडली पर खंगालनी शुरु की तो पता चला कि बरेली में इन पर तैनाती के दौरान फेक एनकाउंटर (Fake Encounter) का भी बेहद गंभीर आरोप लग चुका है। अदालती आदेश पर मुकदमा दर्ज हुआ और ये अभियुक्त बने। मामले की सीबीआई (CBI) जांच हुई लेकिन साहब ठहरे रसूखदार। अभियोजन स्वीकृति से लेकर कोर्ट-कचहरी की दहलीज में मामले को ऐसा उलझाया गया कि साहब का बाल-बांका तक नहीं हुआ लेकिन नैतिकता और पुलिसिया सेवा नियमावली के पैमाने पर खुद के शीशे में साहब कितने साफ है, इसका जवाब हर कोई जानना चाहता है।