कोष के लेनदेन पर रोक लगाने के खिलाफ डीसीपीसीआर की याचिका पर सुनवायी 10 जनवरी को
दिल्ली उच्च न्यायालय दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की उस याचिका पर बुधवार को सुनवायी करेगा जो उसने राज्य प्राधिकारियों द्वारा उसके कोष के लेनदेन पर कथित तौर पर लगायी गई रोक के खिलाफ दायर की है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की उस याचिका पर बुधवार को सुनवायी करेगा जो उसने राज्य प्राधिकारियों द्वारा उसके कोष के लेनदेन पर कथित तौर पर लगायी गई रोक के खिलाफ दायर की है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मंगलवार को आयोग के वकील से याचिका की एक प्रति उपराज्यपाल के कार्यालय को देने और इसे सूचीबद्ध किये जाने के बारे में सूचित करने को कहा।
उच्चतम न्यायालय से स्थानांतरित होने पर याचिका उच्च न्यायालय में सुनवायी के लिए आयी थी।
अदालत ने कहा, ‘‘वर्तमान याचिका शीर्ष अदालत से प्राप्त हुई है। याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को (याचिका की) एक प्रति देकर यह सूचित करने का निर्देश दिया जाता है कि मामला कल सूचीबद्ध है।'
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शीर्ष अदालत ने 15 दिसंबर को डीसीपीसीआर से तब अपनी शिकायत उच्च न्यायालय के समक्ष रखने के लिए कहा था जब उसने यह शिकायत की थी कि राज्य के प्राधिकारियों ने उसके कोष के लेनदेन पर रोक लगा दी है।
डीसीपीसीआर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष दलील दी थी कि आयोग के कोष के लेनदेन पर रोक नहीं लगायी जा सकती।
उन्होंने सवाल किया था, ‘‘राज्य के साठ लाख बच्चों को यह कैसे बताया जा सकता है कि आयोग को एक पैसा भी नहीं मिलेगा?’’
उच्चतम न्यायालय ने तब सवाल किया था कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच का 'हर विवाद' उसके सामने क्यों आना चाहिए और निर्देश दिया कि याचिका को उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका के रूप में फिर से रखा जाए।
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पिछले साल, उप राज्यपाल वी के सक्सेना ने जांच शुरू करने के महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी और डीसीपीसीआर द्वारा सरकारी धन के कथित दुरुपयोग का विशेष ऑडिट कराने का आदेश दिया था।
सक्सेना ने यह भी निर्देश दिया था कि जांच और विशेष ऑडिट पूरा होने से पहले डीसीपीसीआर द्वारा धन आवंटन के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा।
डीसीपीसीआर ने कहा है कि उसके द्वारा सरकारी धन के दुरुपयोग का आरोप दुर्भावनापूर्ण है।