आज ही के दिन स्वतंत्र भारत को मिला था अपना पहला राष्ट्रपति
आज ही के दिन संविधान सभा ने देश के पहले राष्ट्रपति का चुनाव किया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विरुद्ध राष्ट्रपति चुने गए थे। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में जानिए यह कैसे हुआ था..
नई दिल्ली: आज ही के दिन सन् 1950 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्र प्रति चुने गए थे। 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक वे देश के राष्ट्रपति रहे। इस प्रकार वे दो दफा (पहली बार 1950-51 में और दूसरी दफा 1957 में) भारत के राष्ट्रपति चुने गएं। खास बात यह है कि दोनों दफ़ा वे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विरुद्ध राष्ट्रप्रति चुने गए थे।
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देश के प्रथम राष्ट्रपति पद के लिए दो दावेदार
जब 1950 में भारत एक गणतंत्र बना, तो प्रसाद को संविधान सभा द्वारा अपना पहला राष्ट्रपति चुना गया। 1951 के आम चुनाव के बाद, उन्हें भारत की पहली संसद और उसके राज्य विधानसभाओं के निर्वाचक मंडल द्वारा देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया था।
उस दौरान राष्ट्रपति पद के लिए दो दावेदार थे। नेहरू राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। राजाजी (प्यार से राजगोपालाचारी को राजाजी कहकर संबोधित किया जाता है) मद्रास के एक बड़े विद्वान एवं राजनीतिज्ञ थे तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल थे। लिहाज़ा उन्हें राष्ट्रपति बनाने का अर्थ था महज़ पद का नाम भर बदल देना, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने का गवर्नर जनरल का पद कुछ-कुछ राष्ट्रपति जैसा ही था।
जबकि तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल बिहार के राजनीतिज्ञ तथा वकील डॉ. राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनाए जाने के पक्ष में थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढ़े थे। एक खास बात यह है कि जिस दिन उन्हें राष्ट्रपति चुना गया उसी दिन कलकत्ता विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई थी। मतलब आज ही के दिन 1857 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।
राष्ट्रपति पद के लिए प्रसाद पटेल की पसंद इसलिए थे क्योंकि दोनों के विचार के विचार काफी मिलते थे ठीक उसी तरह जिस तरह नेहरू और राजाजी के विचार मिलते थे।
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नेहरू और राजाजी दोनों ‘भारत में धर्मनिरपेक्षता’ के पक्ष में थे जिसका पटेल समर्थन नहीं करते। यहां तक उन्होंने एक दफ़ा राजाजी को “आधा मुस्लिम” और नेहरू को “कांग्रेस का एकमात्र राष्ट्रवादी मुस्लिम” कहा था।
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वहीं सरदार पटेल और प्रसाद के विचार बहुत मिलते थे लेकिन उनके विचार कुछ-कुछ रूढ़िवादी भी थे। उदाहरण के लिए पटेल और प्रसाद दोनों ही नेहरू के हिंदू कोड बिल के खिलाफ़ थे। ये वही हिंदू कोड बिल है जिसके माध्यम से देश की महिलाएं कुछ हद तक स्वतंत्र हुई थीं। उन्हें कुछ अधिकार मिले थे जो उन्हें कुछ हद तक स्वाधीनता प्रदान करते हैं। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद सोमनाथ मंदिर के निर्माण में भी राजेंद्र प्रसाद ने मदद की थी।
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नेहरू और उनके बीच सबसे बड़ा विवाद गणतंत्र दिवस की तारीख को लेकर था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि इस राष्ट्र पर्व की तारीख को आगे बढ़ाया जाए क्योंकि उनके अनुसार यह दिन (26 जनवरी 1950) गणतंत्र दिवस मनाए जाने के लिए अशुभ दिन है। आपको बता दें कि इस दिन का अपना महत्व है इसलिए इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया था। इसी दिन ब्रिटिश शासन द्वारा डोमिनियन स्थिति की पेशकश के विरुद्ध कांग्रेस ने 1930 में पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी।
नेहरू की इच्छा के विरुद्ध प्रसाद कैसे चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति
चुनाव के दौरान नेहरू और पटेल दोनों पत्रों के माध्यम से एक दूसरे पर तंज भी कसते रहें। वहीं नेहरू और प्रसाद भी एक दूसरे पर वार करते रहे। उदाहरण के लिए 10 सितंबर 1949 को नेहरू को प्रसाद ने लिखा,”राजाजी राष्ट्रपति बन सकते हैं, इसमें एक परिवर्तन और परिणामी पुनर्व्यवस्था शामिल होगी।" इस पर प्रसाद ने भी लिखा कि वे मैदान से बाहर जाने को तैयार नहीं हैं।
हालांकि पटेल ने स्पष्ट तौर पर सबके समक्ष यह जाहिर नहीं होने दिया था कि वे प्रसाद को राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं लेकिन आखिरकार वे इसमें कामयाब रहे। राजेंद्र प्रसाद का कांग्रेस का सदस्य होना ही सबसे बड़ी बात थी, इसी वजह से वे राष्ट्रपति चुने गएं। पहले आम चुनाव में कांग्रेस को 489 में से 364 सीटें मिली थीं। राजेंद्र प्रसाद को 5,07,400 वोट मिले थे।
एक दिलचस्प बात यह थी कि कांग्रेस के 65 एमपी और 479 एमएलए ने अपने वोट दिए ही नहीं। बाद में उन्होंने बयान दिया कि उन्हें पहले से पता था कि राजेंद्र प्रसाद ही राष्ट्रपति बनेंगे इसलिए वोट देने में उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इस प्रकार डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गएं। हालांकि राजाजी को इसका कोई खास मलाल नहीं हुआ। मलाल तो उन्हें पटेल और नेहरू की लड़ाई का था जिसके बीच में वे फंस गए थे। राजेंद्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राजाजी ने उन्हें पत्र लिखकर बधाई भी दी थी। साथ ही यह भी कह था, ‘इसे नेहरू और पटेल को भी दिखा देना, मैं उन्हें अलग से नहीं लिखने वाला।‘