असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में व्यावहारिक सहयोग के लिए नये सिरे से प्रयास कर रहे हैं भारत और अमेरिका
(मानस प्रतिम भुइयां)
नयी दिल्ली:यूक्रेन संघर्ष के कारण ऊर्जा सुरक्षा को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंताओं के मद्देनजर भारत और अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में व्यावहारिक सहयोग की संभावना तलाशने पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं। इस क्षेत्र में साझेदारी के लिए 14 साल पहले एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था, जिस पर आगे नहीं बढ़ा जा सका है।
दिल्ली में 16 और 17 फरवरी को भारतीय वार्ताकारों के साथ अमेरिका के ऊर्जा संसाधन मामलों के सहायक विदेश मंत्री जेफ्री आर पायट की बातचीत में 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के तहत परमाणु वाणिज्य सहित स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के तरीकों पर प्रमुखता से चर्चा हुई।
पायट ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक विशेष साक्षात्कार में यूक्रेन पर रूस के ‘‘क्रूर’’ आक्रमण के परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति में गंभीर व्यवधानों के मद्देनजर वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत को अमेरिका के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार बताया।
पायट ने कहा कि अमेरिका 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावॉट ऊर्जा प्राप्त करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘‘अत्यंत महत्वाकांक्षी’’ ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्य का समर्थन करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस बात पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहा हूं कि हम भविष्य के असैन्य परमाणु सहयोग के अवसरों को कैसे विकसित कर सकते हैं।’’
पायट ने कहा, ‘‘असैन्य परमाणु उद्योग का कारोबारी मॉडल बदल रहा है। अमेरिका में हमने छोटे रिएक्टरों के लिए बड़ी प्रतिबद्धता जताई है, जो विशेष रूप से भारतीय पर्यावरण के लिए भी उपयुक्त हो सकते हैं।’’
उन्होंने 2002 से 2006 तक नयी दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक परामर्शदाता के रूप में और 2006 से 2007 तक अमेरिकी मिशन के उप-प्रमुख के रूप में सेवा दी थी। यह एक ऐसी अवधि थी जिसमें दोनों पक्षों के बीच असैन्य परमाणु समझौते पर गहन बातचीत हुई।
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पिछले 14 वर्षों में असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में वास्तविक सहयोग मुख्य रूप से किसी दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्ताओं से नुकसान की मांग करने से संबंधित दायित्व नियमों पर दोनों पक्षों के बीच मतभेदों के कारण नहीं हुआ।
पायट ने 2008 के समझौते के बारे में कहा, ‘‘यह पहली बड़ी चीज थी जो हमारी दोनों सरकारों ने एक साथ की।’’
उन्होंने कहा कि नयी दिल्ली समग्र द्विपक्षीय ऊर्जा संबंधों के हिस्से के रूप में असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए बहुत उत्सुक है।
अमेरिकी मंत्री ने कहा, ‘‘अमेरिका-भारत ऊर्जा और जलवायु एजेंडा दुनिया में कहीं भी हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण एजेंडा है।’’
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच समग्र ऊर्जा सहयोग दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं देखता हूं कि हमारे रणनीतिक संबंध कहां जा रहे है, तो मैं उन मुद्दों को देखता हूं जिनसे इन संबंधों को और मजबूत बनाया जा सकता है।’’
उन्होंने कहा कि अमेरिका हरित हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत के साथ सहयोग मजबूत करने का इच्छुक है। उन्होंने कहा कि दोनों देश ‘हाइड्रोजन फ्यूल सेल’ के क्षेत्र में काम कर सकते हैं।
गौरतलब है कि सरकार ने चार जनवरी को 19,744 करोड़ रुपये के व्यय के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी। इस पहल का मकसद कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के साथ देश को ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत के उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है।
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उन्होंने कहा, ‘‘हाइड्रोजन में अमेरिकी निवेश हाइड्रोजन में भारतीय निवेश का पूरक है और अभी मेरी दिलचस्पी हमारे संबंधित प्रयासों के बीच सेतु बनाने में है ताकि हम एक दूसरे की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकें।’’
पायट ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इस क्षेत्र में दोनों देशों की कंपनियों के बीच संयुक्त परियोजनाओं की काफी गुंजाइश है।
अमेरिकी मंत्री ने कहा, ‘‘क्वाड हमारे लिए एक मौलिक संगठनात्मक सिद्धांत है। यदि आप अलग-अलग तरीकों को देखते हैं जिसमें चार देशों की सरकारें सक्रिय हैं- चारों ने हाइड्रोजन (ऊर्जा) के लिए एक बड़ी प्रतिबद्धता जताई है। ऑस्ट्रेलिया के पास एक बड़ा हाइड्रोजन कार्यक्रम है, भारत की एक बड़ी प्रतिबद्धता है। हमारा हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र बहुत तेजी से बढ़ने वाला है, जापान की हाइड्रोजन (ऊर्जा) में लंबे समय से रुचि रही है।’’
क्वाड में भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।