दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बना भारत, घटते संसाधनों को लेकर भी उठे सवाल
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी बढ़कर 142.86 करोड़ हो गई है जबकि चीन की आबादी 142.57 करोड़ है।
नई दिल्ली: एशिया की सबसे बड़ी अनधिकृत कॉलोनी संगम विहार में एक तीन मंजिला इमारत की छत पर खड़े 63 वर्षीय दुला खान खामोश खड़े हैं। वह असोला वन्यजीव अभयारण्य के करीब, घनी बसावट वाले क्षेत्र में अन्य घरों को देखते हैं जहां आबादी और उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच एक नाजुक संतुलन की अलग ही कहानी नजर आती है।
करीब पांच वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले संगम विहार की अनुमानित आबादी लगभग 12 लाख है और अधिकतर निवासी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आने वाले प्रवासी हैं। उनमें से एक बड़ा हिस्सा अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी के टैंकरों पर निर्भर है। कई ब्लॉकों में सीवर लाइन नहीं होने से अक्सर अवजल सड़कों पर फैल जाता है।
खान कहते हैं कि यहां एक इंच जमीन भी ऐसी नहीं है जो कंक्रीट से ढकी न हो और जलस्तर पहले ही नीचे जा चुका है। लेकिन वह सामाजिक समरसता को खतरे में डालने वाले एक और मुद्दे को लेकर चिंतित हैं।
खान ने अपनी छत से महज 100 मीटर की दूरी पर स्थित कब्रिस्तान की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहां भी जगह खत्म हो रही है, समाज की तरह जो पहले ही पूरी क्षमता तक भरा हुआ है। खान संगम विहार कब्रिस्तान समिति के महासचिव भी हैं।
चीन को पीछे छोड़ बुधवार को भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया। खान जैसे लोगों का मानना है कि बढ़ती आबादी और उपलब्ध संसाधनों में संतुलन साधना लगाता मुश्किल होता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी बढ़कर 142.86 करोड़ हो गई है जबकि चीन की आबादी 142.57 करोड़ है।
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खान कहते हैं, बढ़ती आबादी का मतलब है अधिक घर, अधिक अनधिकृत निर्माण, प्रति व्यक्ति पानी व जगह की कम उपलब्धता और अधिक अवजल।
उन्होंने कहा, “हमारे पास अपने मृतकों को दफनाने के लिए जगह नहीं है। हम कहां जाएं? जब इसमें जगह नहीं होगी तो पुरानी कब्रों को फिर से खोदा जाएगा और उनका पुन: उपयोग किया जाएगा।”
कब्रिस्तान लगभग पांच हेक्टेयर में है और यह 35 वर्ष से अधिक पुराना है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है और अभयारण्य में लोगों की आवाजाही से वन्य जीवों को परेशानी होती है।
संरक्षणवादी सी.आर. बाबू कहते हैं कि भारत में पहले से ही बहुत कम वन क्षेत्र (प्रति व्यक्ति केवल 0.06 हेक्टेयर) है और शहरी केंद्रों में जनसंख्या विस्फोट इसे और प्रभावित करने वाला है।
उन्होंने कहा, “अधिक लोगों का अर्थ है अधिक विकास, लेकिन भूमि नहीं है। यह या तो जंगल या डूब क्षेत्र में है, जो महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संसाधन हैं। यदि आप इन पर अतिक्रमण करते हैं तो पारिस्थितिक संतुलन बदल जाएगा। इसलिए, जनसंख्या को प्राकृतिक संसाधन आधार के अनुरूप बढ़ने दिया जाना चाहिए।”
‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के सहायक निदेशक सोहेल मदान ने कहा कि भारत चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है, जो आने वाले वर्षों में वनों और वन्यजीवों के लिए एक अशुभ संकेत है।
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उन्होंने कहा, “बढ़ती आबादी वनों की कटाई, प्रदूषण आदि सहित पर्यावरणीय क्षति का कारण बनेगी। कोयला, तेल, प्राकृतिक गैसों, खनिज, पेड़, पानी और वन्य जीवन जैसे संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से खासकर महासागरों में पर्यावरण का क्षरण होगा।”
विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ती आबादी सरकारों के लिए स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण बना देगी।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि शहर की सरकार पर्यावरण पर बढ़ती जनसंख्या के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयास कर रही है। उनका कहना है कि सरकार अनधिकृत कॉलोनियों में सभी घरों को सीवर नेटवर्क से जोड़ रही है और पानी की पाइपलाइन बिछा रही है।
सामाजिक उद्यम ‘ग्रोट्रीज डॉट कॉम’ के सह-संस्थापक और निदेशक प्रदीप शाह के अनुसार, जनसंख्या वृद्धि, जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के बीच निर्विवाद संबंध है।
शाह ने कहा कि बढ़ती आबादी के साथ, प्राकृतिक संसाधनों को फिर से पोषित करने की तुलना में तेजी से कम किया जा रहा है, जिससे हवा और पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है, पानी की कमी, विपरीत मौसम की घटनाएं और कई अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं।