रूस-यूक्रेन युद्ध के दुष्प्रभावों को खत्म करने के लिए उचित कदम उठाए भारत
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक साल पहले यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था और आगे जाकर यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के सबसे भीषण संघर्ष में तब्दील हो गया। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक साल पहले यूक्रेन के खिलाफ विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था और आगे जाकर यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के सबसे भीषण संघर्ष में तब्दील हो गया। हजारों यूक्रेनी नागरिकों के साथ हजारों यूक्रेनी और रूसी सैनिकों की जान जा चुकी है लेकिन इसका अंत होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। इस युद्ध से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर वायुसेना के पूर्व अधिकारी और रक्षा मंत्रालय में मुख्य प्रवक्ता रहे विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी से डाइनामाइट न्यूज़ के पांच सवाल’ और उनके जवाब:
सवाल: युद्ध दूसरे साल में प्रवेश कर गया है लेकिन कोई भी टस से मस होने को तैयार नहीं। आगे क्या देखते हैं आप?
जवाब: इस समय युद्ध खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। यूक्रेन में रूस की प्राथमिकता जिन इलाकों पर कब्जा करने की थी वह उसने कर लिए। हालांकि बाद में कुछ इलाके उसके हाथ से निकल गए। उसको यह सब इसलिए करना पड़ा क्योंकि यूक्रेन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होना चाहता था। अभी तक यह हो नहीं पाया है। कुल मिलाकर अभी यह लड़ाई इस दौर में पहुंच गई है कि रुकने का नाम नहीं ले रही है। इस युद्ध में सबसे ज्यादा तबाही आम नागरिकों की हुई है। रूस ने काफी क्षेत्रों में बढ़त ले रखी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें यूक्रेन को तसल्ली देने वाले नाटो के देश उसे धड़ाधड़ हथियार बेचे जा रहे हैं और फायदा उठा रहे हैं, लेकिन वे उसके लिए लड़ाई में नहीं उतर रहे हैं।
सवाल: पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन का दौरा किया। वह अमेरिका के कुछ चुनिंदा राष्ट्रपतियों में हैं, जिन्होंने किसी युद्धग्रस्त देश का दौरा किया हो। इसमें क्या संदेश दिखता है?
जवाब: बाइडन के दौरे को नाटो के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। नाटो और यूरोपीय संघ में कई ऐसे देश हैं, जिनकी कमाई का जरिया हथियारों की बिक्री है। अमेरिका सहित कई ऐसे देशों की कमाई का जरिया हथियारों की बिक्री है। इसे लेकर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में होड़ मची हुई है। अमेरिका यूक्रेन से हथियारों का ऑर्डर लेना चाहता है और इसे गुप्त रखना चाहता है। लोगों को लग रहा है कि बाइडन रूस के खिलाफ कुछ करने के मकसद से यूक्रेन गए थे तो ऐसा नहीं है। अमेरिका अपने हथियार बेचने के लिए यह सब कर रहा है। वह यूक्रेन से कह रहा है कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है वह उसे हथियार देता रहेगा। नाटो देशों में हथियार बेचने की होड़ में अमेरिका अपना अधिपत्य जमाने के लिए यह सब कर रहा है। वह फ्रांस और जर्मनी को इस मामले में नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है।
सवाल: हाल ही में चीन ने एक योजना पेश की है शांति के लिए। उसके इस कदम को कैसे दिखते हैं और इसके पीछे की क्या रणनीति है उसकी?
जवाब: चीन रूस को खुलकर समर्थन नहीं कर पा रहा है लेकिन वह रूस के साथ ही है। अगर रूस को वित्तीय सहायता की भी जरूरत पड़ेगी तो वह करेगा। चीन अब अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है। वह यह सब इसलिए कर रहा है क्योंकि दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन के ऊपर कई लांछन लगे हैं। इस छवि को दूर करने के लिए वह खुद को शांतिप्रिय दिखाने की कोशिश कर रहा है। चीन यह भी नहीं चाहता कि इस समय रूस के समक्ष कोई ऐसी परेशानी आ जाए कि फिर उसको हस्तक्षेप करना पड़े। चीन यह भी नहीं चाहता कि हथियार बेचने की होड़ में अमेरिका बढ़त हासिल करे। इन सारी चीजों को रोकने के लिए चीन ने यह कदम उठाया है। इन सारी चीजों का एक असर यह हुआ है कि रूस और चीन लामबंद हो गए हैं और आपस में मिलकर एक मजबूत ध्रुव बन गए हैं। यह अमेरिका और नाटो का दोष है कि चीन, रूस के इतने नजदीक आ गया है, नहीं तो चीन रूस के इतने नजदीक नहीं आता।
सवाल: रूस कब तक इस युद्ध को खींच सकेगा। नुकसान उसे भी हो रहा है, क्योंकि कई देशों ने उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं?
यह भी पढ़ें |
Russia Ukraine War: यूक्रेन और रूस 'वॉर' को लेकर अमेरिकी जनरल ने कहा- यूक्रेन से रूसी बलों को बाहर निकालना बहुत ज्यादा मुश्किल
जवाब: रूस अभी इस युद्ध को और लंबा खींच सकता है। शुरू में लग रहा था कि यह युद्ध कुछ सप्ताह में खत्म हो जाएगा लेकिन यह एक साल तक खींच गया। एक साल और खींच जाए तो आश्चर्य नहीं है। रूस को इस युद्ध से कोई दिक्कत नहीं है। रूस पर भले ही प्रतिबंध लगाए गए हों लेकिन इसके बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। उसका व्यापार बढ़ रहा है। तेल की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। इतना ही नहीं रूस के हथियार भी बिक रहे हैं। खैर, लड़ाई तो अभी चलेगी। बीच में कोई न कोई रास्ता निकलेगा। इस युद्ध की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सभी देश अपना व्यापार देख रहे हैं। कोई भी मानवता की तरफ नजर नहीं डाल रहा है। यह सच्चाई है।
सवाल: रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत के अब तक के रुख को कैसे देखते हैं। क्या भारत सरकार की भूमिका से आप संतुष्ट हैं?
जवाब: भारत की युद्ध में भूमिका बहुत ही सुलझी हुई रही है। यह सफलता है कि भारत यूक्रेन से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाला लाया। भारत ने रूस से स्पष्ट तौर पर कहा कि यह युद्ध का समय नहीं है। भारत ने अपनी पूरी तटस्थता दिखाई है। भारत दोनों देशों को बिल्कुल सही सलाह भी दे रहा है। अब लड़ाई में बीच-बचाव के लिए भारत की ओर सब देख रहे हैं। यूक्रेन भी खुलकर कह चुका है। भारत का जो नेतृत्व है, भारत की जो महानता है और जो भारत की इज्जत है... उसे कोई देश मना नहीं कर सकता। क्योंकि बहुत सारे देशों पर इस युद्ध का बहुत आर्थिक दबाव पड़ रहा है। इस दबाव को दूर करने के लिए बहुत जरूरी है युद्ध का रुकना। सभी भारत से अपेक्षा कर रहे हैं कि भारत आगे बढ़े और शांति बहाल करने के लिए उपयुक्त कदम उठाए। वास्तव में सारी दुनिया की नजर अभी भारत पर ही है।