Indian economy: 'खपत बढ़ाने के लिए महंगाई को नीचे लाना जरूरी'
भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत वृद्धि की चुनौती का सामना कर रही है, क्योंकि उच्च मुद्रास्फीति निम्न आय वर्ग के लोगों को प्रभावित कर रही है। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने यह बात कही है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत वृद्धि की चुनौती का सामना कर रही है, क्योंकि उच्च मुद्रास्फीति निम्न आय वर्ग के लोगों को प्रभावित कर रही है। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने यह बात कही है।
पंत ने साक्षात्कार में कहा, ‘‘हालांकि, देश की अर्थव्यवस्था अब सामान्य से कम मानसून और उच्च वैश्विक तेल कीमतों के दोहरे झटके से निपटने की जुझारू क्षमता रखती है, लेकिन चुनौती मुद्रास्फीति को नीचे लाने की है, ताकि लोगों के हाथ में खर्च के लिए अधिक पैसा हो।’’
उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति में एक प्रतिशत अंक की कमी से सकल घरेलू उत्पाद में 0.64 प्रतिशत की वृद्धि होगी या पीएफसीई (निजी अंतिम उपभोग व्यय) में 1.12 प्रतिशत अंक की वृद्धि होगी... यदि मुद्रास्फीति को एक प्रतिशत अंक तक कम किया जा सकता है, तो यह सभी के लिए जीत की स्थिति होगी।
पीएफसीई व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत उपभोग के लिए वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च को दर्शाता है।
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भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2023-24 में 7.3 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी
वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स की अनुषंगी कंपनी इंड-रा के अनुमान के मुताबिक, पीएफसीई चालू वित्त वर्ष में सालाना आधार पर 5.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह वृद्धि 7.5 प्रतिशत थी।
पंत ने कहा कि आर्थिक वृद्धि सरकारी खर्च से आगे बढ़ती है। साल-दर-साल आधार पर लगातार खर्च के ऊंचे स्तर से राजकोषीय घाटे और ऋण के लिए जोखिम पैदा होता है, जिसके चलते ब्याज दरें ऊंची रहेंगी।
पंत ने कहा, ‘‘जबतक निजी कंपनियों का निवेश शुरू नहीं होता और सरकार अपने द्वारा किए जा रहे कुछ निवेश को वापस नहीं लेती है, तबतक अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि की राह नहीं पकड़ेगी।’’
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी। सरकार का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी।
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पंत ने कहा कि आय वर्ग के मामले में भारत दो प्रकार के हैं - एक उच्च आय वर्ग के लोग और दूसरे निम्न आय वर्ग के लोग। ‘पिरामिड’ के निचले स्तर के लोगों का वेतन उसी गति से नहीं बढ़ रहा है जिस गति से संगठित क्षेत्र के लोगों या ऊपरी स्तर के लोगों का बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने एक अध्ययन किया है और पाया है कि निचले 50 प्रतिशत वर्ग के लोगों को शीर्ष 50 प्रतिशत आबादी के लोगों की तुलना में अधिक मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ता है। मुख्य रूप से निचले हिस्से के लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें ऊपरी स्तर द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं।’’
नवंबर में खुदरा या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर तीन महीने के उच्चस्तर 5.55 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जिसका मुख्य कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि है।