जानिये.. युवाओं के दिलों में आज भी क्यों बसते हैं वीर शहीद भगत सिंह..
आजादी की इबादत लिखने वाले वीर क्रांतिकारी अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में एक सिख जाट परिवार में हुआ, जिसने महज 23 साल की उम्र में अंग्रेजों की जड़ें हिला दी थीं। देश के इस महान सपूत को आज लाखों युवा अपना आदर्श मानते हैं। भगत सिंह की जयंती पर डाइनामाइट न्यूज़ की विशेष रिपोर्ट..
नई दिल्लीः सितंबर महीने की 28 तारीख का दिन भारत में आजादी के दीवानों के लिए बहुत ही खास है। आज हम-आप जिस खुली हवा में सांस लेते हैं उसके पीछे वीर क्रांतिकारी भगत सिंह का अनमोल योगदान है, जिसने गुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत मां को इससे आजाद कराने में अपने प्राणों की आहूति दे दी।
डाइनामाइट न्यूज़ की इस विशेष रिपोर्ट में हम बात कर रहे हैं भारत मां के एक ऐसे सपूत की जिसने 28 सितंबर 1907 को जन्म लिया, जिसे बाद में दुनिया ने जाना क्रांतिकारी भगत सिंह के नाम से। भगत सिंह ऐसे जांबाज थे जिनके बारे में वर्तमान ही नहीं आनी वाली पीढ़ियां भी फक्र कर उन्हें अपने दिलों में जगह देंगी।
भगत सिंह का जन्म
गांव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) की धरती पर एक जाट सिक्ख परिवार में किशन सिंह और विद्यावती कौर के घर में 28 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ। इस बालक के अंदर बचपन से ही कुछ कर गुजरने की थी। खुद भगत सिंह के माता-पिता को नहीं पता था कि एक दिन वह ऐसा काम करेगा कि पूरा देश उस पर गर्व करेगा।
भगत सिंह का पूरा परिवार देशभक्त था, उनके चाचा अजीत सिंह ने तो एक देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाया था। भगत सिंह के पिता किश्न सिंह उनकी उच्च पढ़ाई-लिखाई के लिए सोच रहे थे इसलिए उन्होंने बेटे का दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करवाया लेकिन भगत सिंह के दिमाग में तब कुछ और ही दौड़ रहा था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड
आजादी की लड़ाई के दौरान साल 1919 को वैसाखी वाले दिन हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया।
यहीं से ही जली आजादी की वो मशाल जिसकी चिंगारी ने गुलाम भारत पर राज कर रहे अंग्रेजों को जलाकर राख कर दिया। भारत तब आजादी के सपने देख रहा था इसके दीवाने भी इसमें मशगूल थे फिर चाहे वो गांधी जी हो या फिर दूसरे क्रांतिकारी। इसी आजादी की दीवानगी में शुमार हुआ जट्ट भगत सिंह का भी नाम।
जब गांधी जी भी हुए थे भगत सिंह के मुरीद
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भगत सिंह तब भारत की आजादी के लिए खड़े महात्मा गांधी के संपर्क में आए और उन्होंने असहयोग आंदोलन का खुलकर समर्थन किया लेकिन भगत सिंह के खून में तब वो उबाल था जो गांधी की अहिंसा वाले रास्ते से जुदा था।
खुद गांधी जी मानते थे कि भगत सिंह एक निडर इंसान थे जो सरेआम अंग्रेजों को ललकारते थे, भगत सिंह स्वदेशी को दिलों जान से चाहते थे इसलिए वो ब्रिटिश किताबों को जला दिया करते थे। जब भगत को अहिंसा का रास्ता रास नहीं आया तो उन्होंने गांधी से अलग एक क्रांतिकारी रुख अपनाया और अपनी अलग पहचान बनाई।
ज्वालामुखी की तरह जब भगत सिंह का खौला था खून
भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कॉलेज में बीए की पढ़ाई कर रहे थे तो यहां उनकी मुलाकात हुई सुखदेव, भगवती चरण और दूसरे युवाओं हुई। तब भगत सिंह के अंदर देशभक्ति का ऐसा बीज अंकुरित हुआ कि उन्होंने अपने इन साथियों के साथ पढ़ाई-लिखाई को बीच में ही छोड़ दिया।
यह वह समय था जब उन्होंने युवा अवस्था में कदम रखा था।
शादी को लेकर कुछ यूं दिया जवाब
भगत सिंह की शादी के लिए उनके पिता ने एक लड़की भी देखी थी लेकिन तब भगत सिंह ने अपने पिता से कहा कुछ ऐसा कि उनका भी दिल पसीज आया था। भगत सिंह बोले कि 'अगर मैं आजादी से पहले शादी करूंगा तो मौत ही मेरी दुल्हन होगी'।
लाला लाजपत राय की मौत ने भगत सिंह की बदली दिशा
भगत सिंह तब तक यूथ आइकॉन बन गए थे। जलियांवाला हत्याकांड के बाद से ही वह अंग्रेजों को भारत से निकालना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए नौजवान भारत सभा पार्टी को अपनाया। उनके परिवार को पता चल गया था कि अब भगत शादी नहीं करेगा तो उन्होंने आजादी की लड़ाई में उनका पूरा साथ दिया। साल 1926 में उन्हें भारत सभा पार्टी का सेक्रेटरी बनाया गया। इसके दो साल बाद उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को ज्वाइन किया।
इस पार्टी के कर्ताधर्ता तब चंद्रशेखर आजाद थे। 30 अक्टूबर 1928 को भारत आए साइमन कमीशन का भगत सिंह ने लाला लाजपत राय के साथ मिलकर विरोध किया। वह 'साइमन कमीशन वापस जाओ' का नारा लगा रहे थे कि इसी बीच लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज हुआ और अंग्रेजों की ताबड़तोड़ लाठीचार्ज से लाला जी बुरी तरह घायल हो गए और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
इससे उनके अंदर एक ऐसी ज्वाला जली की भगत सिंह ने इस मौत के लिए जिम्मेदार ऑफिसर स्कॉट को मारने की ठान ली और उन्होंने गुस्से में आपा खो दिया और गलती से स्कॉट की जगह असिस्टेंट पुलिस सोंदेर्स को मार डाला। यहीं से अंग्रेजों ने भगत सिंह को पकड़ने की ठानी और भगत सिंह ने अंग्रेजों को भारत से भगाने की।
जब भगत सिंह ने कटवा दी थी दाढ़ी, कोर्ट में फेंका बम
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वह अंग्रेजों की पकड़ से बचना चाहते थे और किसी भी कीमत पर देश की आजादी चाहते थे। तब उन्हें इस राह पर चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव का साथ मिला। सिख धर्म में दाढ़ी कटवाना पाप था लेकिन उन्होंने अपनी दाढ़ी कटवाई और अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर दिसंबर 1929 में ब्रिटिश सरकार की एक अदालत में बम बलास्ट कर दिया।
भारत के इतिहास में यह पहला ऐसा दिन बना जिसने आजादी की लौ को जला दिया था। ब्लास्ट कर भगत सिंह अंग्रेजों को मारना नहीं चाहते थे बल्कि उन्हें ये बताना चाहते थे वे भारत देश से बिना खून खराबे के चले जाए। इसका सबूत ये था कि इस हमले के बाद भगत सिंह ने 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाए और अपने साथियों के साथ सरेंडर कर दिया।
अंग्रेजों ने माना भगत सिंह का लोहा, युवाओं के दिलों में ऐसे किया राज
भगत सिंह जानते थे कि वह देश के लिए कुर्बानी देंगे इसके लिए वो अक्सर खुद को शहीद कहा करते थे। वह अब अंग्रेजों की चंगुल में फंस गए थे और अंग्रेजों ने भगत सिंह समेत राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुना दी।
तब जेल में बंद भगत सिंह व उनके साथियों के साथ अंग्रेजों ने जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया। उन्होंने तब जेल में भी आंदोलन चलाया और अन्न और जल का त्याग कर दिया। जेल में भगत सिंह ने 1930 में एक किताब लिखी जिसका नाम था 'Why i am atheist'।
आजादी के लिए जब 23 की उम्र में भगत सिंह ने दिया बलिदान
और आजादी के दीवाने भगत सिंह व उनके साथियों के लिए फिर आया एक ऐसा दिन जिसने भगत सिंह व भारत के लिए लिखी एक नई इबादत।
फांसी का दिन
23 मार्च 1931 के दिन सुखदेव, राजुगरु के साथ भगत सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दे दी।
उनकी फांसी की तारीख हालांकि 24 मार्च थी लेकिन अंग्रेजों को पता था कि देश में बवाल मच जाएगा और भगत सिंह को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले युवा जेल के अंदर बवाल मचा देंगे। इसलिए उन्होंने भारत वासियों को धोखा देकर 23 की मध्य रात्रि को भगत सिंह को उनके साथियों के साथ फांसी दे दी।
देश में जब-जब आजादी की वीर गाथा लिखी जायेगी सबसे पहले अमर शहीद भगत सिंह का नाम हमारी जुबां पर आयेगा।