दिल्ली के निजी अस्पताल के दो वरिष्ठ चिकित्सकों की डिग्रियों की पड़ताल का निर्देश
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), दिल्ली चिकित्सा परिषद (डीएमसी) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) को राष्ट्रीय राजधानी के एक नामचीन निजी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे दो वरिष्ठ चिकित्सकों की स्नातकोत्तर डिग्रियों की जांच करने का निर्देश दिया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), दिल्ली चिकित्सा परिषद (डीएमसी) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) को राष्ट्रीय राजधानी के एक नामचीन निजी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे दो वरिष्ठ चिकित्सकों की स्नातकोत्तर डिग्रियों की जांच करने का निर्देश दिया है।
उच्च न्यायालय ने आदेश 23 फरवरी को एक पीड़ित बच्चे की मां द्वारा याचिका पर दिया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दो चिकित्सकों की 'लापरवाही' के कारण उनके बेटे देवर्श जैन की जान खतरे में पड़ गई। याचिका में कहा गया है कि इन चिकित्सकों को विशेषज्ञ व परम विशेषज्ञ बताया जाता है, लेकिन उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं है।
डॉक्टर विवेक जैन और अखिलेश सिंह फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के इलाज के लिए गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) का संचालन करते हैं।
पीड़िता के वकील सचिन जैन और अजय कुमार अग्रवाल ने अदालत के समक्ष अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि फोर्टिस अस्पताल ने डॉ. जैन को बाल रोग विभाग का निदेशक और विभाग प्रमुख नियुक्त किया था और वह गहन चिकित्सा इकाई में नवजात शिशुओं के इलाज के लिए बाल रोग सुपर स्पेशलिस्ट के तौर पर प्रैक्टिस कर रहे हैं , जो वह कानूनी रूप से नहीं कर सकते।
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बच्चे के पिता सचिन ने आरोप लगाया कि डॉ. जैन के चिकित्सा शिक्षा प्रमाण पत्र से पता चलता है कि उन्होंने 2004 में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की थी और उसके बाद 2007 में उन्हें ब्रिटेन से ‘रॉयल कॉलेज ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ’ (एमआरसीपीसीएच) की सदस्यता मिली।
सचिन ने कहा कि उन्होंने व्यापक शोध किया और पाया कि ये दो योग्यताएं बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में प्रैक्टिस करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
सपना जैन ने अपनी याचिका में दूसरे डॉक्टर अखिलेश सिंह के बारे में आरोप लगाया है कि सिंह भी अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ वरिष्ठ सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं और वह आईसीयू में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के इलाज के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, उनके चिकित्सा शिक्षा प्रमाण पत्र से पता चलता है कि उन्होंने 1996 में एमबीबीएस और भारतीय मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कॉलेज (आईसीएमसीएच) से बाल स्वास्थ्य में डिप्लोमा प्राप्त किया था।
वरिष्ठ वकील मोहित माथुर ने मामले की पैरवी करते हुए अदालत से कहा, “ एमसीआई / एनएमसी ने आईसीएमसीएच स्नातकोत्तर चिकित्सा योग्यता को मान्यता नहीं दे रखी है। एक (बाल रोग) विशेषज्ञ के रूप में काम करने के लिए आईसीएमसीएच की आवश्यकता होती है। ऐसे में प्रैक्टिस के लिए सुपर स्पेशलिस्ट (बाल रोग) होना अनिवार्य है।”
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हालांकि, 23 फरवरी को न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की अध्यक्षता वाली दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि आगे की कार्यवाही करने से पहले विभिन्न चिकित्सा नियामक निकायों के साथ-साथ आरोपी डॉक्टरों से जवाब मांगना उचित होगा।
अदालत ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), दिल्ली चिकित्सा परिषद (डीएमसी) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) से तीन सप्ताह में जवाब मांगते हुए मामले की सुनवाई 19 अप्रैल तक स्थगित कर दी।
दरअसल, बच्चे की मां सपना जैन की परेशानियां अगस्त 2017 में शुरू हुईं जब उनके बेटे देवर्श को उक्त अस्पताल में मस्तिष्क आघात हुआ। कई महीने बाद बच्चे के मस्तिष्क में आईं चोट के बारे में पता चला।
उन्होंने 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि अस्पताल ने उनके बच्चे का 12 दिन तक आईसीयू में इलाज किया और ‘गलत मेडिकल समरी’ के आधार पर उसे सामान्य बताते हुए छुट्टी दे दी।