कानपुर: खेलने की उम्र में बच्चों के लिये खिलौने बनाने को मजबूर मासूम
दीपावली पर पटाखों के अलावा बच्चों में रंग-बिरंगे खिलौने और गुड़िया को लेकर भारी उत्साह रहता है। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि अधिकतर मामलों में बच्चों के ये खिलौने विवश बच्चों के नन्हें हाथों से बनते हैं।
कानपुर: दीपावली पर पटाखों के अलावा बच्चों में रंग-बिरंगे खिलौने और गुड़िया को लेकर भारी उत्साह रहता है। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि अधिकतर मामलों में बच्चों के ये खिलौने बच्चों के नन्हें हाथों से बनाये जाते हैं। खिलौनों से खेलने की उम्र में ये बच्चे पेट और रोटी का विवशता के चलते मिट्टी के खिलौने बनाने को विवश हैं। मिट्टी के इन खिलौनों के मार्केट में बिकने के बाद ही इन बच्चों के घर का चुल्हा जलता है। अपना हर गम भूलकर अन्य बच्चों को खिलौनो के रूप में खुशी देना अब इन मजबूर बच्चों की आदत बन गयी है।
दीपावली का पर्व नज़दीक आते ही कानपुर शहर के लक्ष्मीपुरवा इलाके में दीवाली के लिए रंग-बिरंगे खिलौने और गुड़िया बनाने में कई परिवार जुटे हैं। लक्ष्मीपुरवा में हर तरफ मिट्टी के खिलौनों को अंतिम रूप देने का काम बच्चों द्वारा किया जा रहा है। पढ़ाई के साथ-साथ ये बच्चे अपना समय परिवार को खिलौने बनाने के लिए दे रहे है।
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दीपावली के खास मौके पर ये बच्चियां इन खिलौने वाली गुड़ियों की रंगाई-पुताई में लगी हुई है। इन गुड़ियों को रंग में डुबोकर उस पर ब्रश से शेड देती है। बीए की पढ़ाई पूरा कर चुकी राखी ने बताया कि वह 2 साल से ग्वालिनि (गुड़िया) बना रही हैं। वह आसपड़ोस में जाती थी और ग्वालिनि बनाने लग जाती थी।
ग्वालिनि बनाने की प्रक्रिया बताते हुए राखी ने बताया कि इसके लिए मिट्टी को गीला कर उसे पहले सानते हैं। फिर उसे सांचे में डालकर उसे सुखाने के लिए बाहर निकालते हैं। सूखने के बाद खिलौने पर रँगाई करते हैं। एक गुड़िया बनाने में लगभग 5 से 6 मिनट का समय लगता है। जबकि एक दिन में 50-60 गुड़िया बना लेते हैं। यहां बनाते हुए 18 रूपये में एक पीस गुड़िया बेंच देते हैं। जो मार्केट में 40-50 रुपये जोड़ा बिकता है।
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इंटर में पढ़ रही छात्रा सपना ने बताया कि हम सभी मिल-जुलकर पढ़ाई के साथ साथ खिलौने बनाने का काम करते हैं। ये छोटी बच्चियां अपने परिवार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर गुड़िया और मिट्टी के खिलौनों की तैयारी करती हैं। खास बात ये है कि इन छोटी बच्चियों का बचपन जो इन खिलौनों के साथ तो बड़ा होता है, लेकिन वे इसे खुद तो खेल नही पाते। अपने हर गम को भूलकर ये बच्चे इन खिलौनों के जरिये अन्य बच्चों को खुशी देना ही अपना काम समझते है।