कानपुर: फल-सब्जियों और फसलों को कीड़ों से बचाने का नया तरीका

डीएन संवाददाता

फल-सब्जियों और फसलों पर कीड़े लगने के कारण किसान काफी परेशान रहते हैं। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सीएसए की ग्रह विज्ञान की प्रोफेसर डॉ नीरजा अग्रवाल ने एक नया तरीका ईजाद किया हैं..

प्रोफेसर डॉ नीरजा अग्रवाल
प्रोफेसर डॉ नीरजा अग्रवाल


कानपुर: फल-सब्जियों और फसलों को कीड़ा खा जाने से किसान काफी परेशान हो जाते हैं। किसानों को इस परेशानी से बचाने के लिए सीएसए की ग्रह विज्ञान की प्रोफेसर डॉ नीरजा अग्रवाल ने एक ऐसा तरीका ईजाद किया है, जिससे किसानों की फसलों को अब सुरक्षित रखा जा सकता है।

डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत के दौरान प्रोफेसर नीरजा ने बताया कि इस देसी ट्रैप (जुगाड़) को बनाने के लिए कोल्डड्रिंक की 2 लीटर की बोतल को काट लेते हैं और उसमें प्लाईवुड के 5 बाई 5 सेंटीमीटर के टुकड़े काट लेते हैं। इन टुकड़ों को इथाइल एल्कोहल, मिथाइल यूजीनाल और मेलाथियान के मिश्रण का घोल बनाकर 6:4:1 के अनुपात में भिगो देते हैं। इन भीगे हुए टुकड़ों को एक सप्ताह के बाद निकाल कर छाया में सुखाया जाता है। पूरे सूख जाने के बाद इसे 6 फुट से लेकर 8 फुट की ऊंचाई पर पेड़ों पर इसे लटका दिया जाता है। करीब 500 मीटर की दूरी पर ये देसी ट्रैप मक्खियों को आकर्षित कर लेती है और मक्खी उसमें फंस कर मर जाती है। 

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किसान इसे अपने लिए कम लागत में बना भी सकते हैं और अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं। किसान इसे एक हेक्टेयर में 10 ट्रैप के समान अनुपात की दूरी पर आम, अमरूद के पेड़ों पर लटकाएं, 1 एकड़ में 4 ट्रैप, चारों कोने पर इससे किसानों की फसलों को ज्यादा फायदा होगा। 

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देसी ट्रेप की कीमत बहुत कम

प्रोफेसर नीरजा ने बताया कि बाज़ार में इसकी कीमत लगभग 200 रुपये तक है, लेकिन इस देसी ट्रैप की क़ीमत महज़ 25 से 30 रुपये ही है। कम लागत में किसानों के लिए इससे अच्छा मक्खी ट्रैप और कोई नही हो सकता। किसान इन मक्खियों को डासी मक्खी के नाम से जानते हैं। वहीं सबसे बड़ी बात यह है कि यह देसी ट्रैप पर्यावरण को पूरी तरह सुरक्षित बनाये रखता है संचालन में आसान और सस्ता है। किसानों को विभाग में आने पर इसकी बारे में पूरी जानकारी दी जाती है।










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