जानिये गोरखपुर के शहीद स्थल डोहरिया कलां को, जिसे इतिहास ने भुला दिया

डीएन ब्यूरो

यूपी के गोरखपुर में एक जगह है डोहरिया कलां। इसका आजादी की लड़ाई में अहम स्थान है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की पूरी रिपोर्ट



गोरखपुर: जिले के डोहरिया कलां (Dohariya Kalan) का आजादी (Freedom) की लड़ाई में अहम स्थान है। 24 अप्रैल 1942 को डोहरिया के पास कोकोरी ट्रेन एक्शन (Kokori Train Action) की प्रेरणा से ट्रेन लूटी गई, जिसमें क्रांतिकारी चेतना से युक्त युवाओं ने भाग लिया। यहां पुलिस की गोली से 09 क्रांतिकारी मारे गये थे।

1857 से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के बीच निरंतर डोहरिया कलां में यह राग खूब गूंजा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जो कुछ हुआ, उसने इस स्थल को इतिहास में अमर कर दिया। 24 अप्रैल 1942 को डोहरिया के पास के गांव जोन्हियां में कोकोरी ट्रेन एक्शन की प्रेरणा से ट्रेन लूटी गई, जिसमें क्रांतिकारी चेतना से युक्त युवाओं ने भाग लिया।

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23 अगस्त 1942 को हुई थी सभा
इसी क्रम में गोरखपुर कांग्रेस कार्यालय पर एक मीटिंग 22 अगस्त 1942 को बुलाई गई, जहां यह तय हुआ कि 23 अगस्त को डोहरिया कलां के बाग में एक सभा आयोजित कर इस क्षेत्र में जनजागरण कर आंदोलन को मुखर किया जाएगा। बांसगांव के बाबू कमला सिंह को जिम्मेदारी दी गई। 23 अगस्त की दोपहर 12 बजे के करीब 10000 की भीड़ इकट्ठा हो गई। कांग्रेस नेताओं ने जब एक स्वर से कहना शुरू किया कि आप सभी लोग आजाद हैं। ब्रिटिश शासन (British rule) अभिशाप है। यह संबोधन चल ही रहा था कि उसी समय हाकिम परगना भूपेंद्र सिंह, जिला मजिस्ट्रेट डीबी मास सभा स्थल पर आ पहुंचे और आदेश दिया सभा भंग कर दी जाये।

पुलिस की गोली में मारे गए थे 9 लोग
व्यवस्थापक जयराज सिंह (Jairaj Singh) ने हकीम परगना (Hakim Pargana) से कहा कि हम शांतिपूर्वक सभा कर रहे हैं, लेकिन पुलिस का उद्देश्य सभा को भंग करना नहीं था बल्कि क्रूरतापूर्वक आंदोलन का दमन करना था। सो लाठीचार्ज हुआ, जनता ने प्रतिक्रिया स्वरूप पथराव किया। इस बीच पुलिस ने गोलियां चला दीं, जिससे 9 लोगों ने तत्काल दम तोड़ दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए। साथ ही 76 लोगों की गिरफ्तारी हुई। 28 अगस्त को पुलिस ने फिर डोहरिया कलां पहुंचकर आसपास के गांव पाली, डुमरी, मधवापुर (Madhwapur) आदि में सामूहिक लूटपाट की और जनता की सार्वजनिक पिटाई की।

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दर्जनों गांवों में लगा दी गई थी आग
यही नहीं गांव में आग लगा दी। लगभग आधा गांव जला था कि घनघोर बारिश (Rain) शुरू हो गई। गांव में लगी आग तो बुझ गई, लेकिन लोगों के दिलों में आजादी की ललक और अंग्रेजों द्वारा किए गए जुल्म की आग धधकती रही। जनसभा में जो नौ लोग मारे गए थे, उनके नाम वहां स्थापित शहीद स्मारक के पत्थर पर आज भी अंकित हैं।

स्वतंत्रता के बाद इतिहास में जगह न मिलने का है मलाल
डोहरिया कलां को स्वतंत्रता के बाद इतिहास में जगह नहीं दी गई। कारण था कि उस आंदोलन में कोई बड़े नाम वाला स्वतंत्रता संग्राम (Freedon Struggle) शामिल नहीं था। वह आंदोलन आजादी के लिए आमजन के हृदय की पुकार थी। आज जरूरत है, ऐसे गुमनाम बलिदानियों को मुख्यधारा में लाकर आजादी के प्रति उनके दीवानेपन की विरासत को सजाने की। 










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