जानिये अमेरिकी राजदूत की गार्सेटी वाली टिप्पणी पर क्या रही कांग्रेस की प्रतिक्रिया

डीएन ब्यूरो

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने शुक्रवार को कहा कि अतीत में भारत के आंतरिक मामलों पर किसी अमेरिकी राजदूत की ओर से ऐसी टिप्पणी नहीं सुनी गई जैसी अमेरिका के वर्तमान राजदूत एरिक गार्सेटी ने मणिपुर की स्थिति को लेकर कथित तौर पर पर की है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी


नयी दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने शुक्रवार को कहा कि अतीत में भारत के आंतरिक मामलों पर किसी अमेरिकी राजदूत की ओर से ऐसी टिप्पणी नहीं सुनी गई जैसी अमेरिका के वर्तमान राजदूत एरिक गार्सेटी ने मणिपुर की स्थिति को लेकर कथित तौर पर पर की है।

खबरों के मुताबिक, गार्सेटी ने बृहस्पतिवार को कोलकाता में कहा था कि मणिपुर में हिंसा और हत्या ‘मानवीय चिंता’ का विषय हैं तथा अगर अमेरिका से कहा जाता है तो वह स्थिति से निपटने के लिए भारत का सहयोग करने को तैयार है।

इसको लेकर लोकसभा सदस्य तिवारी ने ट्वीट किया, ‘‘चार दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने कभी नहीं सुना कि अमेरिका के किसी राजदूत ने भारत के आंतरिक मामलों के बारे में इस तरह का बयान दिया हो। हमने पंजाब, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में चुनौतियों का सामना किया और बुद्धिमत्ता के साथ सफलता हासिल की।’’

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, उनका कहना था कि 1990 के दशक में जब रॉबिन राफेल ने जम्मू-कश्मीर पर बयानबाजी की थी तो कुछ भी कहने से पहले भारत में अमेरिकी राजदूत सजग रहते थे।

राफेल अमेरिका की पूर्व राजनयिक हैं जिन्होंने दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों की जिम्मेदारी संभाली थी ।

कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने अमेरिकी राजदूत के कथित बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कटाक्ष किया।

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उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘मणिपुर हिंसा पर अमेरिकी राजदूत ने कहा है कि यह मानवीय चिंता की बात है। जब हिंसा में बच्चों या व्यक्तियों की मौत होती है तो इसकी चिंता करने के लिए भारतीय होना जरूरी नहीं है। दुख की बात है कि प्रधानमंत्री की ओर से एक बार भी मानवीय चिंता नजर नहीं आई।’’

मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में 120 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था।










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