Lok Sabha Election: यूपी में लोक सभा चुनाव की विछने लगी बिसात, जानिये अखिलेश यादव की 'PDA' एकता के बीच OBC नेताओं की ये नई चाल
अगले वर्ष प्रस्तावित लोकसभा चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ‘पीडीए’ (पिछड़ा वर्ग, दलित, अल्पसंख्यक) एकजुटता पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में राज्य के करीब आधा दर्जन प्रमुख ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का दामन थाम लिया है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट:
लखनऊ: अगले वर्ष प्रस्तावित लोकसभा चुनावों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ‘पीडीए’ (पिछड़ा वर्ग, दलित, अल्पसंख्यक) एकजुटता पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में राज्य के करीब आधा दर्जन प्रमुख ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का दामन थाम लिया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान, राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के पूर्व सांसद राजपाल सैनी, पूर्व मंत्री साहब सिंह सैनी, पूर्व विधायक सुषमा पटेल और 2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सपा की उम्मीदवार रहीं शालिनी यादव समेत कई प्रमुख ओबीसी नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं।
ओबीसी नेताओं के इस कदम को सपा के लिए झटका माना जा रहा है, लेकिन सपा का दावा है कि इससे उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “भाजपा में कोई संभावना नहीं है। सत्ता का लालच और दबाव देकर कुछ राजनीतिक अवसरवादियों को भाजपा ने जरूर तोड़ा है, लेकिन जनता सब समझती है।”
चौधरी ने आरोप लगाया, “जो लोग भाजपा में गए, उन्हें सपा ने पार्टी के साथ रहने के दौरान बहुत सम्मान दिया था, लेकिन सिद्धांतविहीन लोगों ने विश्वासघात किया।”
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एक राजनीतिक जानकार ने कहा कि सपा गठबंधन में ‘उचित स्थान’ नहीं मिलने से नाराज पिछड़ा वर्ग के नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, क्योंकि भाजपा “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” के नारे पर चलते हुए ओबीसी नेताओं को महत्व दे रही है।
वहीं, दारा सिंह चौहान ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “सपा छोड़ने की एक नहीं, अनेक वजहें हैं। ओबीसी समुदाय का भरोसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृह मंत्री अमित शाह जी के नेतृत्व में है। मोदी-शाह ओबीसी समुदाय को सम्मान दे रहे हैं।” उत्तर प्रदेश सरकार में वन मंत्री रह चुके चौहान मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से 2022 में सपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे। भाजपा में शामिल होने से पहले उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
पूर्व सांसद राजपाल सैनी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मैं सांसद, मंत्री और विधायक रह चुका हूं। 2022 के विधानसभा चुनाव में मुझे खतौली (मुजफ्फरनगर) से बहुत कम मतों के अंतर से हार मिली थी, लेकिन उपचुनाव में मेरा टिकट काट दिया गया। नगर निकाय चुनाव में भी मेरी उपेक्षा की गई। मैंने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि भविष्य भाजपा का ही है।”
सैनी ने यह भी कहा, “कांशीराम (बसपा संस्थापक) ने नारा दिया था-“जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी” और इस नारे पर अगर कोई सही मायने में अमल कर रहा है, तो वह भारतीय जनता पार्टी है।”
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इस बीच, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभावी महान दल के भी राजग में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि, महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने फिलहाल गठबंधन की संभावनाओं से इनकार किया है। लेकिन उन्होंने साफ कहा है, “हमारा संघर्ष सत्ता के लिए है और अगर भाजपा में उचित मौका मिले, तो हम गठबंधन कर सकते हैं।”
मौर्य 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा गठबंधन का हिस्सा थे, लेकिन बाद में वह उससे अलग हो गए।
उत्तर प्रदेश के कुल 80 लोकसभा क्षेत्रों में 25 से ज्यादा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व पिछड़ा वर्ग से आने वाले सांसद करते हैं। ओबीसी नेताओं का दावा है कि राज्य में ओबीसी समुदाय की आबादी 56 फीसदी तक है। हालांकि, हाल के निकाय चुनाव से पहले बनाए गए एक आयोग ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा था कि प्रदेश के सभी 762 नगर निकायों में पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.77 फीसदी के आसपास है।