डबल इंजन वाली सरकार की हकीकत: आपसी समन्वय की भारी कमी, असमंजस में नौकरशाही, नये डीजीपी को लेकर दिल्ली और लखनऊ में बढ़ी खींचतान
डबल इंजन की सरकार है, मिलकर काम कर रही है यह बात जनसभाओं में आपने अक्सर सुनी होगी लेकिन हकीकत जुदा है। उत्तर प्रदेश और केन्द्र में दोनों जगह भाजपा की सरकार है लेकिन महत्वपूर्ण निर्णय लेते वक्त दोनों के बीच आपसी समन्वय की भारी कमी दिखती है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:
नई दिल्ली: बात महज 25 दिन पुरानी है। तब यूपी के एक बेहद ताकतवर अफसर को राज्य सरकार की कोशिशों के बावजूद केन्द्र ने सेवा विस्तार नहीं दिया। उस वक्त यह मामला सत्ता प्रतिष्ठान में हर किसी की जुबान पर चर्चा का विषय बना हुआ था।
अब नयी तनातनी शुरु हुई है राज्य में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति को लेकर। योगी सरकार जब दोबारा सत्ता में लौटी तो 11 मई को मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से हटाकर सिविल डिफेंस का डीजीपी बना दिया गया और देवेन्द्र सिंह चौहान को राज्य का कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त कर दिया गया था। गोयल जून 2021 से करीब 11 महीने तक राज्य में डीजीपी के पद पर तैनात रहे।
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स्थायी डीजीपी की नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) में वरिष्ठ आईपीएस अफसरों का पैनल भेजा था। इस पैनल पर UPSC की मुहर के बाद स्थायी डीजीपी की नियुक्ति का रास्ता साफ होना है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक राज्य सरकार द्वारा भेजे गये पैनल में से तीन नामों को मंजूरी देने के बजाय UPSC ने सवालों के जाल में उलझा दिया है। अंदर की खबर यह है कि आयोग ने राज्य सरकार के पैनल को मुकुल गोयल को हटाये जाने से जुड़े सवालों की आड़ में लखनऊ वापस लौटा दिया है।
UPSC के सवाल
आयोग ने सवाल पूछा है कि मुकुल गोयल को डीजीपी के पद पर न्यूनतम 2 साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन किया गया या नहीं? यदि नहीं तो क्या यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट के 22 सितंबर 2006 के विस्तृत आदेशों के मुताबिक अगर भ्रष्टाचार, अपराधिक मामलों में सजा, भारतीय सेवा नियमों के उल्लंघन का मामला साबित होने पर ही किसी को डीजीपी पद से हटाया जा सकता है। आयोग ने पूछा है कि मुकुल गोयल के खिलाफ क्या ऐसा कोई मामला था और अगर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार, आपराधिक मामलों में सजा या कोई अन्य मामला बनता है तो उसके दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं। आयोग ने राज्य सरकार से कहा है कि नए डीजीपी की नियुक्ति के लिए उन सभी अधिकारियों का स्व-प्रमाणित बायोडाटा भी भेजा जाए जिनकी सेवा अवधि 30 साल पूरी हो चुकी है।
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राज्य सरकार का सख्त जवाब
इन प्रश्नों के जवाब में राज्य सरकार ने बेहद सख्त लहजे में UPSC को अपना जवाब भेज अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि वह किसी भी तरह से इस मामले में झुकने को तैयार नहीं है। राज्य सरकार का कहना है कि मुकुल गोयल को अकर्मण्यता के आधार पर हटाया गया है। डीजीपी की नियुक्ति का आधार सिर्फ वरिष्ठता ही नहीं परफॉर्मेंस और मेरिट भी है। सूत्रों का कहना है कि जवाब में यह भी लिखा गया है कि मुकुल गोयल 2006-07 में पुलिस भर्ती घोटाले के भी आरोपी रहे हैं। मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान ये एडीजी एलओ थे और उन्हें हटाया गया था। सहारनपुर में तैनाती के वक्त इनको सस्पेंड किया गया था।
अब आगे क्या
मुकुल गोयल 1987 बैच के आईपीएस हैं और इनकी रिटायरमेंट फरवरी 2024 में है जबकि देवेन्द्र सिंह चौहान 1988 बैच के आईपीएस हैं और इनकी सेवानिवृत्ति 6 महीने बाद मार्च 2023 में है। चिट्ठियों की तकरार के बाद माना जा रहा है कि UPSC अब इस पर निर्णय के लिए आयोग की बैठक बुलायेगा, यदि आयोग ने लखनऊ के मन मुताबिक नामों के पैनल पर अपनी मुहर लगा दी तो चौहान दो साल तक डीजीपी की कुर्सी पर बने रह सकते हैं और यदि चिट्ठियों की लड़ाई में मामले को लटकाया जाता है तो फिर चौहान डीजीपी की कुर्सी पर सिर्फ मार्च 2023 तक ही रह पायेंगे। कुल मिलाकर लड़ाई अब सिर्फ यह है कि चौहान डीजीपी की कुर्सी पर मार्च 23 तक रहेंगे या फिर दो साल तक और इसका निर्णय UPSC की कोर्ट से होगा।