माधव राष्ट्रीय उद्यान को मिलेंगे एक बाघ और दो बाघिन, जानिये पूरी योजना

डीएन ब्यूरो

मध्य प्रदेश के बाघ विहीन हो चुके माधव राष्ट्रीय उद्यान (एमएनपी) में बाघों को फिर से बसाने की योजना के तहत राज्य के अन्य बाघ अभयारण्यों से स्थानांतरित कर लाए गए एक बाघ और दो बाघिनों को छोड़ेंगे। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

मध्य प्रदेश माधव राष्ट्रीय उद्यान
मध्य प्रदेश माधव राष्ट्रीय उद्यान


भोपाल: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्य के वन मंत्री विजय शाह के साथ प्रदेश के शिवपुरी जिले में बाघ विहीन हो चुके माधव राष्ट्रीय उद्यान (एमएनपी) में बाघों को फिर से बसाने की योजना के तहत राज्य के अन्य बाघ अभयारण्यों से स्थानांतरित कर लाए गए एक बाघ और दो बाघिनों को छोड़ेंगे। वन विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।

शिवपुरी जिले की सीमा श्योपुर जिले से लगती है, जहां कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) स्थित है। देश में चीतों को फिर से बसाने की योजना के तहत केएनपी में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को लाया गया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार एमएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने  बताया, “भोपाल स्थित मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) से पिछले साल अक्टूबर में पकड़े गए बाघ को एमएनपी लाया जाएगा, जबकि पन्ना और बांधवगढ़ बाघ अभयारण्यों से दो बाघिनों को वहां स्थानांतरित किया जाएगा।”

मैनिट से पकड़े गए दो साल के बाघ को सतपुड़ा बाघ अभयारण्य में छोड़ दिया गया था।

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शर्मा ने बताया कि इन बाघ-बाघिनों को कुछ समय के लिए अलग-अलग बाड़ों में रखने के बाद एमएनपी के जंगलों में छोड़ दिया जाएगा। एमएनपी 375 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है।

शर्मा ने कहा यह तीसरी बार है, जब मध्य प्रदेश वन विभाग एक वन्यजीव अभयारण्य में बाघ को फिर से बसाने जा रहा है। उन्होंने बताया कि एमएनपी में वर्तमान में कोई बाघ नहीं है।

इससे पहले, पन्ना बाघ अभयारण्य और सागर के नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में बाघों को सफलतापूर्वक बसाया जा चुका है।

वन अधिकारियों के मुताबिक, एमएनपी में बाघों के लिए अच्छा शिकार उपलब्ध है, इसलिए केंद्र सरकार ने यहां बाघों को फिर से बसाने की योजना को मंजूरी दी है।

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अधिकारियों ने बताया कि एमएनपी में छोड़े जाने वाले बाघों में रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे और जंगल में उन पर नजर रखने के लिए तीन दल गठित किए गए हैं।

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक शुभ रंजन सेन ने कहा कि 1970 में एमएनपी में बाघों की संख्या काफी अधिक थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, 2010 के बाद से एमएनपी और उसके आसपास के इलाके में कोई बाघ नहीं देखा गया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2012 के बीच कुछ समय के लिए राजस्थान के बाघ एमएनपी के आसपास घूमते मिले थे। वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि एमएनपी में बाघ मुख्य रूप से शिकार के कारण खत्म हो गए।










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