DN Exclusive महराजगंज: एक छत के नीचे दो मदरसे, बिना बिल्डिंग के मिली मान्यता
प्रबन्धक और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से पनियारा ग्राम सभा के पास एक ही छत के नीचे दो-दो मान्यता प्राप्त मदरसे चल रहे हैं। हैरत करने वाली बात यह है कि जब मदरसे को मान्यता दी गयी, उस समय वहां मदरसा था ही नहीं। पूरी खबर..
महराजगंज: मदरसे में कमेटी के विवाद के बाद प्रबन्धक और विभागीय अधिकारियों की मिली भगत की पोल खुली तो कई चौंकाने वाले मामले सामने आये। पैसों और रसूख के दम पर जालसाजी का यह मामला पनियरा के ग्राम सभा के पास स्थित मदरसा दारुल ओलूम अरबिया हमीदिया अहले सुन्नत मदरसे का है। मदरसा प्रबन्धक और विभागीय अधिकारियों की मिली भगत से यहां एक ही छत के नीचे दो-दो मान्यता प्राप्त मदरसे चल रहे हैं। इसके अलावा हैरत करने वाली बात यह है कि जब मदरसे को मान्यता दी गयी उस समय वहां मदरसा था ही नहीं।
बिना जांचे-परखे दी गयी मान्यता
मिलीभगत का आलम इस तरह गहराया हुआ है कि लड़कियां का मदरसा निश्वा को जहां कागजों में दिखाया गया है, वहां उसका कोई भवन ही नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी दारुल ओलूम हमीदिया निश्वा पनियरा के नाम से मदरसे को विभाग ने मान्यता दे दी। बिना जांचे-परखे दी गयी मान्यता के बाद उसमें दर्जन भर से अधिक अध्यापिकाओं व स्टॉप की नियुक्ति भी की गयी, जो सरकार की आंखों में धूल झोंककर मोटा मानदेय ले रहे हैं।
मान्यता मिलने से पहले ही नियुक्तियां और वेतन
सूत्रों की माने तो निश्वा मदरसे को जिस वर्ष सरकार ने मान्यता दी, उस वर्ष व समय मदरसे के नाम से जमीन तक नहीं थी। अफसोसजनक बात यह भी है कि मान्यता मिलने से पहले ही इसमें नियुक्तियां भी हो गयी और सेलरी भी दी जाने लगी। अब जब मामला खुलने लगा तो आनन-फानन में मदरसे के नाम जमीन तो ले गयी, लेकिन बिल्डिंग अब भी नहीं बन सकी।
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नाराज पक्ष ने खोला मदरसे का काला चिट्ठा
यह मामला तब सामने आया जब उक्त मदरसे में कमेटी का विवाद शुरू हुआ। इसी विवाद के बाद एक नाराज पक्ष ने मदरसे का काला चिट्ठा खोलना शुरू किया। जिला अल्पसंख्यक अधिकारी द्वारा कई बार जाँच भी की गई, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी, जिससे अब विभाग भी संदेह के घेरे में है।
जांच के बाद भी मामला जस का तस
बताया जाता है कि जब कार्यवाही के लिए ऊपर के अधिकारी तैयार होते है तो विभाग और कमेटी पैसों के दम पर केवल जाँच-जांच रटते हुए सुनाई देते है। साल भर पहले जब यह मामला सुर्खियों में आया तो जिला अल्पसंख्यक अधिकारी ने मीडिया को बयान दिया था कि उक्त मदरसे की तनख्वाह रोक दी गयी है और मान्यता रदद् करने के लिए शासन को लिखा गया है, लेकिन मामला आज भी जस का तस है।
इस तरह खुली मदरसे की पोल
उक्त मदरसा तब सुर्खियों में आया जब मदरसे के प्रबंधक जया खां का कुछ वर्ष पूर्व में आकस्मिक निधन हो गया। जया खां के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रबन्धक बन गयी। कुछ ही महीनों में कमेटी में जंग छिड़ गयी, जिसका परिणाम रहा कि आज उक्त मदरसे में कमेटी भंग है। विवाद का कारण गोरखपुर शहर का एक ब्यक्ति नेहाल खां बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक नेहाल खां ने अपनी पत्नी को उक्त विवादित मदरसे का प्रिंसिपल नियुक्त करवा दिया, जहाँ से मदरसे में जंग और तेज हो गयी।
फंसेंगे कई अधिकारी-कर्मचारी
सूत्रों का कहना है कि इस पूरे प्रकरण की यदि उच्च स्तरीय जाँच कराई जाए तो कई सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों व प्रबन्धकों का फंसना लगभग तय है।