UP का महराजगंज क्यों है प्रसिद्ध, जानें इस जिले के नाम के पीछे का बड़ा रहस्य
महाराजगंज जिला अपने ऐतिहासिक मान्यताओं और धार्मिक स्थलों की वजह से माना जाता है। आइए जानते है इसके इतिहास और इसके नाम के पीछे का रहस्य। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज की पूरी खबर

महराजगंज: उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिला अपने ऐतिहासिक मान्यताओं और धार्मिक स्थलों की वजह से जाना जाता है। यह जिला भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह को पहले 'कारापथ' के नाम से जाना जाता था।महराजगंज के नाम के पीछे छिपे रहस्य इसे खास बनाते हैं।
डाइनामाइट न्यूज के मुताबिक, महराजगंज जिला गोरखपुर के अंतर्गत हुआ करता था। 2 अक्टूबर 1989 को गोरखपुर जिले से काटकर महराजगंज जिले का निर्माण हुआ था। इस जिले का इतिहास काफी पुराना है। यहां पहले कोलिय समुदाय के लोग रहा करते थे। दरअसल, यह जिला बौद्धकालीन के इतिहास की ओर इशारा करती है। वहीं जिले के नाम "गंज" की बात करे तो आपको बता दें कि इसका मतलब बाजार होता है। ऐसे कई जगहों के नाम पर ये शब्द लिखा होता है। जो बाजार को प्रसांगिक करते हैं।
कुछ सालों पहले यहां उत्खनन
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यूपी के महराजगंज जिले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर इस जिले को सबसे अलग बनाती है। जिले की नौतनवा क्षेत्र में बनसिया कला के देवदह में गौतम बुद्ध का ननिहाल है जो एक ऐतिहासिक स्थल है। जानकारी के मुताबिक बता दें गौतम बुद्ध की मां यहीं की रहने वाली थी। इस बात की पुष्टि बीते कुछ सालों पहले यहां उत्खनन से हुई। यह जगह बौद्ध अनुयायियों के लिए एक बड़ा धार्मिक स्थल है। इस स्थल से बौद्ध अनुयायियों की श्रद्धा जुड़ी हुई है।
महराजगंज दुर्गा मंदिर
जनपद मुख्यालय के कालेज रोड पर स्थित श्री दुर्गा मंदिर एवं संस्कृत पाठशाला समिति जनपद का गौरव है। इस प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर की स्थापना 24 मार्च 1979 को इसके संस्थापक और अध्यक्ष सुशील कुमार टिबड़ेवाल ने की थी। यह मंदिर बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है।
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लेहड़ा देवी मंदिर
महराजगंज के मुख्य पर्यटन स्थल में लेहड़ा देवी मंदिर का नाम आता है। यह लेहड़ा के जंगल में स्थित है। यहां दुर्गा मां का मंदिर काफी फेमस है। पूर्वी यूपी के श्राद्धालु काफी संख्या में दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने अपने वनवास समय में शामिल 1 साल का अज्ञातवास भेष बदलकर बिताया था। ऐसे में लहेड़ा जंगलों में आए थे और लेहड़ा देवी ने आश्रय दिया था। साथ ही ऐसा कहा जाता है कि इन्ही जंगलों में युधिष्ठिर से यक्ष के 5 सावल पूछे गए थे।