महराजगंज: सम्मेलन में जुटे सांसद-विधायक, नही दिखे बागी, भाजपाईयों के माथे पर चिंता की लकीर
महराजगंज जिले में नगर पालिका की दो और नगर पंचायत की पांच सीटों पर अध्यक्ष के उम्मीदवार जीताने के लिए भाजपा को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। बगावत से कैसे निपटें..इस बारे में पार्टी को कुछ सूझ ही नही रहा. डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..
महराजगंज: शहर के एक मैरिज हाल में बुधवार को आयोजित बीजेपी के कार्यकर्ता सम्मेलन में बागी नेताओं की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी रही। इस सम्मेलन में क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेद्र दत्त शुक्ला, सांसद पंकज चौधरी, विधायक प्रेमसागर पटेल, जयमंगल कन्नौजिया और ज्ञानेन्द्र सिंह समेत तमाम कार्यकर्ता उपस्थित रहे, लेकिन जिन नेताओं के टिकट कटे हैं, उनमें से अधिकांश नदारद रहे।
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मौजूद नही फिर भी चर्चा सिर्फ बागियों की
यह सम्मेलन निकाय चुनाव को जीतने की रणनीति बनाने के लिए बुलाया गया था। खुल कर तो किसी ने नही लेकिन दबे जुबान से हर कोई बागियों के अगले रुख की चर्चा करता रहा। तमाम कार्यकर्ताओं का कहना रहा कि यदि बागियों ने भीतरघात किया और पार्टी प्रत्याशी और जनप्रतिनिधि अहंकार में ही डूबे रहे तो पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
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'पटेल फैक्टर' पहुंचा सकता है बड़ा नुकसान
महराजगंज नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष का टिकट जबसे बीजेपी की तरफ से कृष्णगोपाल जायसवाल को मिला है तबसे टिकट के प्रबल दावेदार रहे तीन प्रमुख पटेल नेता अंदरुनी तौर हत्थे से उखड़े हुए हैं। इनमें एक तो एक विधायक के पुत्र हैं, दूसरे एक समय में सांसद के बेहद नजदीक रहे हैं और तीसरे जनहित के मुद्दे पर आम जनता के लिए हमेशा संघर्ष में आगे खड़े रहे हैं। अब ये तीनों प्रमुख नेता भाजपा के एक बागी नेता का समर्थन करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। हालांकि इनमें से किसी ने भी अपने पत्ते नही खोले हैं। इन्हीं में से एक ने डाइनामाइट न्यूज़ की चुनावी टीम को बताया कि वे 17 नवंबर के बाद कोई निर्णय लेंगे।
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भगदड़ के डर से बागी प्रत्याशी के खिलाफ अब तक नही कोई एक्शन
सम्मेलन में कई कार्यकर्ता दबी जुबान से संगठन की लचर कार्यप्रणाली पर ही चर्चा करते रहे। कईयों का मानना है कि पार्टी के एक वैश्य नेता खुलेआम अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनावी मैदान में 'गदा' भांज रहे हैं। ये जोर-शोर से चुनाव भी लड़ रहे हैं। फिर भी संगठन की हिम्मत नही पड़ रही है कि उनके खिलाफ कोई एक्शन ले।
लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है असर
जानकारों का मानना हैं टिकट के लिए बागी हुए नेताओं को यदि समय रहते समझाया-बुझाया नही गया तो इनकी नाराजगी एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पर गहरा असर डाल सकती है।
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सातों जगह पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर
पांच नगर पंचायत और दो नगर पालिका में कुल सात जगह सत्तारुढ़ भाजपा को अपने अध्यक्ष और सभासद के प्रत्याशी जीताने में जनकर पसीना बहाना पड़ रहा है। इसमें सबसे बड़ी बाधा इनके अपने ही कार्यकर्ता हैं जिनसे पार पाना फिलहाल अासान नज़र नही आ रहा है।
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