महराजगंज: हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हरियरा बाबा के मेले में पहुंचे हजारों श्रद्धालु, मांगी मन्नतें

डीएन ब्यूरो

लक्ष्मीपुर ब्लॉक के मोगलहा गांव में हर वर्ष लगने वाला हरीयरा बाबा का मेला हिन्दू-मुस्लिम एकता का सबसे बड़ी प्रतीक माना जाता है। इस मेले के मौके पर सुदूर क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की पूरी रिपोर्ट



महराजगंज: हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हरियरा बाबा के मेले में हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने मन्नते व सलामती की दुआ मांगी। कोरोना काल के बाद दो वर्षों से बंद इस मेले में इस बार नई रौनक देखने को मिली। लक्ष्मीपुर ब्लॉक के मोगलहा गांव में हर वर्ष हरीयरा बाबा का मेला आयोजित किया जाता है, जहां सुदूर क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।  

लक्ष्मीपुर ब्लॉक के मोगलहा गांव में हर वर्ष लगने वाले हरीयरा बाबा के नाम से प्रसिद्ध यह मेला विगत दो वर्षो के कोरोना काल के बाद बंद था। कोरोना महामारी कम होने के बाद इस साल मेले में हजारों श्रद्धालु दूर-दराज के क्षेत्रों से पहुंचे। श्रद्धालुओं ने बाबा के मजार पट अपनी मन्नतें व सलामती की दुआएं मांगी।

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बता दें कि हरा लिबास, नाटा कद, एक हाथ में बधना और दूसरे में तस्बीह (माला), एकान्तप्रिय सूफी संत हरियरा बाबा क्षेत्रीय लोगों की आस्था के प्रतीक हैं। लक्ष्मीपुर ब्लॉक के मोगलहा गांव में उनकी मजार पर उर्स के अवसर पर श्रद्घालु पहुंचना शुरू कर दिए हैं। माना जाता है कि यहां आने पर बाबा मन की मुरादें पूरी करते हैं। शनिवार को तीन दिवसीय उर्स शुरू हो गया है।

बाबा के शिष्य बताते हैं कि सफीपुर के रुहानी ताकतों के मालिक हजरत समीउल्लाह शाह उर्फ बस्सन मियां के मुरीदे खास थे हरियरा बाबा। उन्हीं के आदेश पर वे घूम-घूम कर लोगों को सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे थे। उनका वास्तविक नाम खैरुल्लाह शाह था, लेकिन वे सदैव हरा लिबास पहना करते थे। इस कारण लोग उन्हें हरियरा बाबा के नाम से पुकारने लगे। बाबा सन् 1965-66 में घूमते हुए मोगलहा आए और गांव के लोगों को सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश देने लगे। उनसे प्रभावित होकर मोगलहा गांव के अखरुज्जमा और औरंगजेब नामक दो युवक उनके मुरीद हो गए और बाबा उन्हीं के घर रहने लगे थे।

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