महराजगंज के चर्चित आशुतोष पटेल हत्याकांड में नया मोड़, पुलिसिया जांच पर हाईकोर्ट का शिकंजा
डाइनामाइट न्यूज़ पर इस समय महराजगंज जिले की सबसे बड़ी और एक्सक्लूसिव खबर सामने आ रही है। डेढ़ महीने पहले महराजगंज कस्बे के युवा कपड़ा व्यवसायी आशुतोष पटेल उर्फ जेडीएफ हत्याकांड में पुलिसिया खुलासे से नाराज परिजनों की अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से समूचे मामले में नया मोड़ आ गया है। पूरी तहकीकात..
महराजगंज: शहर के कालेज रोड स्थित हाजी काम्पलेक्स में जेडीएफ नाम से गारमेंट शाप चलाने वाले कुर्मी जाति के युवा व्यापारी आशुतोष पटेल की हत्या के मामले में चैन की बंसी बजाने वालों की नींद हाईकोर्ट के एक आदेश से उड़ गयी है।
डाइनामाइट न्यूज़ की इन्वेस्टिगेटिव टीम को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक हत्याकांड के पुलिसिया खुलासे से असंतुष्ट परिजनों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिट संख्या 12934/2018 दाखिल कर पुलिसिया थ्योरी पर सवालिया निशान खड़े किये। याचिका कर्ता प्रमोद पटेल ने कहा कि मृतक की पत्नी के अवैध संबंध बैकुंठपुर के ही एक सजातीय के युवक से हैं। परिजनों के मुताबिक कत्ल में बहु, उसके प्रेमी व इन दोनों के एक अन्य साथी का हाथ है। परिजनों का चौंकाने वाला आरोप है कि जिन लोगों ने हत्या की उनको पुलिस ने पहले तो उठाया लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव पड़ने पर छोड़ दिया गया और फर्जी खुलासा कर दिया गया।
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रहस्यमय प्रश्न: खुलासे के डेढ़ महीने बाद भी क्यों नही पूरी हुई विवेचना?
परिवार वालों का कहना है कि उन्होंने इस तीनों के नामों के बारे में लिखित रुप से कई बार जिले व मंडल के उच्च पुलिस अफसरों को अवगत कराया लेकिन सभी ने टाल-मटोल ही किया और झूठे खुलासे पर कायम रहे। परिजनों का सबसे बड़ा आरोप यह है कि खुलासे के डेढ़ महीने बाद तक कोतवाली पुलिस ने विवेचना को पूर्ण नही किया है जिससे पुलिस की मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा हो रहा है।
हाईकोर्ट का आदेश
उच्च न्यायालय ने 21 मई के अपने आदेश में साफ कहा है कि मामले की जांच 3 महीने के अंदर पूरी कर पुलिस रिपोर्ट 90 दिन के अंदर संबंधित न्यायालय में प्रेषित की जाय। इसकी किसी भी दशा में अवहेलना न की जाय। हाईकोर्ट ने इसकी सीधी मानीटरिंग करने की जिम्मेदारी एसपी, महराजगंज आरपी सिंह को सौंपी है।
बड़ा सवाल किन राजनीतिकों ने प्रभावित किया जांच को?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या परिजनों का आरोप सही है कि इस जांच को राजनीतिक लोगों ने प्रभावित किया यदि हां तो फिर वे कौन से ऐसे पुलिस अधिकारी हैं जिन्होंने जांच को सही दिशा से भटकाकर असली दोषियों को बचा लिया? जिस तरह से मामले में हाईकोर्ट का रुख रहा है उसे देखते हुए लगता है कि पुलिस ने यदि जांच सही दिशा में नही की तो आगे भी यह मामला उच्च न्यायालय की दहलीज पर पहुंचेगा और फिर नेताओं से लेकर दबाव में आने वाले पुलिस अफसरों की मुसीबत बढ़ेगी।
क्यों अब तक रखी गयी है विवेचना पेंडिंग
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कोतवाली पुलिस ने डेढ़ महीने पहले ही हत्याकांड का खुलासा कर दिया था तबसे लेकर आज तक क्यों नही विवेचना पूरी तरह से पूर्ण कर चार्जशीट अंतिम रुप से न्यायालय को भेजी गयी? यह बात पुलिसिया थ्योरी पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है।
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पुलिस विभाग के एक उच्च अधिकारी की भूमिका संदेह के घेरे में
नगर में चर्चाओं के मुताबिक एसपी आरपी सिंह खुद पूरे मामले की मानीटरिंग कर रहे थे लेकिन खुलासा करने वाली उनकी टीम के एक वरिष्ठ मातहत पुलिस अफसर की भूमिका पूरे मामले में संदिग्ध है। जांच को अपने हिसाब से मोड़कर दूसरे को लाभान्वित करने में माहिर इस अफसर की भूमिका को लेकर परिजन भी संदेह जता रहे हैं। इनका कहना है कि पुलिस ने जांच में न्याय नही दिया तो सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाने से पीछे नही हटेंगे।
एएसपी के जवाब में विरोधाभास
इधर एएसपी आशुतोष शुक्ला से जब इस मामले पर डाइनामाइट न्यूज़ ने बात की तो उनका कहना था कि मामले में चार्जशीट प्रेषित की जा चुकी है। जब उनसे पूछा गया कि कथित आरोपी अलिरजा की चार्जशीट केअतिरिक्त क्या मामले की विवेचना पूरी तरह से पूर्ण कर रिपोर्ट न्यायालय को भेज दी गयी है तो उन्होंने इसका कोई जवाब नही दिया।
काफी लोकप्रिय थे व्यापारी आशुतोष
दिवंगत आशुतोष शहर के युवाओं और व्यापारियों में अपने मिलनसार व्यवहार को लेकर काफी लोकप्रिय थे और जिस तरह से हाईकोर्ट का निर्णय आया है उसके बाद से शहर भर में यह मांग तेज होने लगी है कि मामले का सही खुलासा हो और आरोपियों को बचाने वाले दोषी नेताओं औऱ पुलिस अफसरों पर कड़ी कार्यवाही हो। आषुतोष की लोकप्रियता का आलम यह है कि नौजवानों ने इनकी याद में कैंडिल मार्च तक निकाला था।