Maharashtra Politics: सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता याचिका के निपटारे वाली अर्जी पर विस अध्यक्ष को जारी किया नोटिस, जानिये ये अपडेट
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय से जवाब मांगा, जिसमें जून 2022 में राज्य में सरकार गठन के लिए (भाजपा) के साथ गठबंधन करने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अन्य शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं का जल्द निपटारा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय से जवाब मांगा, जिसमें जून 2022 में राज्य में सरकार गठन के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन करने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अन्य शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं का जल्द निपटारा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विधायक सुनील प्रभु की याचिका पर सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय को इस संबंध में नोटिस जारी किया। अविभाजित शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में प्रभु ने वर्ष 2022 में पार्टी से बगावत करने वाले शिंदे और अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं दायर की थीं।
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पीठ ने कहा, “हम दो सप्ताह में वापस करने योग्य नोटिस जारी करेंगे।” इस पीठ में न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
शिवसेना (यूबीटी) की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर शीर्ष अदालत के 11 मई के आदेश के बावजूद अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने में देरी कर रहे हैं।
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अधिवक्ता निशांत पाटिल और अमित आनंद तिवारी के माध्यम से दाखिल इस याचिका में कहा गया है, “महाराष्ट्र विधानसभा के दोषी सदस्यों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं के निपटारे में जानबूझकर देरी किए जाने के प्रतिवादी अध्यक्ष के आचरण के मद्देनजर याचिकाकर्ता इस अदालत से उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत हासिल असाधारण क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करने का अनुरोध करने के लिए बाध्य है।”
याचिका में दावा किया गया है कि लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर उचित अवधि के भीतर फैसला लिए जाने के शीर्ष अदालत के 11 मई के आदेश के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष ने इस संबंध में एक भी बार सुनवाई नहीं की है।