सरदार सरोवर बांध विस्थापितों को लेकर मेधा पाटकर ने किया ये बड़ा दावा, जानिये पूरा अपडेट

डीएन ब्यूरो

नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखिया मेधा पाटकर ने मंगलवार को दावा किया कि सरदार सरोवर बांध के कारण विस्थापित लोगों की सुनवाई के लिए इंदौर में गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण (जीआरए) में महीनों से एक भी न्यायाधीश नहीं होने से इस निकाय में करीब 7,000 मामले लंबित हैं।

मेधा पाटक
मेधा पाटक


इंदौर (मध्यप्रदेश): नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखिया मेधा पाटकर ने मंगलवार को दावा किया कि सरदार सरोवर बांध के कारण विस्थापित लोगों की सुनवाई के लिए इंदौर में गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण (जीआरए) में महीनों से एक भी न्यायाधीश नहीं होने से इस निकाय में करीब 7,000 मामले लंबित हैं।

गौरतलब है कि सरदार सरोवर बांध गुजरात में नर्मदा नदी पर बना है। इसके बैकवॉटर (बांध की बाहरी दीवार से टकराकर लौटने वाला पानी) के कारण मध्यप्रदेश के बड़वानी, धार, खरगोन और अलीराजपुर जिलों में नर्मदा किनारे बसे कई इलाके जलमग्न हो चुके हैं।

बांध परियोजना के तहत पुनर्वास और मुआवजा वितरण में कथित विसंगतियों को लेकर बड़ी तादाद में विस्थापितों ने पाटकर की अगुवाई में इंदौर में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के दफ्तर में धरना-प्रदर्शन किया। एनवीडीए राज्य सरकार के अधीन एक विभाग है।

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नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख पाटकर ने डाइनामाइट न्यूज़ से कहा,‘‘जीआरए में महीनों से एक भी न्यायाधीश नहीं है, जबकि उच्चतम न्यायालय के 2015 के एक आदेश के मुताबिक इसमें पांच न्यायाधीश होने चाहिए।’’

उन्होंने दावा किया कि जीआरए में बांध विस्थापितों की फिलहाल 7,000 शिकायतें लंबित हैं, लेकिन महीनों से न्यायाधीशों की नयी नियुक्ति नहीं होने से इन पर सुनवाई नहीं हो पा रही है।

एक अधिकारी ने बताया कि शुरुआत में जीआरए में पांच न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान था, लेकिन बाद में शिकायतों की तादाद कम होने से इसमें न्यायाधीशों की संख्या घटाकर तीन कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि फिलहाल जीआरए में न्यायाधीशों के तीनों पद खाली हैं और उनकी नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है।

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अधिकारी ने बताया कि स्वतंत्र निकाय के तौर पर गठित जीआरए में आमतौर पर उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं और प्रदेश सरकार के एनवीडीए विभाग के फैसलों से असंतुष्ट बांध विस्थापित जीआरए की शरण लेते हैं।

पाटकर ने यह दावा भी किया कि उच्चतम न्यायालय और विभिन्न न्यायाधिकरणों के अलग-अलग आदेशों के बावजूद मध्यप्रदेश में करीब 1,000 बांध विस्थापित परिवारों का उचित पुनर्वास नहीं हो सका है और इनमें से कई परिवार अब भी टिन शेड में रहने को मजबूर हैं।










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