DN Exclusive: दशहरे पर यूपी के कई क्षेत्रों में नहीं होता रावण दहन, जानिये.. आखिर क्यों
दशहरे के दिन लगभग पूरे भारत में रावण का पुतला दहन किया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां राव का पुतला दहन नहीं किया जाता है। डाइनामाइट न्यूज़ की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में जानिये आखिर ऐसा क्यों..
मेरठ: दशहरे पर लंकापति रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। इस मौके पर लगभग पूरे भारत में रावण का पुतला जलाया जाता है लेकिन डाइनामाइट न्यूज़ की इस खबर को पढ़कर आपको हैरानी होगी कि यूपी के कई हिस्सों में आज भी रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है, जानिये आखिर क्यों..
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लंकेश्वर के मंदिर
वेस्ट यूपी की धरती से लंकापति रावण का खासा जुड़ाव रहा है। रावण के जन्म से लेकर उसकी ससुराल तक वेस्ट यूपी में मौजूद है। इसके चिन्ह भी यहां पर दिखाई देते हैं। दशानन रावण का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों से गहरा नाता रहा है। इसी कारण इस क्षेत्र में कई स्थानों पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता और लंकेश्वर के मंदिर तक बनाए जा चुके हैं, जहां उनकी पूजा होती है।
दूधेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करता था रावण
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एमएम काॅलेज मोदीनगर के इतिहास विभागाध्यक्ष डाॅ. केके शर्मा ने डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में कहा कि जनुश्रुति के अनुसार गौतमबुद्ध नगर क्षेत्र के बिसरख में रावण के पिता महर्षि विश्रवा मुनि का आश्रम था। यहीं पर रावण का जन्म हुआ था। उसका बचपन भी यहीं पर बीता था। भगवान शिव का भक्त होने के कारण वह अपने पिता के साथ प्रतिदिन गाजियाबाद के दूधेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करने जाता था। यह मंदिर आज भी विद्यमान है। इसी तरह से बिसरख में भी प्राचीन शिव मंदिर अभी भी विद्यमान है। बिसरख में लोग दशहरा नहीं मनाते। यहां पर रावण का एक मंदिर भी बनाया जा चुका है।
मय दानव के नाम पर मेरठ
इतिहासकार डाॅ. अमित पाठक का कहना है कि मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र है। मय दानव के नाम पर ही मेरठ का नाम मयराष्ट्र पड़ा। मय दानव की पुत्री मंदोदरी से लंकेश्वर रावण का विवाह हुआ था। इससे स्पष्ट है कि मेरठ से भी रावण का गहरा नाता रहा है। ऐतिहासिक रूप से भी प्रमाण मिलते हैं कि सदर स्थित बिल्वेश्वर महादेव मंदिर में मंदोदरी पूजा करने जाती थी। जिस स्थान पर मय दानव रहता था, वहां तहसील टीला है।