एनएमसी ने चिकित्सा महाविद्यालयों में पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप पाठ्यक्रम की शुरुआत की

डीएन ब्यूरो

चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने पहली बार उसके द्वारा विनियमित चिकित्सा महाविद्यालयों में पोस्ट डॉक्टोरल फेलेशिप पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। आयोग को उम्मीद है कि इस पहल से अनुसंधान और चिकित्सीय कौशल विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग
चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग


नयी दिल्ली: चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने पहली बार उसके द्वारा विनियमित चिकित्सा महाविद्यालयों में पोस्ट डॉक्टोरल फेलेशिप पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। आयोग को उम्मीद है कि इस पहल से अनुसंधान और चिकित्सीय कौशल विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।

चिकित्सा संस्थान अबतक चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने के लिए अपने स्तर पर ही यह पाठ्यक्रम तैयार कर उसे मंजूरी दे रहे थे।

नियामक ने हाल ही में ‘पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन, 2023’ को अधिसूचित किया है। इसके अनुसार एक बार चिकित्सा महाविद्यालय को स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम या सीट शुरू करने की अनुमति मिल जाने के बाद पाठ्यक्रम को मान्यता प्राप्त माना जाएगा।

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार एनएमसी में स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. विजय ओझा ने बताया कि इससे स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद छात्रों को अपनी डिग्री पंजीकृत करने में आने वाली कई कठिनाइयों का समाधान हो जाएगा।

स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा (संशोधन) विनियम, 2018 की जगह लेने वाले नए नियमों के अनुसार, मौजूदा नीट-पीजी परीक्षा तब तक जारी रहेगी जब तक कि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश के उद्देश्य से प्रस्तावित नेशनल एग्जिट टेस्ट (एनईएक्सटी) अमल में नहीं आ जाता।

नए नियमों में कहा गया है कि सभी स्नातकोत्तर छात्र पूर्णकालिक रेजीडेंट डॉक्टरों के रूप में और ‘उचित कार्य घंटों’ में काम करेंगे और उन्हें एक दिन में ‘आराम के लिए उचित समय’ प्रदान किया जाएगा।

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उन्हें प्रति वर्ष न्यूनतम 20 दिन की आकस्मिक छुट्टी और प्रति वर्ष पांच दिन की शैक्षणिक छुट्टी की अनुमति होगी।

नए नियमों में कहा गया है कि अनिवार्य काम होने पर स्नातकोत्तर छात्रों को एक साप्ताहिक अवकाश की अनुमति दी जाएगी।

डॉ.ओझा ने कहा, ‘‘ इससे पहले लिखित में छुट्टी का प्रावधान नहीं था।’’










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