क्या आप जानते हैं श्रीमद् भागवत कथा की ये खास बातें, यहां करें अमृतपान

डीएन संवाददाता

असोथर नगर के अंतर्गत मोटे महादेव मोहल्ला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन गुरुवार को कथा वाचक श्री पंडित मयंक बाजपेई महाराज ने राजा परीक्षित संवाद, शुकदेव जन्म सहित अन्य प्रसंग सुनाया।

भागवत कथा का दूसरा दिन
भागवत कथा का दूसरा दिन


फतेहपुर: असोथर नगर के अंतर्गत मोटे महादेव मोहल्ला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन गुरुवार को कथा वाचक श्री पंडित मयंक बाजपेई महाराज ने राजा परीक्षित संवाद, शुकदेव जन्म सहित अन्य प्रसंग सुनाया।

कथा वाचक ने कहा कि मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं, लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्राश्चित जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है।

कथा व्यास ने पांडवों के जीवन में होने वाली श्रीकृष्ण की कृपा को बड़े ही सुंदर ढंग से दर्शाया। कथा व्यास ने शुकदेव-परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गए। वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गए व जलाशय की खोज में इधर उधर घूमते-घूमते वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किए हुए व शांतभाव से एकासन पर बैठे हुये ब्रह्मध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा किंतु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया।

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उन्होंने कहा कि सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुए कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग करके मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोक से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस लौट आए।

कथा वाचक आत्मानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे। उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या या है। किंतु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा।

इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमंडल से अपनी अंजुल में जल लेकर तथा उसे मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक सर्प डंसेगा। शमीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है।

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शमीक ऋषि ने जब यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी तो वह अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंप कर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां बड़े ऋषि, मुनि, देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े़ होकर उनका स्वागत किया..!

कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। कथा के दौरान धार्मिक गीतों पर श्रद्धालु जमकर झूमें। कथा के पहले दिन बड़ी संख्या में महिला पुरुष कथा सुनने पहुंचे।

इस अवसर पर परीक्षित कृष्णपाल सिंह गौतम, श्यामा देवी, सोनू सिंह, नरेश सिंह, रज्जन शुक्ला, आकाश, अल्पेश सिंह, शैलेश सिंह, पंडित भृगुनन्दन शुक्ला, राजू सिंह, रज्जन सिंह, राघवेंद्र, मुन्ना, प्रवीण सिंह, जयदेव सिंह समेत सैकड़ों की संख्या में श्रीमद्भागवत प्रेमी उपस्थिति रहे।










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