राजस्थान के भीलवाड़ा में 406 सालों से चली आ रही नाहर नृत्‍य देखने के लिए उमड़ी भीड़, जाने क्या है इसकी विशेषता

संजय लढ़ा

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्‍बे में 406 सालों से चली आ रही नाहर नृत्‍य का आयोजन हाल ही में किया गया है। इस नृत्य को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ एकत्रित हुई। यह परंपरा मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए सन् 1614 में शुरू हुई थी। डाइनामाइट न्यूज़ की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़ें क्य़ा है इस नृत्य की विशेषता..



भीलवाड़ा: भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्‍बे में 406 सालों से चली आ रही नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी बदस्तूर जारी है। यह परंपरा मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए सन् 1614 में शुरू हुई थी। 

नाहर नृत्‍य करते लोग

 

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इस बार लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक नाटक का भी मंचन किया गया। जिसमें मतदान करने के लिए यहां उपस्थित लोगों को प्रेरित किया गया। भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्‍बे में रंग तेरस के दिन होने वाला नाहर नृत्‍य समारोह दिवाली से कम महत्‍व का नहीं है।

नाहर नृत्‍य देखने के लिए उमड़ी भीड़

मांडल से देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में गये लोग आज के दिन माण्‍डल आना नहीं भुलते है। मुगल बादशाह शाहजंहा के 1614 में मांडल पडाव के दौरान उनके मनोरंजन के लिए नृतको के शरीर पर रूई लपटकर शेर के रूप में शुरू हुई यह नाहर नृत्‍य की परम्‍परा आज भी जारी हैं। इस नृत्‍य की यह विशेषता है कि यह साल में एक बार भगवान और एक बार जनता के सामने होता है। नाहर नृत्‍य करने वाले कलाकारों को इस दिन का इंतजार रहते हैं।

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