पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद के आवेदकों के लिये आकलन समिति काे गठन पर उठे सवाल

डीएन ब्यूरो

पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने दावा किया है कि पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद के वास्ते आवेदकों का आकलन करने के लिए समिति का गठन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के अनुसार नहीं किया गया था। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित
पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित


चंडीगढ़: पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने दावा किया है कि पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद के वास्ते आवेदकों का आकलन करने के लिए समिति का गठन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के अनुसार नहीं किया गया था।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार राज्यपाल ने  कहा कि उन्होंने आईके गुजराल पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय, जालंधर के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार की समिति द्वारा उन्हें भेजे गए तीन नामों में से पीटीयू के कुलपति के रूप में सुशील मित्तल की नियुक्ति को मंजूरी दी थी, जहां दो साल से यह पद खाली था।

पुरोहित ने कहा, ‘‘मुझे तीन नाम भेजे गए थे और मैंने उनमें से उन्हें चुना जिन्हें मैं इस पद के लिए सबसे योग्य समझता था।’’

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पंजाब विधानसभा ने मंगलवार को राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने संबंधी एक विधेयक पारित किया था। कुलपतियों की नियुक्ति समेत कई मुद्दों पर पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाली सरकार के साथ राज्यपाल का टकराव रहा है।

राज्यपाल ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘पीटीयू मामले में मुझे बताया गया कि यूजीसी मानदंडों के अनुसार एक खोज समिति का गठन किया गया था। सौभाग्य से जब मैंने फाइल देखी, तो यूजीसी मानदंडों का बिल्कुल पालन नहीं हुआ था। मुख्य सचिव सदस्यों में से एक थे, दूसरे सदस्य अतिरिक्त मुख्य सचिव थे। यूजीसी के एक सदस्य को शामिल किया गया था, लेकिन उन्हें सूचित नहीं किया गया था।’’

उन्होंने कहा कि सरकार ने अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित किया था और कुलपति के पद के लिए 40 आवेदन मिले थे, ‘‘लेकिन किसी को भी साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया। उन्होंने तीन नाम चुने और उन्हें मुझे भेजा।’’

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पुरोहित ने कहा, ‘‘दो साल से विश्वविद्यालय में कोई कुलपति नहीं था। इस स्तर पर मैं क्या करता? अगर मैंने इसे वापस भेज दिया होता, तो इसका मतलब यह होता कि बात (कुलपति की नियुक्ति) लंबे समय तक, एक या डेढ़ साल तक टलती रहती।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए मैंने समिति के भेजे तीन नाम में से एक को चुना।’’

राज्यपाल ने बताया कि यूजीसी के नियमों के अनुसार, खोज-सह-चयन समिति के सदस्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे ‘‘लेकिन वर्तमान मामले में इसमें उल्लंघन पाया गया’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘इन बिंदुओं का मैंने फाइल में उल्लेख किया है।’’










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