RBI Deputy Governor: कृत्रिम मेधा के लिए सहयोगी नियामकीय ढांचे की जरूरत.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कृत्रिम मेधा (एआई) से अधिकतम लाभ उठाने के लिए एक सहयोगी नियामकीय ढांचे पर जोर देने के साथ वित्तीय प्रणाली पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों को लेकर सजग रहने को भी कहा है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कृत्रिम मेधा (एआई) से अधिकतम लाभ उठाने के लिए एक सहयोगी नियामकीय ढांचे पर जोर देने के साथ वित्तीय प्रणाली पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभावों को लेकर सजग रहने को भी कहा है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक राव ने हाल ही में दिल्ली में आयोजित इंडियन इकनॉमिक एसोसिएशन के सालाना समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि समर्थकों की नजर में एआई का उभार भविष्य बदलने जा रहा है और लोग इसे जोर-शोर से आजमा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम कई बैंकों और गैर-बैंकिंग इकाइयों को एआई से जुड़े प्रयोग करते हुए देख रहे हैं। हालांकि, अबतक का वैश्विक अनुभव यही बताता है कि इसका इस्तेमाल ज्यादातर बैक-ऑफिस कार्यों और दक्षता के लिए कारोबारी प्रक्रियाओं के अनुकूलतम उपयोग तक ही सीमित है।’’
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उन्होंने कहा कि कुछ बैंकों ने अनुपालन जरूरतों के लिए एआई समाधान अपनाए हैं जिनमें लेनदेन या भुगतान में एक तरीके की पहचान कर धनशोधन गतिविधियों का पता लगाने या सीमापार लेनदेन और निपटान की सुविधा शामिल है।
राव ने कहा कि एआई की बदलावकारी प्रकृति और क्षमता को देखते हुए जेनरेटिव एआई उत्पादकता, नौकरियों और आय वितरण पर गहरा असर डाल सकता है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ एआई के समर्थक इसे अर्थव्यवस्था और समाज के लिए व्यापक लाभदायक होने की उम्मीद करते हैं जबकि कुछ संशयवादी लोग इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ने और अन्य सामाजिक परिणामों की ओर इशारा करते हैं।
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उन्होंने कहा, ‘‘हमें संभावित प्रतिकूल प्रभाव के प्रति सजगता दिखाते हुए एआई से लाभ लेने के लिए एक सहयोगी नियामकीय ढांचा बनाने की जरूरत है।’’