‘‘अनुचित व्यवहार करने वाले’’ आरटीआई कार्यकर्ता को जानकारी मांगने के अयोग्य ठहराया जाना चाहिए: सूचना आयोग

डीएन ब्यूरो

उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन करने वाले एक कार्यकर्ता को ‘‘बेहद अनुचित व्यवहार’’ करने वाला करार देते हुए कहा है कि ऐसे आवेदक को 'सार्वजनिक अधिकारियों से आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगने के अयोग्य ठहराया जाना चाहिए'। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन करने वाले एक कार्यकर्ता को ‘‘बेहद अनुचित व्यवहार’’ करने वाला करार देते हुए कहा है कि ऐसे आवेदक को 'सार्वजनिक अधिकारियों से आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगने के अयोग्य ठहराया जाना चाहिए'।

आयोग ने कहा कि अपीलकर्ता ‘‘बेहद अनुचित तरीके’’ से व्यवहार कर रहा है और तर्क सुनने के लिए कोई रुचि नहीं दिखा रहा है।

उसने एक आदेश में कहा, 'आयोग ने पाया है कि उनके हाथों में आरटीआई डराने-धमकाने और उत्पीड़न का एक उपकरण बन जाएगा।'

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, इस संबंध में राज्य सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती ने पिछले महीने आवेदक दीपक शुक्ला (प्रयागराज निवासी) के खिलाफ आदेश दिया था, जिन्होंने पीठासीन अधिकारी और उनके कर्मचारियों के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी और उन्हें कथित तौर पर धमकी भी दी थी।

आदेश में कहा गया, ''उनके व्यवहार से यह स्पष्ट है कि वह आयोग और पीठासीन अधिकारी (राज्य सूचना आयुक्त) का फैसला अपने पक्ष में कराने के लिए इस तरह के कृत्य में लिप्त हैं।''

उप्रेती ने 17 जुलाई के आदेश में कहा कि 27 जून को एक अन्य मामले में सुनवाई के बाद यह भी पता चला कि अपीलकर्ता (दीपक शुक्ला) ने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के जन सूचना अधिकारी अमृत लाल पर कथित तौर पर हमला किया था।

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इसके बाद अमृत लाल की शिकायत के बाद विभूति खंड थाने में शुक्ला के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

प्राथमिकी के अनुसार, घटना 27 जून को हुई थी और मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए सजा) और 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत दर्ज किया गया था।

आदेश में कहा गया है कि इसके अलावा शुक्ला लगातार सोशल मीडिया वेबसाइट पर आयोग, राज्य सूचना आयुक्त और आयोग के कर्मियों के खिलाफ 'आधारहीन, अशोभनीय, और धमकी भरी' सामग्री भी पोस्ट करते हैं, ताकि 'आयोग पर दबाव बनाया जा सके और उनके आवेदन पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया जा सके।'

इसमें कहा गया है, ''उनके व्यवहार से यह स्पष्ट है कि वह आयोग/पीठासीन अधिकारी के निर्णयों को बाधित करने का प्रयास करते हैं।''

आदेश में उप्रेती ने कहा, 'आयोग का मानना है कि अपीलकर्ता एक झगड़ालू प्रवृत्ति के वादी हैं। वह बेहद अनुचित तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। वह तर्क सुनने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।'

इसमें कहा गया, 'वह लगातार आयोग और उसके कर्मचारियों के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। आयोग को लगता है कि उनके हाथों में आरटीआई डराने-धमकाने और उत्पीड़न का एक साधन बन जाएगा।

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आदेश में कहा गया है कि आयोग उनके व्यवहार की कड़ी निंदा करता है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करता है।

इसमें यह भी कहा गया है, 'आयोग/आयुक्त/कर्मचारियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और आयोग के निर्णयों में बाधा डालने के लिए आयोग आवेदक को चेतावनी देता है। इस आवेदक का व्यवहार बिल्कुल अवांछनीय है।’’

आदेश के अनुसार, ‘‘उसके अनियंत्रित व्यवहार को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। ताकि आयोग बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रूप से अपना निर्णय दे सके। उन्हें सार्वजनिक अधिकारियों से आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगने के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।''

इसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालयों के सभी जन सूचना अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इस आदेश की एक प्रति उनके कार्यालय/वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाए।










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