बिहार सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले संतोष सुमन ने जदयू और नीतीश कुमार पर लगाये ये बड़े आरोप

डीएन ब्यूरो

बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दल जद (यू) में विलय के लिए ‘‘दबाव’’ बनाए जाने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को अचानक कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

संतोष सुमन ने नीतीश कुमार की जदयू पर लगाये बड़े आरोप
संतोष सुमन ने नीतीश कुमार की जदयू पर लगाये बड़े आरोप


पटना: बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दल जद (यू) में विलय के लिए ‘‘दबाव’’ बनाए जाने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को अचानक कैबिनेट से त्यागपत्र दे दिया।

सुमन हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उनके पास पास अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग था । सुमन के पिता एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके जीतन राम मांझी ने हम पार्टी की स्थापना की थी ।

सुमन ने कहा, “मैंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया है और अपनी बात रखने के लिए व्यक्तिगत रूप से विजय कुमार चौधरी (जदयू के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री) से मिला हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरा इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा। हालांकि, हमलोग महागठबंधन से बाहर नहीं हो रहे हैं।'

उन्होंने बताया कि उनके पिता ने पिछले साल राजग छोड़ने और मुख्यमंत्री के प्रति अपनी वफादारी के कारण महागठबंधन में शामिल होने का फैसला किया था, उस वक्त वह पार्टी के अध्यक्ष थे।

सुमन ने कहा, “यह मुख्यमंत्री को तय करना है कि हमें महागठबंधन में रखा जाएगा या निष्कासित किया जाएगा। हम उसी के अनुसार निर्णय करेंगे। लेकिन जद (यू) के प्रस्ताव को देखते हुए मुझे अपनी पार्टी को विलुप्त होने से बचाने का फैसला लेना पड़ा। इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया।”

बिहार में विपक्षी भाजपा ने इसके तुरंत यह दावा किया कि यह राजनीतिक उथल-पुथल नीतीश कुमार की विपक्षी एकता के प्रयासों के लिए एक बाधा है, जिसके तहत वह अगले सप्ताह एक सम्मेलन का आयोजन करेंगे, जिसमें राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े विरोधी नेताओं के शामिल होने की संभावना है।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि जीतन राम मांझी के बेटे का इस्तीफा महागठबंधन में मौजूद खाई का सबूत है। महागठबंधन को लोगों ने खारिज कर दिया है और यह अगले साल लोकसभा चुनाव में स्पष्ट होगा और एक साल बाद विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार होगी।

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महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'जीतन राम मांझी अपने दबाव की रणनीति और चालबाज़ी के लिए जाने जाते हैं। हालांकि हमारी सरकार इस फैसले से प्रभावित नहीं होगी, यह एक ऐसा कदम है जिसका उन्हें पछतावा होगा'।

सुमन जहां बिहार विधान परिषद की सदस्य हैं, वहीं बिहार विधानसभा में हम के मांझी समेत कुल चार विधायक हैं।

प्रदेश के 243 सदस्यीय विधानसभा में सरकार के बने रहने के लिए 122 सदस्यों की आवश्यकता होती है। हम को छोड़ कर महागठबंधन के सदस्यों की संख्या अब भी 160 है । इसमें कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं ।

तिवारी ने कहा, “इस साल की शुरुआत में पूर्णिया में महागठबंधन की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांझी को गुमराह करने की भाजपा की कोशिशों के बारे में बात की थी। लगता है वह झांसे में आ गये हैं। जद (यू) द्वारा विलय के दबाव के दावों में दम नहीं है'।

गौरतलब है कि करीब एक महीने पहले जब मांझी ने राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, तभी से अटकलों का बाजार गर्म हो गया था और इसके बाद पिता-पुत्र की जोड़ी ने 'लोकसभा चुनाव में हम के लिए कम से कम पांच सीटों' की बार-बार मांग की गई।

इस बीच, एक मंत्री और जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता लेशी सिंह ने मांझी को याद दिलाया 'यह नीतीश कुमार के आशीर्वाद के कारण ही था कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे'।

लेशी सिंह का इशारा 2014 में उस राजनीतिक उथल-पुथल की ओर था, जब नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में जद (यू) की हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

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मांझी, जिन्हें तब एक कम महत्वपूर्ण मंत्री के रूप में देखा जाता था, को उनके गुरु के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।

दलित नेता आठ महीने तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे । उनके कार्यकाल के दौरान पार्टी के भीतर कई विवाद हुये और इसे गुटीय झगड़ों का सामना करना पड़ा, और जब नीतीश ने मुख्यमंत्री के रूप में लौटने का फैसला किया तो उन्होंने विद्रोह कर दिया।

इसके बाद राज्यपाल की ओर से उन्हें शक्ति परीक्षण का आदेश दिया गया था, लेकिन मांझी ने यह महसूस करते हुए कि उनके पास पर्याप्त समर्थन नहीं है, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और बाद में उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी । इसके बाद उन्होंने हम का गठन किया।

उन्होंने उस वर्ष के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में राजग के सहयोगी के रूप में शुरुआत की, लेकिन तब से एक से अधिक मौकों पर वह गठबंधन बदल चुके हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिछले साल अगस्त में भाजपा से अलग होकर राजद के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद से संतोष तीसरे मंत्री हैं जिन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दिया है। इससे पहले विभिन्न कारणों से राजद कोटे से मंत्री कार्तिक मास्टर और सुधाकर सिंह इस्तीफा दे चुके हैं ।

सुमन के इस्तीफे के बाद नीतीश के विपक्षी एकता के प्रयासों पर धक्का लगने के भाजपा के आरोपों के बाद ऐसी अटकलें हैं कि 23 जून को पटना में प्रस्तावित विपक्षी दलों की बैठक से पहले राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार किया जा सकता है, और उसमें दलित समुदाय को समुचित प्रतिनिधित्व दिए जाने की कोशिश की जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि नीतीश कैबिनेट में जदयू कोटे से वर्तमान में दलित समाज से आने वाले दो मंत्री (भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और मद्ध निषेध विभाग के मंत्री सुनील कुमार) हैं।










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