केरल में वाइपिन द्वीप की घट रही तटरेखा, डूबते तटों को बचाने के लिए हो रहा ये बड़ा संघर्ष
केरल के तट पर, निचले इलाके में स्थित वाइपिन द्वीप की तटरेखा घटती जा रही है, लेकिन यह समस्या दूर करने के लिए ‘मैंग्रोव मैन’ कड़ी मेहनत कर रहे हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
कोच्चि: केरल के तट पर, निचले इलाके में स्थित वाइपिन द्वीप की तटरेखा घटती जा रही है, लेकिन यह समस्या दूर करने के लिए ‘मैंग्रोव मैन’ कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
टी. पी. मुरुकेसन अपने घर की नमीयुक्त दीवारों पर नजरें टिकाए हाल ही में आई बाढ़ के मंजर को याद करते हुए बताते हैं कि अब ‘‘ बाढ़ बार बार आने लगी है और लंबे समय तक इसका प्रभाव रहता है।’’
उन्होंने बताया कि हाल ही में आई बाढ़ इतनी भीषण थी कि उनके पोते की छाती तक पानी आ गया। ‘‘ हर बार बाढ़ का पानी इतनी ऊंचाई तक आता है और हम उससे किसी तरह निपटते हैं।’’
समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और गंभीर ज्वारीय बाढ़ के कारण मुरुकेसन के पड़ोस में कई परिवार ऊंचे इलाकों में जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। हालांकि बढ़ती उम्र के कारण अब मछली पकड़ना छोड़ चुके मछुआरे अपने घर और अपने समुदाय को बढ़ते जलस्तर के प्रभावों से बचाने के लिए काम कर रहे हैं।
इन लोगों को ही स्थानीय लोग ‘‘मैंग्रोव मैन’’ कहते हैं। मुरुकेसन इनमें से एक हैं। उन्होंने अपने घर पर बढ़ते पानी के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए केरल राज्य के कोच्चि क्षेत्र में वाइपिन के किनारे और आसपास के इलाकों में पेड़ लगाना शुरू किया है।
समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और स्थानीय कारकों के कारण पानी का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ने के कारण ज्वारीय बाढ़ आती है।
‘मैंग्रोव’ समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, ज्वार और तूफान की लहरों के खिलाफ प्राकृतिक तटीय सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, लेकिन समय के साथ राज्य में उनका वन आवरण कम हो गया है।
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मुरुकेसन ने बताया कि वह सुंदर, बहुतायत वाले मैंग्रोव (जो द्वीपों को समुद्र से अलग करते हैं) के बीच पले-बढ़े लेकिन अब केरल की वित्तीय राजधानी कहलाने वाले शहर कोच्चि में इसके अंश ही बचे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ मैंग्रोव हमारे घरों को बाढ़, समुद्री तटीय कटाव और तूफान से बचा सकते हैं, जो हमारे जीवन, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का अविभाज्य हिस्सा हुआ करते थे। केवल ये ही हमें बचा सकते हैं। ’’
मुरुकेसन ने बताया कि उन्होंने 1,00,000 से अधिक ‘मैंग्रोव’ लगाए हैं। वह एक दिन छोड़कर, अगले दिन पौधे लगाते हैं और ज्यादातर काम खुद करते हैं। चेन्नई स्थित एक गैर-सरकारी संगठन ‘एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ से पौधे मुहैया कराने में कुछ मदद मिलती है। एक दिन के अंतराल में उनका काम लगातार जारी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और केरल मत्स्य एवं महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय द्वारा पिछले साल जारी एक अध्ययन के अनुसार, एर्नाकुलम जिला जिसमें कोच्चि भी शामिल है, उसने मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र का करीब 42 प्रतिशत हिस्सा खो दिया। इसका सबसे अधिक असर वाइपिन में दक्षिणी पुथुवाइपिन क्षेत्र में दिखा।
केरल वन विभाग के अनुसार, 1975 के बाद से राज्य में मैंग्रोव क्षेत्र 700 वर्ग किलोमीटर से घटकर सिर्फ 24 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य सचिव के. के. रामचंद्रन ने कहा, ‘‘ तटीय सड़कों और राजमार्गों के निर्माण ने राज्य में मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है। उन लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो उनकी रक्षा के लिए प्रयास कर रहे हैं।’’
मुरुकेसन की उनके प्रयासों के लिए व्यापक स्तर पर सराहना की गई और पुरस्कार दिए गए। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे बीज इकट्ठा करने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। मेरी पत्नी नर्सरी में मेरी यथासंभव मदद करती है। उम्र के हिसाब से मैं थक गया हूं लेकिन मैं रुक नहीं सकता।’’
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मुरुकेसन की पत्नी गीता ने कहा कि वह ‘‘हमारे बच्चों के लिए’’ कड़ी मेहनत कर रहे हैं, ताकि आने वाले दशकों के लिए वनों को बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि यही सोच हमें आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करती है।
कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में उन्नत वायुमंडलीय रडार अनुसंधान केंद्र के निदेशक अभिलाष एस. ने कहा कि वाइपिन में ज्वारीय बाढ़ का खतरा बेहद अधिक है।
उन्होंने कहा, ‘‘ समुद्र का जल स्तर बढ़ गया है और मीठे पानी की आपूर्ति को नुकसान पहुंचा है। समुद्री कटाव और वसंत ज्वार की स्थिति बिगड़ गई है। तटीय बाढ़ अब एक सामान्य घटना है।’’
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, 2013 और 2022 के बीच वैश्विक औसत समुद्र स्तर प्रति वर्ष 4.5 मिलीमीटर बढ़ गया। यह भारत, चीन, नीदरलैंड और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए एक बड़ा खतरा है, जिसमें बड़ी संख्या में तटीय आबादी रहती है।
मुरुकेसन ने कहा, ‘‘ हम समुद्र और ‘बैकवाटर’ के बीच फंसे हुए हैं। यह आपदा कुछ वर्षों में द्वीप निगल सकती है, लेकिन मैं कहीं नहीं जा रहा हूं। मेरा जन्म यहीं हुआ है और मैं यहीं अंतिम सांस लूंगा।’’
(यह लेख प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, द एसोसिएटेड प्रेस और स्टेनली सेंटर फॉर पीस एंड सिक्योरिटी के बीच साझेदारी ‘इंडिया क्लाइमेट जर्नलिजम प्रोग्राम’ के तहत की जाने वाली खबरों का हिस्सा है)