पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर स्थिति बहुत नाजुक बनी हुई है: जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति ‘‘बहुत नाजुक’’ बनी हुई है और कुछ इलाकों में भारत एवं चीन, दोनों देशों के सैनिकों की नजदीक तैनाती के चलते सैन्य आकलन के अनुसार हालात ‘‘काफी खतरनाक’’ है।पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति ‘‘बहुत नाजुक’’ बनी हुई है और कुछ इलाकों में भारत एवं चीन, दोनों देशों के सैनिकों की नजदीक तैनाती के चलते सैन्य आकलन के अनुसार हालात ‘‘काफी खतरनाक’’ है। हालांकि विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि कई क्षेत्रों में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया में ‘पर्याप्त’ प्रगति हुई है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि वह और चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी सितंबर 2020 में इसको लेकर एक सैद्धांतिक सहमति पर पहुंचे थे कि इस मुद्दे को कैसे सुलझाया जाए तथा जिस पर बात पर सहमति बनी थी उसे अब चीन को पूरा करना है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव’ में एक संवाद सत्र में यह स्पष्ट किया कि जब तक ‘इन समस्याओं’ का समाधान नहीं हो जाता, तब तक दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंध सामान्य नहीं हो सकते।
भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख में कुछ जगहों पर लगभग तीन साल से आमने सामने हैं। हालांकि दोनों देशों ने व्यापक कूटनीतिक और सैन्य वार्ता के बाद कई अन्य क्षेत्रों से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया पूरी कर ली है।
जयशंकर ने कहा, ‘‘मैं कहूंगा, यह चीन के साथ हमारे संबंधों में एक बहुत चुनौतीपूर्ण और असामान्य चरण है। मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि 1988 से लेकर, जब राजीव गांधी वहां गए थे, 2020 तक, समझ यह थी कि सीमा पर शांति बनाए रखी जाएगी।’’
विदेश मंत्री ने सीमा पर बड़ी संख्या में सैन्य बलों को नहीं लाने को लेकर दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों का भी उल्लेख किया और कहा कि विभिन्न स्थितियों से निपटने के लिए ‘‘बहुत विशिष्ट’’ तरीके की समझ और ‘प्रोटोकॉल’ भी बनाए गए थे।
जयशंकर ने कहा कि चीन ने 2020 में समझौतों का उल्लंघन किया, जिसके परिणाम गलवान घाटी और अन्य इलाकों में देखने को मिले।
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उन्होंने कहा, ‘‘हमने अपने सैनिकों को तैनात किया है, हम अपनी जमीन पर डटे हैं और मेरे विचार से स्थिति अभी भी बहुत नाजुक बनी हुई है, क्योंकि ऐसी जगहें हैं जहां हमारी तैनाती बहुत करीब है और वहां सैन्य आकलन के लिहाज से वास्तव में वह (हालात) काफी खतरनाक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब कई क्षेत्रों में सैनिकों के पीछे हटने की बात आती है तो हमने काफी प्रगति हासिल की है। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें लेकर हम चर्चा कर रहे हैं। यह एक श्रमसाध्य काम है और हम वह करेंगे।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘हमने चीनियों को यह स्पष्ट कर दिया है कि हमें शांति भंग की स्थिति अस्वीकार्य है। आप समझौतों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं और फिर आप चाहें कि बाकी रिश्ते ऐसे बने रहें जैसे कुछ हुआ ही नहीं। यह नहीं चलेगा।’’
विदेश मंत्री के बयान से एक दिन पहले ही सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति स्थिर है कि लेकिन पूरे मामले पर गहन नजर रखने की जरूरत है।
अपनी टिप्पणी में विदेश मंत्री ने दो मार्च को जी 20 के विदेश मंत्रियों की बैठक से इतर नये चीनी समकक्ष छिन कांग के साथ अपनी भेंट का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, ‘‘हाल की मेरी भेंट नये विदेश मंत्री छिन कांग के साथ थी जब जी 20 के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। हमारे बीच इस बारे में लंबी बातचीत हुई। सितंबर, 2020 में वांग यी और मेरे बीच सैद्धांतिक रूप से सहमति बनी थी कि कैसे इसका समाधान किया जाए। इसलिए चीनी जिस बात पर सहमत हुए थे, जिसके लिए उन्होंने जद्दोजेहद की थी, उन्हें अब उसे पूरा करना है।’’
जब उनसे पूछा गया कि चीनी पक्ष उन सहमतियों/ समझौतों को पूरा क्यों नहीं कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘ यह तो ऐसा प्रश्न है जो आपको उनसे पूछने की जरूरत है। मैं उसका जवाब नहीं दे सकता। क्योंकि मेरी लिए स्थिति स्पष्ट है। जबतक इन समस्याओं का हल नहीं कर लिया जाता है तबतक हमारे संबंध सामान्य नहीं होंगे। मैं बिल्कुल स्पष्ट करना चाहता हूं।’’
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इस साल 22 फरवरी को, भारत और चीन ने बीजिंग में कूटनीतिक वार्ता की और पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर टकराव वाले शेष स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने के प्रस्तावों पर ‘खुले एवं रचनात्मक’ तरीके से चर्चा की।
दोनों पक्षों ने बीजिंग में भारत-चीन सीमा विषय पर विचार विमर्श एवं समन्वय के कार्यकारी तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की बैठक में इन प्रस्तावों पर चर्चा की।
पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई 2020 को ही पूर्वी लद्दाख में गतिरोध उत्पन्न हो गया था। जून 2020 में गलवान घाटी में भयंकर संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी गिरावट आई।
सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों ने 2021 में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण किनारे और गोगरा क्षेत्र से सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पूरी की।